Wednesday, 7 March 2012

मत घेरो मुझे
बहने दो सारी फिजां में
जीवन फैलाने दो
हवा हूँ मै, 

मत रोको मुझे
धडकने तो खुद में
 प्यार बनकर
एक अहसास हूँ मै ,

मत बांधो मुझे
किलकने दो ..बहकने दो
निर्मलता जगाने दो
नदी हूँ मै ,

मत कैद करो मुझे
स्वक्छंद उड़ने दो
विचरने दो
विस्तृत नीले आकाश में 
उम्मीदों की उड़न बनकर
श्वेत पक्षी हूँ मै ,

मत समेटो मुझे
फैलने दो
थिरकने दो लबों पर
ख़ुशी का .
उमंगों का प्रतिरूप बनकर
हंसी हूँ मै ,

मत भागो मुझसे
पलने दो खुद के जहन में
सवाल बनकर
उत्सुकता बनकर
जागृत चेतना हूँ मै ,

मत पोंछो मुझे
बसने दो हर आँखों में
सपना बनकर .. कविता बनकर
उमंगों को  सजाने दो
एक औरत हूँ मै
रचयिता हूँ मै !!


        अर्चना "राज "



















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