Monday, 26 March 2012

vo mitra !!

vo mitra !!

गुजर चुके कितने ही वर्षों में
मेरी तन्हाई का वो इक अभिन्न मित्र ;
जिसका अक्स हर पल नज़र तो आता था
पर जिसे पहचान नहीं पाती थी मै;
मिल गया मुझे अचानक ही चलते-चलते
जिन्दगी की भीड़ भरी राह घाट में ,

थाम  लिया था
जिसने मेरा हाथ बड़ी ख़ामोशी से
बिना कुछ कहे .. बिना कुछ सुने ;
 साथ ही मेरे बेतरतीब बिखरे अहसासों ;
मेरी तकलीफों और उलझनों को भी;
और कर दिया था मुझे  मुक्त एवम भारहीन;
उस श्वेत पंख की तरह
जो कभी कभी यूँ ही उड़ते हुए
अचानक चेहरे से टकरा जाया करते हैं ,

खुद को चांदनी की तरह
सारी कायनात में
पसरा हुआ महसूस कर रही थी मै;
मासूम दुधमुहें बच्चे की
मुस्कुराहटों सी हो गयी थी मै ;
जी रही थी हर सांस
उसकी  सुरक्षित करने वाली
नर्म मुस्कुराहटों  के साए में ,

पर अचानक ही  कहीं गुम हो गया वो;
उसका होना तो महसूस होता है
पर वो कहीं नज़र नहीं आता मुझे ;
मेरा स्वक्छंद मुस्कुराना
हवा की तरह मेरे अरमानो का भी
पंख लगाकर उड़ना
क्या समझ नहीं पाया वो
या फिर स्वीकार नहीं कर पाया ,

अब तो अहसासों की इस सातवीं परत को भी
मैंने अपनी पीड़ा की पर्ची के साथ
अपनी तकलीफों के बक्से में बंद करके
अपने मन की चौखट में छुपा दिया है ;
और उसके ताले की चाभी
अदृश्य तौर पर आहिस्ता से
उसके ही हाथो में थमा दी है मैंने;
ठीक उसी तरह
जिस तरह ख़ामोशी से उसने
मेरे हाथों को थामा था ,

न जाने वो कभी भी अपनी हथेलियों में
उस चाभी का होना महसूस कर पायेगा या नहीं ;
पर मै प्रतीक्छा करूंगी तब तक
जब तक वो पूरे दिल से मुस्कुराकर
उस ताले को नहीं खोलता;
और मेरे अहसासों .. मेरे अरमानो को
एक खुला आसमान देने का हौसला नहीं रखता
जहां मै उसके साथ मुक्ति को अपने चरम पर जी सकूं ..!!


                                archanaa raj !!

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