Monday, 26 March 2012

dard

सुलगते दर्द का सुर्ख अँधेरा
जला करता है
शब् भर मुझमे
कुछ इस कदर ;

कि बदल जाती हूँ मै
दरिया-ए- शबनम में
और बिखर जाती हूँ
सारी कायनात में
नाकाम तबस्सुम जैसी ....!!!


शबनम - ओस
कायनात -जहाँ
तबस्सुम - हंसी


                 अर्चना "राज "

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