Thursday, 23 February 2012

शब्द बनाम मौन

मौन का ये कैसा अंतर्विरोध है शब्दों से
जो नहीं दे पाता कभी कोई संबल
दर्द के विवश ; विस्तृत सैलाब को ,

हमारे अहसास बस यूँ ही
मौन की बैसाखी पर पला करते हैं
और जलते रहते हैं दिन-रात
अंगारों से हमारे अंतर्मन में ;
पर हम उन्हें शब्दों की शक्ल में 
ख्वाहिशों की कलम से
जज्बातों के पन्नो पर नहीं उकेर पाते ;
कर पाते तो शायद घुटन कुछ कम होती
तुम्हारी भी ....और मेरी भी ,

मौन प्रेम की स्वीकारोक्ति का प्रमाण हो सकता है
पर स्निग्ध तरलता के लिए
शब्दों का अलाव भी जरूरी है ,

क्यों नहीं दे पाते हम अपने विवश मौन को
शब्दों का एक मजबूत आधार
जो संभाल सके हमारी तप्त
और अनियंत्रित बेचैनियों को
अपने स्तम्भ से ठहराव के साथ ,

यदि मै अपने मौन को विवशता की कैद से छुडा पाऊं 
और दे पाऊं  उसे शब्दों की अप्रतिम आजादी
जिस पर सतरंगी कलम से तुम्हारा पता लिखकर
उसे हवाओं के हवाले कर दूं 
और जो तुम तक
मेरी बेचैनियों और कामनाओं का संदेशा पहुंचा सके
जिसे पढ़कर शायद तुम भी
कुछ शब्दों में अपने बेचैन रंग भर सको
और उन्हीं हवाओं के हवाले कर सको
मुझ तक लाने के लिए
तभी शायद कुछ करार आये ,

यकीन मानो ; सदियों सी लम्बी दूरी से भी
उन शब्दों में मै महसूस कर लूंगी
तुम्हारे हथेलियों की वो खुशबू
जो लिखते वक्त ही उनमे रच-बस गयी होगी
या फिर तुम्हारी उस दबी आह का दर्द
जो मेरी याद से तुममे जगा होगा ;
मै जी लूंगी तुम्हारे उस हर पल की
असंयमित बेचैनी और खलिश को भी
जो मेरा नाम लिखते वक्त बेतरतीब लकीरों में
तुम्हारी कंपकंपाती उँगलियों की बेचारगी से उतर आया होगा ,

मै उन शब्दों में
उस बेहिसाब खारेपन को भी महसूस कर लूंगी
जो मेरे नाम के पहले अक्षर के साथ ही
तुम्हारी आँखों में उतर आई नमी का प्रतिरूप होगा ,

तो आओ कुछ यूँ करें
कि इस मौन के ताले को तोड़कर
आज़ाद कर दें
सीने में बेहिसाब घुटते शब्दों को
और उन्हें अहसासों कि स्याही में घोलकर
बिखेर दें अनगिनत ख्वाहिशें तमाम कायनात में ;
और महसूस करें अपने आस-पास शब्दों कि खूबसूरत मौजूदगी
साथ ही  स्निग्ध तरलता की मीठी सी रवानी भी अपनी रगों में ;
आओ आज मौन की तिजारत करें पूरी संजीदगी और शालीनता से
और एक अटूट मित्रता की शुरुआत भी ..शब्दों से तमाम उम्र के लिए
मेरे हमनफज   !!


                अर्चना राज !!













1 comment:

  1. अर्चना जी मौन की अगर कोई भाषा होती तो आज फफक पड़ती, बिलख पड़ती और सारे संयम का बांध तोड़ कर लिपट जाती आपसे और आपके शब्दों के जरिये सिने में उतर कर जी भर स्नेह बरसाती और कहती की तुम मेरी आवाज़ हो , तुम धड़कन हो और आज तुमने मेरी खवाइश पूरी करके मेरी जिंदगी बन गयी हो, किसी ने शायद मौन को इतनी मर्मता से नहीं समझा था...

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