न जाने क्यों लगने लगा है कुछ यूँ आजकल मुझको
की जिन्दगी ... तेरे पन्नो में कहीं मेरा जिक्र भी नहीं ,
बुलंदी हौसलों की कुछ इस कदर बिखरने लगी हैं
की तेरे दामन में मेरे होने का कोई मकसद भी नहीं ,
जीना भी आजकल; सीने पर इक बोझ सा लगता है
जी लेती हूँ की शायद कुछ पावना अभी बाकी है तेरा ,
तू बख्श दे गर मुझे उन अज़ाबों के मयखाने से
मै बख्श दूँगी तुझे अपनी बेअसर रवानी से .... !!!
अर्चना राज !!
की जिन्दगी ... तेरे पन्नो में कहीं मेरा जिक्र भी नहीं ,
बुलंदी हौसलों की कुछ इस कदर बिखरने लगी हैं
की तेरे दामन में मेरे होने का कोई मकसद भी नहीं ,
जीना भी आजकल; सीने पर इक बोझ सा लगता है
जी लेती हूँ की शायद कुछ पावना अभी बाकी है तेरा ,
तू बख्श दे गर मुझे उन अज़ाबों के मयखाने से
मै बख्श दूँगी तुझे अपनी बेअसर रवानी से .... !!!
अर्चना राज !!
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