Monday, 27 February 2012

जिन्दगी !

न जाने क्यों लगने लगा है कुछ यूँ आजकल मुझको
की जिन्दगी ... तेरे पन्नो में कहीं मेरा जिक्र भी  नहीं ,

बुलंदी  हौसलों की कुछ इस कदर बिखरने लगी हैं
की तेरे  दामन में मेरे होने का कोई  मकसद भी  नहीं ,

जीना भी  आजकल; सीने पर इक बोझ सा लगता है
जी लेती हूँ की शायद कुछ पावना अभी  बाकी है तेरा ,

तू बख्श दे गर मुझे उन अज़ाबों के मयखाने से
मै बख्श दूँगी तुझे अपनी बेअसर रवानी से ....  !!!


                                 अर्चना राज !!

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