Monday, 20 February 2012

प्रेम !!

प्रेम की गंभीरता ही
आदि श्रोत है
प्रेम में दिव्यता का ,

और खुद को साधना
और स्थापित करना ही
स्पष्ट और अमूर्त सत्य ,

इसके मूल में ही
श्रेष्ठता है प्रेम की ;

इसका आभाष होते ही
मै अनायास ही प्रकृति बन गयी
मेरे आदि पुरुष
और तुम शिव ,

यही है शाश्वत सत्य
निर्मल सुन्दर
और
निर्विरोध अखंड प्रेम
सदा के लिए
मेरे प्रिय !!


   अर्चना राज !!





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