मीठी घूँट की तरह उतर आए हो
तीखी धूप में भी तुम
जब-तब मैं भर लेती हूं असीम राहत सा तुम्हें
चुभलाती रहती हूँ देर तक
जब तक घुलता रहता है तुम्हारा मीठापन
अंतर्मन में अंतिम बूंद तक
कि जब तक रातें थककर सुबह नहीं हो जातीं
कि जब तक अंगडाईयां सुकून से नहीं भर जातीं
तब तक भी कि जब तक
सितारों से मुट्ठियाँ नहीं जगमगातीं,
तीखी धूप में भी तुम
जब-तब मैं भर लेती हूं असीम राहत सा तुम्हें
चुभलाती रहती हूँ देर तक
जब तक घुलता रहता है तुम्हारा मीठापन
अंतर्मन में अंतिम बूंद तक
कि जब तक रातें थककर सुबह नहीं हो जातीं
कि जब तक अंगडाईयां सुकून से नहीं भर जातीं
तब तक भी कि जब तक
सितारों से मुट्ठियाँ नहीं जगमगातीं,
कि यूँ तो शरबतों सा होकर हलक में
राहत हुए हो
जो कभी दामन हो जाओ मीठे चश्मे सा
तो करार आ जाये मुझको
हमनफज मेरे।।
राहत हुए हो
जो कभी दामन हो जाओ मीठे चश्मे सा
तो करार आ जाये मुझको
हमनफज मेरे।।
सहती रही अरसे तक
फिर फट पडी धरती पूरी उत्तेजना से
समस्त वेग से ,
फिर फट पडी धरती पूरी उत्तेजना से
समस्त वेग से ,
{हो सकता है विज्ञान में ये होना सुनिश्चित हो या सामान्य प्रक्रिया भी }
सहम गया इंसान
डरा रोया चिल्लाया गिडगिडाया
वो नहीं मानी
भरती रही फुंकार रह -रहकर
थर्राती रही इंसानियत हर बार मौत के खौफ से
लहू दिखाती रही फट गए देह और विनष्ट संसार भी स्वयं का ,
डरा रोया चिल्लाया गिडगिडाया
वो नहीं मानी
भरती रही फुंकार रह -रहकर
थर्राती रही इंसानियत हर बार मौत के खौफ से
लहू दिखाती रही फट गए देह और विनष्ट संसार भी स्वयं का ,
धरती नहीं पसीजी पर
दिखाती रही रौद्र क्रोध अपना
मचाती रही तबाही
इन सबके बीच कहीं छोटा ... और छोटा होता रहा इंसान
निरंतर किन्तु बड़ी होती रही प्रकृति अपनी सम्पूर्ण उर्जा के साथ !!
दिखाती रही रौद्र क्रोध अपना
मचाती रही तबाही
इन सबके बीच कहीं छोटा ... और छोटा होता रहा इंसान
निरंतर किन्तु बड़ी होती रही प्रकृति अपनी सम्पूर्ण उर्जा के साथ !!
रहम ईश्वर !!!!!!!!!!
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