उलझने की हद तक इश्क करो
तब तक जब तक की उनकी गांठें मजबूत न हो जाएँ
और उन पर एक अलीगढ़ी ताला कसकर न जड़ा जा सके
जब तक उन्हें उन आलों में सुरक्षित न रखा जा सके
जहां से उन्हें उतार पाना लगभग नामुमकिन हो
या फिर उस अलगनी से कसकर न बाँध दिया जाए
जो कमरे के एकदम किनारे के अंधेरों में कितने ही सालों से
चुपचाप लटक रही है ऐसे ही चुनिन्दा किस्सों को संभाले ,
तब तक जब तक की उनकी गांठें मजबूत न हो जाएँ
और उन पर एक अलीगढ़ी ताला कसकर न जड़ा जा सके
जब तक उन्हें उन आलों में सुरक्षित न रखा जा सके
जहां से उन्हें उतार पाना लगभग नामुमकिन हो
या फिर उस अलगनी से कसकर न बाँध दिया जाए
जो कमरे के एकदम किनारे के अंधेरों में कितने ही सालों से
चुपचाप लटक रही है ऐसे ही चुनिन्दा किस्सों को संभाले ,
इश्क करो तब तक जब तक कि
बौराये आम की टहनी सूख कर किसी नवेले चूल्हे में भभक न पड़े
या फिर कदम्ब के ढेरों फल इमली के स्वाद में न बदल जाएँ
तब तक भी कि जब तक धूप अपना मीठापन मुझमे बिखेरने से बाज़ आये
हवाएं अपनी आवारगी छोड़ शराफत से एक जगह थम जाएँ
नदी बहते-बहते हिमालय के शिखर तक जा पहुंचे
और मेरा आँगन एक बार फिर कच्ची मिटटी की आतिशी महक से भर जाए,
बौराये आम की टहनी सूख कर किसी नवेले चूल्हे में भभक न पड़े
या फिर कदम्ब के ढेरों फल इमली के स्वाद में न बदल जाएँ
तब तक भी कि जब तक धूप अपना मीठापन मुझमे बिखेरने से बाज़ आये
हवाएं अपनी आवारगी छोड़ शराफत से एक जगह थम जाएँ
नदी बहते-बहते हिमालय के शिखर तक जा पहुंचे
और मेरा आँगन एक बार फिर कच्ची मिटटी की आतिशी महक से भर जाए,
इश्क करो तब तक भी कि
जब तक कि मेरी रूह सात जन्मो का सफ़र तय कर वापिस मुझ तक न लौट आये
कि जब तक मौसमों का सलीका हिमाकत में न बदल जाए
कि जब तक फूलों की खुशबू अब्र में न घुल जाए
कि जब तक ये महुए का नशा इंसानी उम्र की औषधि न बन जाए
तब तक ----- तब तक इश्क करो मुझसे
मेरे बेचैन मन !!
जब तक कि मेरी रूह सात जन्मो का सफ़र तय कर वापिस मुझ तक न लौट आये
कि जब तक मौसमों का सलीका हिमाकत में न बदल जाए
कि जब तक फूलों की खुशबू अब्र में न घुल जाए
कि जब तक ये महुए का नशा इंसानी उम्र की औषधि न बन जाए
तब तक ----- तब तक इश्क करो मुझसे
मेरे बेचैन मन !!
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