Wednesday, 3 February 2016

हवा भी

हवा भी सांस हो पाने से पहले
कुछ ठिठकती है
झिझकती है सहमती है
बङे धीरे से
सीने में मेरे फिर वो उतरती है,
घिरी धङकन भी रहती है यूँ अब
संशय के घेरे में
घिरी श्रद्धा भी रहती है यूँ अब
जैसे अंधेरे में,
कहीं कोई जहर ही हो न शामिल
अब दुआओं में
कहीं ढेरों असर ही हो न कामिल
अपनी मांओं में,
ये डर लगता है अब मुझसे जियादा
मेरे ईश्वर को
यही चिंता है अब मुझसे जियादा
मेरे ईश्वर को,
कहीं भूले से भी न चूक हो जाये
कभी उससे
हवाओं के किसी दूजे के हिस्से को
मुझे सौंपे,
रहे घुलता फिर वो सदियों तलक
कालिख के दरिया में
सिसकता ही रहे सदियों तलक
आंसू के दरिया में,
कि जो मुझसे भी हो सकती है ऐसी भूल
फिर कैसे
कोई इंसान सारी उम्र रह सकता है पाकीजा
वही इंसान कि जिसको भी मैंने खुद बनाया है
वही इंसान कि धरती पे जो बस मेरा साया है,
इसी अहसास से शायद हवा पहले ठिठकती है
झिझकती है सहमती है
बङे धीरे से सीने में मेरे फिर वो उतरती है।।

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