Wednesday, 3 February 2016

कब

कहते हैं कि मेरा देश आज़ाद हुआ है
यूँ लगता भी है
कि ये लालकिला अपना है
ये ताजमहल ये मांडू ये पटना शहर अपना है
कि अपना है यूँ तो कश्मीर भी 
कन्याकुमारी और फूलों का शहर अपना है ,
ये राज अपना है तख़्त ओ ताज अपना है
सरकार अपनी है अधिकार अपना है ,
बरस बीते मगर न जाने कितने ये सोचते
ये ढूंढते करते खोज -बीन
कि जो लडे आजादी को वो कौन थे
किस प्रान्त किस भाषा के थे
भारत माँ के किस हिस्से किस आशा के थे ,
कि अब भी दिख जाता है कोई ये साबित करता हुआ
कि वो भी अपना है तब भी था
कि आज़ाद भारत ही जिसका अंतिम सपना था
कि जिसको कह देता है कोई विकृति से
कि अच्छा साबित करो
या फिर जाओ अपने प्रान्त और वहा ठोको दावा
और कोई दास हो उठता है आहत
होता है आहत एक और व्यक्ति भी
फिर उतार देता है चित्रपट पर
एक दास ...बेहद ख़ास दास की दास्तान सरेआम ,
आहत दास थोड़ी राहत थोड़ी संतुष्टि के साथ मुस्कुरा उठते है
हंसकर कहते हैं
मेरे देश तू आज़ाद दिखता तो है पर महसूस कब होगा ??

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