Friday, 17 April 2015

दौर ए इश्क

प्रेम के पंख गुलाबी हैं
साँसें सब्ज़ हरारत ली हुयीं ,
सीने में उतर आया है पूरा चाँद
नसों में बिजली
तलवों में तेज़ कसमसाहट 
हथेलियाँ बौराई सी
नज़रें सकपकाई सी
जिस्म में सहमापन बेहिसाब ,
आज मै फिर उम्र के सोलहवें दौर में हूँ !!

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