कोई फ़िक्र नहीं वो कहता और हंस देता
उसकी आँखों में मीठी सी ढेरों धूप उतर आती
चेहरे पर भोर की निर्मल उजास
मानो सुख मन भर उतरा आया हो उसकी छाती में ,
उसकी आँखों में मीठी सी ढेरों धूप उतर आती
चेहरे पर भोर की निर्मल उजास
मानो सुख मन भर उतरा आया हो उसकी छाती में ,
सख्त दिखती नर्म उँगलियों से
छूता रहता अनायास ही मेरी उँगलियों को
मुस्कुराता हौले से फिर समूचा ही भर लेता मुट्ठी में
हथेली पुरजोर कसमसाती शिथिल हो जाती फिर विवश होकर
कि उनमे कोई जादू सा उतर आता मंत्रबिद्ध करने को मानो ,
छूता रहता अनायास ही मेरी उँगलियों को
मुस्कुराता हौले से फिर समूचा ही भर लेता मुट्ठी में
हथेली पुरजोर कसमसाती शिथिल हो जाती फिर विवश होकर
कि उनमे कोई जादू सा उतर आता मंत्रबिद्ध करने को मानो ,
ट्रेन की खिडकियों से हम झांकते प्रकृति को
समय कि सुइयों को धीमा चलने का निवेदन लेकर
कभी कुल्हड़ की चाय कभी दूरियों का ज़िक्र करते
बरबस सूख आये होठों पर धीमे से नया आइना रखते
उलझती नज़रों में फिर टूटी हुयी कोर भर उदासी झलक उठती ,
समय कि सुइयों को धीमा चलने का निवेदन लेकर
कभी कुल्हड़ की चाय कभी दूरियों का ज़िक्र करते
बरबस सूख आये होठों पर धीमे से नया आइना रखते
उलझती नज़रों में फिर टूटी हुयी कोर भर उदासी झलक उठती ,
अनजाना सा होकर ही फिर निकल गया वो मानो पहचानता नहीं
कि मेरे आँचल का शफ्फाक सुनहरा होना बेहद प्रिय है उसे
कि मेरे नाम का बेदाग़ होना बेहद प्रिय है उसे
पर मै रो पडी फफककर जो दूर से देखीं उसकी गीली आँखें
जो दूर से देखा उसका यूँ मायूस होना अखबार की व्यर्थ ओट लिए
या फिर वहीँ पुल पर रेलिंग थामे ,
कि मेरे आँचल का शफ्फाक सुनहरा होना बेहद प्रिय है उसे
कि मेरे नाम का बेदाग़ होना बेहद प्रिय है उसे
पर मै रो पडी फफककर जो दूर से देखीं उसकी गीली आँखें
जो दूर से देखा उसका यूँ मायूस होना अखबार की व्यर्थ ओट लिए
या फिर वहीँ पुल पर रेलिंग थामे ,
मन भीग - भीग उठा अथाह सुख महसूस कर किन्तु
कि प्रेम अब भी सोंधा है अब भी ताज़ा है वैसे ही मुझमे प्रिय
अपनी पूरी कमनीयता से तुम्हारे लिए !!
कि प्रेम अब भी सोंधा है अब भी ताज़ा है वैसे ही मुझमे प्रिय
अपनी पूरी कमनीयता से तुम्हारे लिए !!
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