ओसारे की खटिया
पुरानी रजाई , रजाई में तुम
तुम्हारी ही छाती में दुबकी हुयी सी चिपटी सी मै
जैसे बिल्ली हो भूरी ,
पुरानी रजाई , रजाई में तुम
तुम्हारी ही छाती में दुबकी हुयी सी चिपटी सी मै
जैसे बिल्ली हो भूरी ,
गले जब भी देह ठंडक से सुर सुर
तुम्हारा वो ताप मद्धिम सा लगता ओढा देता फिर
मुझे नींद अपनी
बाहों का तकिया हथेली की नरमी
माथे पर चुम्बन सज़ा देतीं तुम
कि जैसे मै कोई थी राजकुमारी
ऐसी वो लज्ज़त थी गाँवों के ठंडक की
ऐसी ठनक थी कि जब तुम थीं सच की ,
तुम्हारा वो ताप मद्धिम सा लगता ओढा देता फिर
मुझे नींद अपनी
बाहों का तकिया हथेली की नरमी
माथे पर चुम्बन सज़ा देतीं तुम
कि जैसे मै कोई थी राजकुमारी
ऐसी वो लज्ज़त थी गाँवों के ठंडक की
ऐसी ठनक थी कि जब तुम थीं सच की ,
कहाँ हो तुम अब
कहो न
कि गाँवों में जाना मटर कच्ची खाना
लाइ का लड्डू
गरम गुड का चखना छोड़ दिया है
पुआलों में छुपना कच्ची नींद सोना
गरम दूध पीना
नमक लहसुन वाला अमरूदों के संग
खाना खिलाना भी छोड़ दिया है
कि छोड़ दिया है गरम गरम चावल में गड्ढे बनाना
चटकारी सब्जी फिर उसमे मिलाना
फूंक फूंक खाना ,
कहो न
कि गाँवों में जाना मटर कच्ची खाना
लाइ का लड्डू
गरम गुड का चखना छोड़ दिया है
पुआलों में छुपना कच्ची नींद सोना
गरम दूध पीना
नमक लहसुन वाला अमरूदों के संग
खाना खिलाना भी छोड़ दिया है
कि छोड़ दिया है गरम गरम चावल में गड्ढे बनाना
चटकारी सब्जी फिर उसमे मिलाना
फूंक फूंक खाना ,
नहीं करता दिल कि बोरसी के आगे हथेली फैलाऊं
गाल छुआऊँ
मुलायम सी दहक से किलक किलक जाऊं
नारंगी चमक होठों पर सजाऊं
ये भी नहीं कि भरी दोपहरी सबको छकाऊँ
अदरक वाली चाय पियूं पिलाऊं ,
गाल छुआऊँ
मुलायम सी दहक से किलक किलक जाऊं
नारंगी चमक होठों पर सजाऊं
ये भी नहीं कि भरी दोपहरी सबको छकाऊँ
अदरक वाली चाय पियूं पिलाऊं ,
नहीं करता दिल ये करने को अब कुछ
मेड़ों के रस्ते भटकने को अब कुछ
कि अब तो ये ठंडक भी वैसी नहीं है
पीली सी धूप शैतानी करती रगों में बहकती
जैसी नहीं है
जैसी थी पहले
कि जब साथ तुम थीं ,
मेड़ों के रस्ते भटकने को अब कुछ
कि अब तो ये ठंडक भी वैसी नहीं है
पीली सी धूप शैतानी करती रगों में बहकती
जैसी नहीं है
जैसी थी पहले
कि जब साथ तुम थीं ,
तुम अब नहीं हो तो गाँवों में जाना भी छूट गया है
शायद वो रिश्ता इनारे के जैसा अब टूट गया है ||
शायद वो रिश्ता इनारे के जैसा अब टूट गया है ||
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