Thursday, 21 December 2017

आह्वान

हे सखी सीते
धरती माँ की बेटी
अब उठो तुम सज्ज हो
कि वक्त देखो हो चला है युद्ध का ,
वेदनाएं हैं असीमित यातना चहुँओर है
चीख है पीड़ा है और पाप का बस ढेर है ,
जिस समय तुम भ्रूण हो
और कह रहा कोई अवांछित
उस समय विद्रोह करना
अड़ी रहना जन्म को
माँ का बनना हौसला और स्वाभिमान ,
जन्म पर कोई अगर स्वागत न हो
रंच भर भी तुम सखी मायूस मत होना
हर वो क्षण बीता हुआ जो तुम्हें दोयम कहे
त्रिण बना रखना ह्रदय में
एक दिन करना है तुमको प्रज्वलित शुभ अग्नि को ,
गर कहे कोई तुम्हें छूकर कि तुम हो कोमलांगी
और छलके लालसा शब्दों से उसके
उस समय विद्रोह करना
परे करके तोड़ देना स्पर्श का वो स्त्रोत ही
वीर लगना वीर दिखना ,
प्रेम भी करना अगर याचक न होना
प्रेम में प्रतिदान पाना न कि भिक्षा या दया
यदि हो ऐसा तुम उसे इनकार करना
याद रखना हे सखी सम्मान सम कुछ भी नहीं
मान जब खुद का करोगी तब ही पाने की हो तुम अधिकारिणी ,
आज मानवता है कुंठित और दमित कुचली हुयी
कि हों भले ही दुधमुंही या वृद्ध महिला
हो रहीं हैं शिकार वो
आदमी की विकृति का ढो रही हैं भार वो
हर तरफ फैला लहू है हर तरफ है बल प्रयोग
घून मिश्रित हो गया है ये समाज लग गया है इसको रोग ,
अब तुम्हें ही चेतना का ज्वार बन आना पड़ेगा
श्वेतकेतु शिष्या तुमको राह दिखलाना पड़ेगा
हर किसी में तुम समा जाओ बनो खुद अपनी कर्ता
तुम बनो विश्वास उनका जो न खुद में आस धरता
थाम लो तुम तीर और तलवार अब
जांच लो उन पापियों का सब्र अब
फिर करो संहार भी
जो न तो अपनी बहन व बेटियों के हो सके
जो न अपनी माँ का भी सम्मान किंचित कर सके
जिन्दगी भारी हो उन पर ,
हे सखी सीते
धरती माँ की बेटी
अब उठो तुम सज्ज हो
कि वक्त देखो हो चला है युद्ध का |

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