Thursday 21 December 2017

ग़ज़ल

अपनी सुबहों -शामों का हिसाब रक्खा करें
हजारों सवाल फिजा में हैं ज़वाब रक्खा करें
नसीहतों सहूलतों ,तक़रीरों के इस दौर में
आप भी कुछ धमक जरा रुआब रक्खा करें ,
परिंदे उड़ानों से अब कुछ मुकरने लगे हैं
उनसे कहो कि पंखों में ज़लाल रक्खा करें ,
तबीयत नासाज़ हो बेशक मगर फिर भी
तरन्नुम का कुछ तो लिहाज़ रक्खा करें ,
आइना अगरचे हो भी बेहोशोहवास तो क्या
मोहतरम "राज़" थोडा हिजाब रक्खा करें ||

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