रात देखा
वो भाई का कमरा ठीक कर रही थीं
बिखरी आलमारी में
सब कुछ तह कर खूब करीने से रख रही थी
बिस्तर की तुड़ी मुड़ी सिलवटें एक एक कर कितने जतन से मिटा रही थी
एकदम परफेक्ट कर रही थीं सब कुछ
हमेशा की तरह बुदबुदाते हुए
बहुत लापरवाह है
पता नहीं कैसे संभालेगा खुद को
नीचे गिरी नयी नीली शर्ट पर नज़र पड़ते ही
झुंझला पडीं
ज़रा भी कदर नहीं किसी चीज की
सब कुछ फेंका रहता है
पर इस दरमियान उनकी नज़रें सूक्ष्मता से मुआयना करती रहीं
उसके बटन और काज़ का
फिर सुई धागे का डिब्बा निकाला
चश्मा आँखों पर चढ़ा नीले धागे को पिरोने लगीं
आँखें सिकोड़ बार बार धागे का सिरा सुई में डालने की कोशिश करने लगीं
फिर कुछ मायूस
उफ्फ्फ .....दिखाई भी नहीं पड़ता अब कायदे से
मुझसे हंसकर चिरौरी की
बेटा ज़रा धागा डाल दो
मै नखरे करने लगी
मटकने फुदकने लगी फिर वो थोडा कसकर बोलीं
सुना नहीं तुमने कह रही हूँ न धागा डाल दो
खिसियाई हुयी सी मुंह फुलाए आकर मुझे धागा डालना पड़ा
वो हंसीं और चूम लिया मुझे ,
वो भाई का कमरा ठीक कर रही थीं
बिखरी आलमारी में
सब कुछ तह कर खूब करीने से रख रही थी
बिस्तर की तुड़ी मुड़ी सिलवटें एक एक कर कितने जतन से मिटा रही थी
एकदम परफेक्ट कर रही थीं सब कुछ
हमेशा की तरह बुदबुदाते हुए
बहुत लापरवाह है
पता नहीं कैसे संभालेगा खुद को
नीचे गिरी नयी नीली शर्ट पर नज़र पड़ते ही
झुंझला पडीं
ज़रा भी कदर नहीं किसी चीज की
सब कुछ फेंका रहता है
पर इस दरमियान उनकी नज़रें सूक्ष्मता से मुआयना करती रहीं
उसके बटन और काज़ का
फिर सुई धागे का डिब्बा निकाला
चश्मा आँखों पर चढ़ा नीले धागे को पिरोने लगीं
आँखें सिकोड़ बार बार धागे का सिरा सुई में डालने की कोशिश करने लगीं
फिर कुछ मायूस
उफ्फ्फ .....दिखाई भी नहीं पड़ता अब कायदे से
मुझसे हंसकर चिरौरी की
बेटा ज़रा धागा डाल दो
मै नखरे करने लगी
मटकने फुदकने लगी फिर वो थोडा कसकर बोलीं
सुना नहीं तुमने कह रही हूँ न धागा डाल दो
खिसियाई हुयी सी मुंह फुलाए आकर मुझे धागा डालना पड़ा
वो हंसीं और चूम लिया मुझे ,
अपनी उम्र भर वो यही तो करती रहीं
हमें संभालना संवारना perfect बनाने की कोशिश करते रहना
हमारे दुखों का कांधा बनना
हमारी निराशा की उम्मीद बनना
हमारी खुशियों में खिलखिलाहट हो जाना
उपलब्धियों में गर्व हो जाना
कहीं कोई चूक नहीं कोई भूल नहीं कभी भूले से भी ,
हमें संभालना संवारना perfect बनाने की कोशिश करते रहना
हमारे दुखों का कांधा बनना
हमारी निराशा की उम्मीद बनना
हमारी खुशियों में खिलखिलाहट हो जाना
उपलब्धियों में गर्व हो जाना
कहीं कोई चूक नहीं कोई भूल नहीं कभी भूले से भी ,
फिर ये कैसे हो गया
जो नहीं बताया उन्होंने कभी कि दुःख के पहाड़
आत्मा की घुटन भी हो सकते हैं
कभी नहीं सिखाया
कि हँसते हुए जब कभी कराह निकले तो कैसे छिपाऊं उसे
कि आंसू जब नसों में छाले सा दंश दें तब क्या करूँ
तब भी क्या करूँ जब अपनी जगह मै अपने बच्चों को खड़ा पाऊं
खुद को उनकी जगह ,
जो नहीं बताया उन्होंने कभी कि दुःख के पहाड़
आत्मा की घुटन भी हो सकते हैं
कभी नहीं सिखाया
कि हँसते हुए जब कभी कराह निकले तो कैसे छिपाऊं उसे
कि आंसू जब नसों में छाले सा दंश दें तब क्या करूँ
तब भी क्या करूँ जब अपनी जगह मै अपने बच्चों को खड़ा पाऊं
खुद को उनकी जगह ,
पर अब यूँ जीना भी जरूरी है
कि कतरा कतरा ये दुःख पीना भी जरूरी है
सांस लेनी जो है ,
कि कतरा कतरा ये दुःख पीना भी जरूरी है
सांस लेनी जो है ,
और हाँ वो रात नहीं सपना था
और कमरा भी भाई का नहीं मेरा अपना था |
और कमरा भी भाई का नहीं मेरा अपना था |
No comments:
Post a Comment