Thursday, 21 December 2017

डर

मुस्लिम प्रेमी की
हिंदू प्रेमिका हूँ मै
मुझे लगता है हमें मार दिया जाएगा
कि अब धर्म हमारे उसूलों में नहीं
हमारे फायदों में रहता है 
हमारे किरदार में नहीं
हमारे कायदों में रहता है ,
प्रेम होना रूहों का नहीं धर्म का मसला है अब
जीने का नहीं ताकत का असलहा है अब ,
कि जिसे खुशबुओं और कम्पनों से नहीं आँका जाता
रुद्राक्ष और खतनाओं से है जांचा जाता
कोई शीरीं न ही लैला न तो फरहाद है
वो बस गुडिया या फिर सलमा या तो जेहाद है
कि इश्क अब डर की सरहदों का कैदी है
कभी आग कभी कुल्हाड़ी कभी भीड़ की मुस्तैदी है ,
नोंच लेते हैं सरेआम वो जिस्म उनके
खींच देते हैं फाड़ देते हैं जो कपडे उनके
नंगी देह पर जो खुलकर मुस्कुराते हैं
हँसते खिलखिलाते जो ठहाके लगाते हैं
क्या वो इंसान हैं मुझको तो शक होता है
उनकी माओं पर बहनों पर दुःख होता है
सारी प्रार्थनाएं सारे अज़ान बेकार हैं अब
सारी दुआएं सारी मन्नतें बेजान है अब ,
इश्क अब दिल से नहीं दिमाग से करना होगा
उसकी जाति उसका गोत्र उसका धर्म भी देखना होगा
जो ऐसा न किये तो बेतरह पछताओगे
बेमकसद ही एक रोज़ तुम मार दिए जाओगे
सरकार और धर्म के पहरुओं से उम्मीद मत रखना
कभी भूलकर भी उनसे अपने दिल की कुछ मत कहना
पहले वो अपनी राजनीती अपने ऊंट की करवट देखेंगे
फिर अपने लोगों से कहकर फसादात के ज़हर छीटेंगे
लम्बी लम्बी तकरीरें लम्बे लम्बे शहादत के भाषण होंगे
काहिलों की महफ़िल कमीनगी के नजारत होंगे
मसला तुम्हारा यूँ ही बेसहारा रह जाएगा
बिना किसी न्याय के अन्याय सा हो जाएगा ,
कि ये दौर मुहब्बतों का नहीं नफरतों का है
इस दौर में बचकर रहना होगा
ज़ज्बात कितना भी मचलें सीने में
होंठ सिलकर सहना होगा ,
पर जिन्हें हो गयी है उनका क्या
अंधियारी रात के किसी कोने में
डरते सहमते आँखों में आंसू भरे
गिडगिडाती सी
वो अपनी सहेलियों के सीने से लग कह रही हैं
कि मुस्लिम प्रेमी की
हिन्दू प्रेमिका हूँ मै
मुझे लगता है हमें मार दिया जाएगा |

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