एक है अमलतास का पेड़
एक है खाली सड़क
एक खिड़की
घर से घर कि दूरी बस इतनी
कि सांस लो गर डूबकर आवाज़ पहुँच जाए ,
एक है खाली सड़क
एक खिड़की
घर से घर कि दूरी बस इतनी
कि सांस लो गर डूबकर आवाज़ पहुँच जाए ,
इन सबके बीच ही पला एक इश्क
कमाल का
जिसमे न शब्द थे ...न लिखावट ....न स्वीकार्य
फिर भी सदी के चौथाई हिस्से तक का वक्त थिर किये रहा ,
कमाल का
जिसमे न शब्द थे ...न लिखावट ....न स्वीकार्य
फिर भी सदी के चौथाई हिस्से तक का वक्त थिर किये रहा ,
असल कमाल तो बाकी है अभी
अब शब्द भी हैं
आवाज़ भी है
स्वीकार्य भी है
नहीं है तो बस ज़ालिम इश्क नहीं है ,
अब शब्द भी हैं
आवाज़ भी है
स्वीकार्य भी है
नहीं है तो बस ज़ालिम इश्क नहीं है ,
गज्ज़ब न !!
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