रिश्तों में अनजाने ही उगने लगी है अब मौत की परछाइयां
अचानक लील जाती है जो पूरी शिद्दत से एक पूरे आशियाने को ,
घर घर में पसरने लगी है अब बेचारगी की अमरबेल भी ऐसे
और जैसे ख़त्म होने लगा है अब आँखों में यूँ सपनो का उगना ,
अपनी नकारात्मकता को ही हमने अपना सर्वस्व बना डाला है
कि मनुष्य होने के असली मायने तक समझ नहीं आते हमको ,
फिर से आहट सुनाई पड़ने लगी है अब एक और समुद्रमंथन की
और आज फिर जरूरत महसूस होने लगी है एक साकार शिव की ,
वो शिव जो समाज का तमाम गरल ग्रहण कर नीलकंठी बन सकें
और वो शिव भी जो मुस्कुराते हुए ही हमें जीवन दर्शन समझा सकें !!
अर्चना "राज "
अचानक लील जाती है जो पूरी शिद्दत से एक पूरे आशियाने को ,
घर घर में पसरने लगी है अब बेचारगी की अमरबेल भी ऐसे
और जैसे ख़त्म होने लगा है अब आँखों में यूँ सपनो का उगना ,
अपनी नकारात्मकता को ही हमने अपना सर्वस्व बना डाला है
कि मनुष्य होने के असली मायने तक समझ नहीं आते हमको ,
फिर से आहट सुनाई पड़ने लगी है अब एक और समुद्रमंथन की
और आज फिर जरूरत महसूस होने लगी है एक साकार शिव की ,
वो शिव जो समाज का तमाम गरल ग्रहण कर नीलकंठी बन सकें
और वो शिव भी जो मुस्कुराते हुए ही हमें जीवन दर्शन समझा सकें !!
अर्चना "राज "
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