Thursday 5 April 2012

तुम्हारे लिए

तुम्हारे लिए मै खुद को
धूप का एक ख़ास टुकड़ा बना लेना चाहती हूँ
जो हर रोज मेरे सामने से ही नहीं
मेरे अहसासों से भी गुजरता रहता है
और जो तुम तक
मेरी उत्तप्त साँसों का संदेशवाहक भी  होगा ,

हवाओं की आवारगी भी
मै खुद में सहेजने को तैयार हूँ 
बशर्ते की तुम मुझे अपने आगोश में
संभाले रखने का भरोसा दो ,

बादलों का एक पूरा सैलाब बनना भी मुझे मंजूर है
अगर तुम खुद को
मुझमे भीग जाने की इजाजत दो
बेशक कुछ पलों के लिए ही सही ,

मै वो उद्दाम  नदी भी बनना चाहूंगी
जो हर उस वक्त तुम्हारे अंतस में
पूरे वेग से गुजरे
जब भी तुम खुद को तनहा पाओ ,

मै पहाड़ों की वो धूल बनने को भी राजी हूँ
जो तुम उस पर बैठते वक्त
अपने हाथों से हटाओगे
और तब मै तुम्हारे हथेलियों के स्पर्श में
तुम्हें महसूस कर सकूंगी ,

मै बारिश की वो बूँद भी बन जाना चाहती हूँ
जो अपनी पहली फुहार के साथ
मिटटी में ज़ज्ब होकर
एक अद्भुत खुशबू बिखेरती है
और जिसे तुम अपनी साँसों में भरकर
 अपनी धडकनों का हिस्सा बना सको
और मेरे अस्तित्व की सार्थकता को
एक नया आयाम दे सको ,

मै तुममे यूँ ही घुलकर तुम्हें जीवन
और तुम्हें खुद में समेटकर
खुद को प्रकृति बना लेना चाहती हूँ !!



      अर्चना "राज "








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