Saturday 21 April 2012

बचपन सुहाना

बहुत याद आता है बचपन सुहाना

गाँवों के रस्ते पे मिटटी उड़ाना
भरी दुपहरी में अमराई जाना
अमिया के चक्कर में बाज़ी लगाना
यूँ गिरते पड़ते ही मौजें मनाना
बहुत याद आता है बचपन सुहाना ,

भाई बहनों संग मिलकर हंगामा मचाना
जलती धूप में नंगे पैरों भटकना
माँ का वो कसकर इक चांटा लगाना
रोते हुए ही फिर मुझको मनाना
बहुत याद आता है बचपन सुहाना ,

वो अंधी बुढ़िया को हरदम सताना
खीझे जो वो तो ठहाके लगाना
उसकी लाठी को लेकर फिर दौड़ जाना
गलियां उसकी सुनकर भी उसको चिढाना
बहुत याद आता है बचपन सुहाना ,

खेतों की मेड़ों पे चक्कर लगाना
गेहूं की बाली से दाने चुराना
भाई का हंसकर यूँ आँखे दिखाना
फिर खुद ही हाथों में भरकर थमाना
बहुत याद आता है बचपन सुहाना ,

बरगद के नीचे गुड्डे - गुडिया बनाना
सखियों संग मिलकर फिर ब्याह रचाना
बिदाई के वक्त कुछ आंसू बहाना
इक दूजे संग फिर खूब खिलखिलाना
बहुत याद आता है बचपन सुहाना ,

बहुत याद आता है बचपन सुहाना !!

अर्चना "राज "

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