मै तुम्हारे घर के दहलीज़ की
वो चौखट हो जाना चाहती हूँ
जो तुम्हारे कदमो के स्पर्श से
न जाने कितनी बार सिहर उठा होगा
पर रुक कर जिसे एक नज़र देखना भी
तुमने कभी गवारा नहीं किया ,
मै एक लम्बी सडक का
वो हिस्सा भी होना चाहती हूँ
जहां तुम हर रात टहलते हुए
कुछ पलों की तन्हाई को जिया करते हो
और जहां तुम्हारे कदमो की थपकियाँ
हर बार मेरी धडकनों में
कुछ और स्पंदन जगा देती हैं ,
मै मील का वो पत्थर होने को भी तैयार हूँ
जहां से तुम हर बार
अनायास ही अपने घर की दूरी नाप लिया करते हो
पर जिसका बदरंग होना तुम्हें नज़र नहीं आता
और न ही दिनों दिन मेरा उम्रदराज़ होना ,
मै तुम्हारे कल्पनाओं की
वो सरहद भी हो जाना चाहती हूँ
जहां तुम्हारी सोच का हर सिरा
मुझ तक ही आकर थम जाया करे
और मै हर बार
तुम्हारे ख्यालों की रहगुजर से गुजर कर
खुद को गर्वित महसूस कर सकूं ,
तुम्हारी ख़ामोशी से उपजी
वो एक मौन आह भी मै होना चाहती हूँ
जो तुम्हारे अहसासों में बसकर
तुम्हारी धडकनों में दर्द की अभिव्यक्ति हो जाया करती है ,
और इसी एकांत से उपजा
वो एक अश्क भी मै ही होना चाहती हूँ
जो पूरी शिद्दत से थामे रखने के बावजूद भी
तुम्हारी आँखों से छलक ही जाती है
और एक बार फिर मेरा यकीन मुझमे
और गहराने लगता है
की जिस तरह मै भीतर-बाहर से
सिर्फ "तुम "हो जाना चाहती हूँ
शायद वैसे ही तुमने भी मुझे
अपने अंतर्मन में दर्द सा संभाल रक्खा है
और यही सुकून मेरी साँसों में बस जाता है
सदियों तलक तुममे ज़ज्ब हो जाने के लिए !!
अर्चना "राज "
वो चौखट हो जाना चाहती हूँ
जो तुम्हारे कदमो के स्पर्श से
न जाने कितनी बार सिहर उठा होगा
पर रुक कर जिसे एक नज़र देखना भी
तुमने कभी गवारा नहीं किया ,
मै एक लम्बी सडक का
वो हिस्सा भी होना चाहती हूँ
जहां तुम हर रात टहलते हुए
कुछ पलों की तन्हाई को जिया करते हो
और जहां तुम्हारे कदमो की थपकियाँ
हर बार मेरी धडकनों में
कुछ और स्पंदन जगा देती हैं ,
मै मील का वो पत्थर होने को भी तैयार हूँ
जहां से तुम हर बार
अनायास ही अपने घर की दूरी नाप लिया करते हो
पर जिसका बदरंग होना तुम्हें नज़र नहीं आता
और न ही दिनों दिन मेरा उम्रदराज़ होना ,
मै तुम्हारे कल्पनाओं की
वो सरहद भी हो जाना चाहती हूँ
जहां तुम्हारी सोच का हर सिरा
मुझ तक ही आकर थम जाया करे
और मै हर बार
तुम्हारे ख्यालों की रहगुजर से गुजर कर
खुद को गर्वित महसूस कर सकूं ,
तुम्हारी ख़ामोशी से उपजी
वो एक मौन आह भी मै होना चाहती हूँ
जो तुम्हारे अहसासों में बसकर
तुम्हारी धडकनों में दर्द की अभिव्यक्ति हो जाया करती है ,
और इसी एकांत से उपजा
वो एक अश्क भी मै ही होना चाहती हूँ
जो पूरी शिद्दत से थामे रखने के बावजूद भी
तुम्हारी आँखों से छलक ही जाती है
और एक बार फिर मेरा यकीन मुझमे
और गहराने लगता है
की जिस तरह मै भीतर-बाहर से
सिर्फ "तुम "हो जाना चाहती हूँ
शायद वैसे ही तुमने भी मुझे
अपने अंतर्मन में दर्द सा संभाल रक्खा है
और यही सुकून मेरी साँसों में बस जाता है
सदियों तलक तुममे ज़ज्ब हो जाने के लिए !!
अर्चना "राज "
वाह.............
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत एहसास............
अनु