सदियों कैद रहे
शीशे के एक बड़े से पारदर्शी कमरे में ;
जहाँ ठीक बीचोंबीच मौजूद थी
शीशे की एक मजबूत सी दीवार भी,
देखते और महसूस करते रहे वो एक दुसरे का होना ..क़यामत की तरह ,
बेचैन धड़कने अचानक घबराकर थम सी जातीं ;
और फिर अनायास ही बेहिसाब धड्क्तीं ,
दीवार की दोनों तरफ दोनों थे ;पर आधे - आधे बंटे हुए ,
दोनों की आँखों से छलकती अब्र की बूँदें ..दोनों को
दो अलग-अलग जिस्मो के आधे -आधे बंटे हिस्से के
एक होने का सा सुकून देते ,
अजब सी बेचैनी ; जब उनके दामन से पिघलकर
खुशबुओं सी बिखरने लगती ;
तब पास बहती नदी तक दोनों साथ जाते
एक साथ ..पर वही, आधे-आधे बंटे हुए ,
इश्क की बेईन्तहाँ आवारगी ;उनकी उँगलियों में सिमटने लगती;
पर छूने की कोशिश में एक सर्द और कठोर दीवार से टकरा जाती,
दरअसल , वो शीशे का कमरा तो वहीँ रहता
पर बीच की दीवार इनको नामालूम सी , इनके साथ चलती,
यहाँ भी .... बीच में ,
अहसासों के तमाम जंगलों की ख़ाक छानते ;
दिन भर यहाँ वहां भटकते ;
और फिर थककर नदी की ठंडी धारा में पैर डुबो देते,
साफ़ पानी में अपना अक्स देखते
पर फिर वही .... बंटा हुआ,
मासूमियत बगावत में बदलने लगती; पर फिर
बेचारगी रात की स्याह चादर सी
उनकी उम्मीदों पर छा जाती ,
दोनों थके कदमो से मायूस;खामोश वापस लौटते;
और एक बार फिर कैद हो जाते ;
शीशे के उसी कमरे के अपने अपने हिस्से में;
जहाँ मौजूद थी ठीक बीचोंबीच
वही कमबख्त ..मजबूत शीशे की दीवार ,
रात भर दोनों देखते रहते तप्त आँखों से
की किस तरह लहराती सी चांदनी
इठलाती ..बलखाती; किसी के आगोश में सिमटने को
दौड़ी सी चली जाती है ,
वो उसके आगोश में होने को महसूस करते
रात भर ..पर एक दुसरे की धडकनों में.. उनकी लय में
बेचैन आँखों से देखते हुए ;
और यूँ ही सदियाँ गुजरती रहीं
रात की तन्हाई के साए सी....!!!!
अर्चना "राज "
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