अनगिनत शामों के
तमाम हसीन लम्हों को कुचलकर
किसी ने लिख दिया है उसीसे
आंसू,
तमाम हसीन लम्हों को कुचलकर
किसी ने लिख दिया है उसीसे
आंसू,
कहीं दूर कोई एक और शख्स
लिख रहा है अब तक
बस प्रेम
बच गयी यादों को थामे,
लिख रहा है अब तक
बस प्रेम
बच गयी यादों को थामे,
दोनों अपने -अपने दर्द को समेटे लङ रहे हैं
खुद ही खुद से।।
खुद ही खुद से।।
हर बात मेरी हर बार रही
आधी -आधी,
आधी -आधी,
पूरे थे अहसासात मगर
पूरे थे सब जज्बात मगर,
पूरे थे सब जज्बात मगर,
मैं यूँ थी कि
जिस राह चली वो राह रही
आधी -आधी।।
जिस राह चली वो राह रही
आधी -आधी।।
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