रात की उनींदी आंखों ने कुछ गुनाह लिखे
कर दिया मुहब्बत के हवाले उसे
रख दिया वैसे ही वक्त की लाइब्रेरी में
जिंदगी के बाकीे अहम दस्तावेजों के साथ,
कर दिया मुहब्बत के हवाले उसे
रख दिया वैसे ही वक्त की लाइब्रेरी में
जिंदगी के बाकीे अहम दस्तावेजों के साथ,
अब गुनाह भी इन प्यासी गलियों का किस्सा है
अब शर्म भी इस अजीम अहसास का हिस्सा है,
अब शर्म भी इस अजीम अहसास का हिस्सा है,
सुबह की धूप ने कुछ और सियाह कर दिया है उसे
फेर दी है मनहूसियत की कूची उसपर
बोझ फलक तक है
तकलीफ हलक तक
पर निजात दिखती नहीं कहीं,
फेर दी है मनहूसियत की कूची उसपर
बोझ फलक तक है
तकलीफ हलक तक
पर निजात दिखती नहीं कहीं,
कि यूँ ही डूबे रहना है तमाम उम्र तक
सिर झुकाए
दर्द का वाहियात बोझ उठाये
लिखते रहना है एक गीत मुहब्बत का
जिसकी एक पंक्ति इबादत की हो
एक माफी की
हमनफज मेरे।।
सिर झुकाए
दर्द का वाहियात बोझ उठाये
लिखते रहना है एक गीत मुहब्बत का
जिसकी एक पंक्ति इबादत की हो
एक माफी की
हमनफज मेरे।।
कुछ शब्द रात के माथे पर खुदे है
कुछ चाँद के सीने पर
कुछ सितारों के आँचल पर
तो कुछ परछाई के भीतर,
कुछ चाँद के सीने पर
कुछ सितारों के आँचल पर
तो कुछ परछाई के भीतर,
तासीर सबकी पर एक सी
थोड़ी गरम, थोड़ी तीखी
कुछ कसैली सियाह सी,
थोड़ी गरम, थोड़ी तीखी
कुछ कसैली सियाह सी,
कि मानो इश्क ने खुद को
कहवे सा बना डाला है
पीती हूँ जिसको घूँट -घूँट मैं
पीता है जिसको घूँट -घूँट वो,
कहवे सा बना डाला है
पीती हूँ जिसको घूँट -घूँट मैं
पीता है जिसको घूँट -घूँट वो,
जिन्दगी की तरह जीने के लिए।।
शाम की हथेली में दर्द घिस दिया है
शाम पीली हो उठी
कि जैसे शादी में हल्दी की रस्म ,
शाम पीली हो उठी
कि जैसे शादी में हल्दी की रस्म ,
शाम खुद ब खुद निखरने लगी
शाम खुद ब खुद डरने लगी ,
शाम भ्रम में थी
दर्द और हल्दी के बीच ,
शाम खुद ब खुद डरने लगी ,
शाम भ्रम में थी
दर्द और हल्दी के बीच ,
अमूमन तकलीफ कम हो जाती है हल्दी के बाद
पर यहाँ जायका कुछ कसैला निकला
कुछ क्या बेहद ,
पर यहाँ जायका कुछ कसैला निकला
कुछ क्या बेहद ,
शाम धीरे-धीरे स्याह हो उठी
मानो आज दर्द ने कब्ज़ा लिया हो
तमाम पीले सुकून को
जो कभी अमलतास सा होता था
तो कभी सूरजमुखी सा ,
मानो आज दर्द ने कब्ज़ा लिया हो
तमाम पीले सुकून को
जो कभी अमलतास सा होता था
तो कभी सूरजमुखी सा ,
शाम फिर भी हंस रही है
चाँद काला पड गया है !!
चाँद काला पड गया है !!
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