Sunday 6 November 2011

मासूम सी बच्ची

वो एक छोटी सी , मासूम सी बच्ची
जिसकी पनीली आँखों में पलती थीं
कुछ मासूम सी ख्वाहिशें ....

सूखे होंठ ; ज़र्द चेहरा  और मुरझाई उदास आँखों से
ढूंढती थी अक्सर , मीठे सपनो का बंद दरवाज़ा ;
जिसके पार शायद किसी ग्लास में कुछ दूध बचा हो ;
या फिर टाफियों के कुछ टुकड़े हों ;
शायद मिठाइयों के कुछ चूरे भी हों.....

वो इन्हें देखकर ही खुश हो लेगी
जैसे अक्सर हुआ करती है,
उस वक्त उसके मुंह में आये पानी का स्वाद भी
न जाने कैसे मीठा सा हो जाता है,
वो हंस पड़ती है......

अचानक ही जैसे एक कडवाहट सी
तैर जाती है ; बेचारगी की ,

गर्म आंसुओं का नमक भी
आँखों में ही सूख जाता है ,
उसकी आँखों में पलती चाहतें
धीरे धीरे दम तोड़ने लगती हैं ,
और वो रह जाती है तनहा
उन्हीं फटी - मटमैली चाहतों, टूटते सपनो
और स्याह चेहरे के साथ .....

वो खोजती है अब अपनी माँ का चेहरा
उन असंख्य चाँद तारों के बीच ,
जहाँ वो चली गयी है , उसे यूँ ही अकेला छोडकर
हमेशा के लिए.....

चुपचाप , यूँ ही  थकी सी चाहतों का भार लादे
वो ज़मीन पर लेट जाती है ,
भूख और तन्हाई का बोझ
और धोने की हिम्मत
शायद बाकी नहीं रही उसमे......

वो एक छोटी मासूम सी बच्ची
जिसकी पनीली आँखों में जगती हैं
कुछ मासूम सी ख्वाहिशें ....

जो अक्सर ही पूरा होने से पहले
दम तोड़ देती हैं ..

कई प्रश्न जागते हैं
उसकी नींद से बोझिल आँखों में
पर हमेशा की तरह
अनुत्तरित ही रह जाते हैं ....!!!!


                  अर्चना राज !!!






तुम समझ पाते

समंदर के आईने में
गहराता एक अक्स
समेट लेता है ; उन सारे आवेगों को
जो मेरे अंतस में है.......

अनायास ही तुम धड़कने लगते हो
इन तमाम हलचलों में ;
बार बार किनारे से टकराकर
लहरें .... जो मेरे दिल में जगाती हैं .....

छू लेते हो तुम
मेरे जज्बातों को,
,पर तुम्हारा अहसास
बिलकुल अनछुआ सा लगता है ;...

मै तो इक लहर हूँ
टकराकर लौट जाना ही मेरी नियति है,
किनारा बनकर भी तुम
क्यों नहीं मुझे अपने आगोश में समेट पाते...

समेट पाते जो मेरे हम्न्फ्ज़ कभी मुझको
तो फिर शायद ये भी समझ पाते
की किस तरह इस सारे जहाँ को
अहसासों की नमी से भिगोया जाता है .....


मेरे हम्न्फ्ज़ की किस तरह
इन अहसासों को जिया जाता है ....!!!!!


                               रीना!!!!