Friday 30 December 2011

दर्द


सुलगते दर्द का सुर्ख अँधेरा
जला करता है
शब् भर मुझमे
कुछ इस कदर ;

कि बदल जाती हूँ मै
दरिया-ए- शबनम में
और बिखर जाती हूँ
सारी कायनात में
नाकाम तबस्सुम जैसी ....!!!


शबनम - ओस
कायनात -जहाँ
तबस्सुम - हंसी


                  अर्चना राज !!

चाहत


तेरी चाहत का आइना पिघलकर
जब मेरी रगों में
गर्म तबस्सुम सा बिखरने लगता है ;

नज़र आने लगती हूँ मै भी लोगों को
सुर्ख कांच की
इक बेजान मूरत जैसी;

साँसें तो चलती हैं
पर दिल धडकता नहीं है मेरा ;

जैसे बेचैन से समंदर में
इक मोती .. सदियों तक
ठहरे हुए अश्क सा पलता है ..!!!


                       अर्चना राज !!

तुम


रुई के फाहों की
नर्म आहट हो  जैसे;
गुजरते रहते  हो तुम
कुछ यूँ मेरे ख्यालों से ,

फिसल जाती  हैं कुछ बूंदे
मेरी आँखों में
बादलों के दामन से ;

और ठहर जाती हूँ मै भी
तेरी हथेली में
तेरी तकदीर बनकर ;

की तेरा ख्याल ही
अब तेरा साया बनकर
हर वक्त
मेरे आस पास रहता है ;

मेरे हम्न्फ्ज़     !!!

         अर्चना राज !!




तहजीब

सालों साल इक तहजीब पलती है
हम सबमे ...संस्कारों की शक्ल में ,

जड़ें इतनी मजबूत होती हैं की
अक्सर इंसान ही
मर जाया करता है
इनके उखड़ने से पहले !!


           अर्चना राज !!





तेरा होना !

मेरी रूमानियत की
दहलीज़ से गुजरकर
मेरे अहसासों पर
इक सख्त कदम रखना;

थम जाना कहीं दूर .. बहुत दूर
मेरी पहुँच के
अंतहीन दायरे से भी बाहर;

तुझे देखने .. तुझे महसूस करने
कि तमाम कोशिशें
जिस एक वक्त
बिलकुल नाकाम सी
नज़र आएँगी मुझे;

शायद तब ही
तेरा होना ..तेरा वजूद
एक सुर्ख फूलों के
दरख़्त कि मानिंद
मेरे अन्दर
अपना जीवित
विस्तृत आकार लेगा
मेरे हम्न्फ्ज़ !!!


             अर्चना राज !!

Thursday 29 December 2011

ख़ामोशी

ख़ामोशी


तुम्हारे और मेरे
प्रेम के बीच                                                      
पसरी ख़ामोशी की
स्पष्ट अभिव्यक्ति                                                                     
हमारी आँखों में उभरकर
अब इक प्रश्न सी                                                                          
नज़र आने लगी है ;

ख़ामोशी को शब्दों का
इक नया आयाम देने
और उसके अहसासों को
एक नया रूप देने की कोशिश में
हम दोनों ही
क्यों कुछ और खामोश
हो जाया करते हैं;

क्यों नहीं शब्दों से
अपना तारतम्य बनाये रखकर
अपनी ख्ह्वाहिशें
एक दुसरे से बाँट पाते हैं ;
उन्हें सतरंगी खुशियों में बदल पाते हैं;

क्यों ध्रुव तारे की सी चमक
हमारे कोरों पर ठहरे
अश्कों में नज़र आने लगी है;
चाहत के आसमान में
जो अपनी नियति
सदा ही अवश्यम्भावी
बनाये रखती है;

प्रेम में
येकैसी
अनिश्चितता है;
बिखर गयी है जो
हम दोनों के बीच
अनायास ही;
और खड़ी है
नागफनी के
अपने विराट  रूप में ;
चुनौती देते हुए हमें;
हमारे विशवास और समझ को ;
कि..भरोसा है अगर
तो बढ़ो आगे;
पार करो मुझको
और जीत लो
अपने उस प्रेम को
जो इस धरती पर
युगों युगों से
जीवित और स्थापित है
अपनी सम्पूर्ण गरिमा के साथ;

आओ और वो उत्तर
जो कैद है
हमारी ही खामोशियों के दायरे में ;
उन्हें अब हम ही मुक्त
और स्वीकार करें
सम्मान सहित
मेरे हम्न्फ्ज़ ....!!!


     अर्चना राज !!

Tuesday 20 December 2011

तुम हो

तुम हो
कहीं भी ...
पर मेरे लिए हो
ये जानती हूँ मै,
यही मानना चाहती हूँ मै ;
तुम्हारा वजूद
तुम्हारा अहसास
तुम्हारा समस्त प्यार
सब मेरे लिए है ,
 तुम्ही ने तो कहा था न
ये सब  ..... उस शाम
भीगी आँखों से
भावनाओं में डूबकर ;
फिर इसे कैसे झुठला दूं ;
कैसे सोचूँ
की तुम गलत थे ;
गलत तो तुम
हो ही नहीं सकते ,
भले ही अब तुम
मेरे साथ नहीं हो ;
पर तुम सच हो ,
हमेशा
मेरे लिए ....!!


                              अर्चना राज !!