Monday 31 October 2011

पूरे दिन की ख़ामोशी
सारी रात की तन्हाई
शून्य सा लगता अस्तित्व .....

जहन में घूमते रहते हैं
कुछ शब्द....अंधड़  से .....

जिनकी कोई पहचान नहीं ;
उन शब्दों का कोई अर्थ नहीं ;
कोई महत्व भी नहीं.......

ये तो बस विचरते हैं ..बेवजह
बिना किसी सिरे के ......

जो उनका कोई छोर पकड़ पाती
कोई नाम दे पाती ;
तब शायद उनका कोई अर्थ होता ;
महत्व होता.......

अभी तो बस एक शून्य है
जिसे ओंकार (ॐ ) में
परिवर्तित करना है ;
इसकी स्वर लहरी के साथ
जीना है ......सारी उम्र .....ख़ामोशी से .....!!!!!



                                     रीना !!!!!



































Sunday 30 October 2011

तुम्हारे शब्द

तुम्हारे शब्द
बेशकीमती हैं मेरे लिए ,

मेरे हम्न्फ्ज़ .....

तुम्हारे शब्दों ने ही मुझे
आम होने की लीक से हटाकर
कुछ ही पलों में बेहद खास बना दिया है.......

ये विशेषता का भाव
जो मुझे खुद में विशिष्ट बनाता  है ,
तुम्हारे ही शब्दों का तो जादू है........

ये तुम्हारे ही शब्द थे
मेरे हम्न्फ्ज़
जिसने मुझे मेरी बात कहने
और खुद को समझने को प्रेरित किया
उत्साहित किया.......

अक्सर ही आसमान में कुछ
अक्स उभरते हैं ,
क्योंकि तुमने ही उन पर खिंची
लकीरों का जिक्र किया था ,
कुछ खूबसूरत रेखाचित्रों की
सम्भावना जताई थी......

तुम्हारे शब्दों का ही जादू है
कि चाँद अब और सुंदर नज़र आता है,
सूरज कि तपिश भी भली सी लगती है,
नदियों से निकलती कल कल कि ध्वनी
कुछ और मधुर लगने लगी है,
फूलों के बेहिसाब रंग कुछ और खूबसूरत ;
उनकी खुशबू कुछ और मादक सी लगने लगी है......

तुम्हारे शब्द मुझमे
कामनाओं का समंदर लहरा देते हैं ;
और तुम्हारे ही शब्द
मुझे बिखरने से
डूबने से ...रोक लेते हैं.....

तुम्हारे शब्दों कि उत्तेजना मुझे कंपा जाती है
पर उसका ठहराव मुझे संयमित भी रखता है,
तुम्हारे शब्द कई बार मेरी आँखों में
एक दर्द ...इक चाह जगा देते हैं ;
पर वो तुम्हारे ही शब्द हैं
जिनमे मै मर्यादा के अर्थ ढूंढ पाती  हूँ........

तुम्हारे शब्दों ने मुझे
प्रेम के कई सोपानो से परिचित कराया है;
और प्रेम के कई आयामों को जिया है मैंने
तुम्हारे ही शब्दों में ...मेरे हम्न्फ्ज़ ........

मै तुम्हारे शब्दों का संबल होना चाहती हूँ;
तुम्हारे शब्दों के आकर प्रकार में
मै ढल जाना चाहती हूँ ;
मात्र प्रतिबिम्ब नहीं
तुम्हारे शब्दों का प्रतिरूप होना चाहती हूँ मै
मेरे हम्न्फ्ज़ .....!!!!!


                    रीना!!!!


















































Saturday 29 October 2011

यूँ तो

यूँ तो मेरी जिन्दगी में
कहीं कोई कमी नहीं थी
मेरे हमनफ्ज़ ........
फिर भी न जाने क्यों
एक खलिश
कांच के टुकड़ों सी
हर सांस .....चुभती थी.....

किनारे से टकराकर लहरें
बार बार जब वापस लौट जातीं
यूँ ही ......मायूस
तब आँखों में एक हल्की गर्म
नमी सी उगती ......

जिस दिन सूरज जल्दी डूब जाता
उस रात के सन्नाटे में
मेरी आँखे चुपचाप
न जाने किसे खोजा करती .......

क्या था वो .....जो रह रहकर
अधूरा सा लगता था........

आज जब तुम मेरे पास हो
मेरे पहलू में ,
शायद समझ पायी हूँ ......

तुम्हारे न होने का अहसास
रीतेपन की अनुभूति
खामोश....सरकता जीवन ,
यही सारे रंग घुलमिलकर
एक जाना पहचाना सा चित्र  बनाते हैं,
जिन्हें मै अब
सात परतों के नीचे
दफ़न कर देना चाहती हूँ........

अब तो बस
कुछ मासूम सी ख्वाहिशें
अंगडाइयां लेने लगी हैं ..अंतस में
जाने अनजाने .....

तुम्हारे साथ लहरों में
घंटों अठखेलियाँ करूं,.....

या गीली रेत पर नंगे पाँव
हाथों में हाँथ डाले
दूर तक ....बस यूँ ही ...चुपचाप
तुम्हारे संग चलती चली जाऊं ......

या फिर रात की तन्हाई में
बैठे हों हम दोनों ...आमने सामने ,
दिए की टिमटिमाती रौशनी में
एक दुसरे को धडकता हुआ महसूस करते......
सारी रात ठहरे हुए होने की जद्दोजहद करते
जूझते ..बेचैन सवालों से,
फिर अनायास ही हंस देते........

सूरज की पहली रौशनी से
ये सारे सवाल एक एक कर पिघल जाते
और सामने तैरने लगता ...एक दरिया
मासूम अहसासों का........
जिसमे डूब जाने के लिए
मै तमाम उम्र यूँ ही
तुम्हारे पहलू में सिमटी रहूँ
मेरे हमनफ्ज़ .....

वैसे , यूँ तो कोई कमी नहीं थी
मेरी जिन्दगी में ,
पर अब
सम्पूर्ण होने के मायने
कुछ ख़ास अहसासों के साथ
तुम्हारे साथ हैं .....मेरे लिए

मेरे हमनफ्ज़ ......!!!!!

   
                        रीना !!!!!!!







































































 

Friday 21 October 2011

इश्क के वो रंग जो दर्द में डूबकर ; अश्कों में घुलकर अहसासों की इक तस्वीर बनाते हैं ........

ओस की परछाइयाँ नहीं होतीं और सूरज में नमी नहीं होती ;पर फिर भी दोनों के जीवन
का एक -दूसरे से कितना गहरा रिश्ता है ..... क्या हम सोचते हैं कभी इस बारे में ?????



दर्द जो मेरा खून सा रोये
दरिया सारा आंसू पिए
तब मानोगे प्यार है तुमसे !!!!
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                                            जो रो पाऊं थोडा 
                                            तो शायद दर्द का  पत्थर पिघल जाए ;
                                            तुम्हारी याद से
                                             ये और भी भारी हुआ जाता है!!!!!!!
                                             *************************


दर्द के आसमान से
आंसुओं की बारिश ;
दिल की अंजुली में भरकर
जो सारे पी पाऊं
तो शायद चैन आये!!!!!!!
*****************


                                               तेरी आवाज़ सुन लूं तो
                                               ये साँसें लौट आएँगी;
                                                बिना तेरे ; मेरे हमदम
                                                जिया जाता नहीं मुझसे !!!!!
                                                 **********************

सीने में इक चाह बहुत
शफ्फाक गुलाबी ;
तेरे होठों पर
अपने कुछ आंसूं रख दूं!!!!!
*******************

                                                 एक समंदर
                                                  दर्द का ....अंदर
                                                   पीना भी है
                                                   सीना भी है!!!!!
                                                  *************

मुस्कान जो उस रोज
तेरे होठों से फिसली थी;
आंसू बनाकर उसे  मेरी आँखों ने
अब तक संभाल रक्खा है!!!!!
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                                                        इक ख्वाब ही तो देखा था
                                                         जो अब मुमकिन नहीं लगता
                                                         यही अहसास दिल को
                                                         खून के आंसू रुलाता है!!!!!
                                                          *******************


जब भी याद आती है
मुझे तेरी ...मेरे हमदम
मै बस खामोश सिमटी सी
तेरी हर प्यास जीती हूँ!!!!!
********************

                                                तेरी आवाज़ का अहसास
                                                 बिलकुल नर्म रेशम सा ;
                                                  काँटों सा क्यूँ चुभता है
                                                  मेरी तन्हाई में अक्सर !!!!
                                                 ********************

तेरी उदासी से घुली शाम
जिसे मैंने आंसुओं संग पी लिया है ;
तू अब चाहे भी अगर मुझसे
तो उसे लौटा नहीं सकती!!!!!
*******************

                                                  चांदनी की वो शोख सी मुस्कराहट 
                                                   जब दर्द से कुछ और भर देती है;
                                                   मै तनहा खड़ी छत के किसी कोने में
                                                   तेरी यादों से लिपटकर थोडा और रो लेती हूँ !!!!
                                                    ********************************



                रीना!!!!!!!














































Thursday 20 October 2011

स्तब्ध

मै स्तब्ध हूँ ;
शून्य हो गयी हूँ,
क्या कोई अहसास
इस कदर भी
एक गुनगुनी सी
ख़ामोशी दे जाता है.....

किसी के कहे
कुछ ही शब्द
उसकी नमी में
डूबी आवाज़
अन्दर से
बेतरह भिगो देती है......

क्या है ये
क्यों है ये ;तब ?
जबकि अब तो इसकी
उम्मीद भी बाकी नहीं थी .......

हाँ !  ये सच है
चाहा था कभी मैंने भी
कुछ मोतियों को
अपने दामन में सजाने के लिए......

पर ये तो मानो
पूरा दरिया ही
मेरे सामने लौट आया है
अहसासों का......

जिसने पूरी उदारता से
खोल दिया है
अपनी तमाम सीपियों को
मेरे लिए ;
और अनगिनत मोती
ओस की तरह
मेरे अहसासों पर छा गए हैं ;
मै भीग गयी हूँ
आत्मा तक......

फिर ये कैसा डर है;
कैसी झिझक है ....

मेरे हाथ आगे क्यों नहीं बढ़ते
क्यों नहीं समेट पाती मै इन सबको ....

शायद फिर खोने से डरती हूँ ..

मै स्तब्ध हूँ ;
अवाक हूँ ,

क्योकि चाहते ; न चाहते हुए भी
ये अहसास मुझमे घुलते जा रहे हैं.......!!!!!


                             रीना!!!!













































































Tuesday 18 October 2011

मेरा मौन

तुम
मेरे मौन को
उसके शब्दों को
समझ सकते हो ;
या फिर बस यूँ ही
मुझे समझने की
बात कहते हो ,

बस कुछ कहने के लिए
यूँ ही कह देते हो ......

मेरे मौन की भाषा
मेरे उन शब्दों से बेहतर है ;
जो मै तुम्हें कभी कह नहीं सकती
जो मै तुम्हे कभी भी समझा नहीं सकती ....

अगर समझ सको तो समझ लो
वो , जो मैंने बस टूटकर  चाहा;
पर फिर भी न जाने क्यों
मेरा अन्तःस्थल
रेत सा ही रहा
बिखरा बिखरा सा......

कुछ नमी की उम्मीद
जो थी उन अहसासों से ;
कभी मिल ही नहीं पाई ......

पर अब
इतने वर्षों बाद अचानक
बादल घिर आये हैं ;
घनघोर बारिश का भी अंदेशा है......

पर डरती हूँ
की कहीं खो न दूं
अपने साँसों की डोर ;
कहीं मिट न जाऊं
उन तमाम सपनो के
सच की तरह
जो इन बीते वर्षों में
हर तन्हाई में देखे मैंने .....

तुम चुप क्यों हो ;
कहो न ; बार बार कहो
की तुम समझ सकते हो
मेरे मौन को ;
उसकी पीड़ा को .....

तुम्हारे शब्द
तुम्हारी आँखों की नमी
रुई के नर्म फाहे सी
मेरे जख्मो को ठंडक पहुंचाएगी;
और मै जी जाउंगी
एक बार फिर से
तुम्हारे लिए मेरे हमदम
सिर्फ तुम्हारे लिए.....!!!!!



                    रीना !!!!!


















































































Wednesday 12 October 2011

तुम


मेरे जीने में; मरने में
बस इक हसरत तुम्हारी है ,
मेरी साँसें चले बेशक
पर हर धड़कन तुम्हारी है .......

तुम्हे जब सोचती हूँ मै
करार आता है इस दिल को ,
मेरी बेचैनियाँ ... फिर क्यों
तुम्हे आवाज़ देती हैं ....

जो तुम सुन लो कभी इनको
तो बस कुछ यूँ भी कर देना,
छू लेना निगाहों से
हरारत मुझमे भर देना......

कभी तो पास आकर देख
मेरी आँखों का अफसाना ,
जो ढल जाएगा हौले से
तेरी आँखों में चाहत सा........

तेरे अहसास के मोती
मेरे दामन में भर देना ,
तेरे चाहत की इक चादर
मेरे ज़ख्मों पे रख देना.....

कर देना बस इतना तुम
पर मेरे साथ न आना,
ख़ुशी से मर न जाऊं मै
तू मेरे पास न आना......!!!!!!!!


                 रीना!!!!!!!!!!!!



























तुम्हारी ख़ामोशी

मै
तुम्हारी ख़ामोशी से
बातें करती हूँ
अक्सर......

तुम्हारी ख़ामोशी
ज्यादा मुखर है
तुम्हारे शब्दों से ....

तन्हाई का अहसास
अब बहुत सताता है ;
जब कहती हूँ ये ;
तब तुम मौन रहकर
क्यों बस चुपचाप
मुस्कुराते हो ......

कुछ बूँदें
जो मेरी पलकों पर थमी थीं ;
अब सूख गयी  हैं ;
पर उनकी लकीरें
अब भी मेरे चेहरे पर हैं ......

तुम्हारी मौन आँखें
अपलक उसे निहारती हैं ;
आहिस्ता से तुम छु लेते हो
उन लकीरों को;
अपनी  उँगलियों से ,
एक नमी सी  तैर जाती है
मेरे अंदर ........

तभी ख्वाब टूट जाता है
*****************
बेहद सन्नाटा है
मेरे अंदर
और बाहर भी .......

मै फिर से
बातें करना चाहती हूँ
तुम्हारी ख़ामोशी से ;
पर अब वो चुप है
कुछ नहीं कहती
न जाने क्यों ...!!!!!!!!!!!


       रीना !!!!!






































इक नज़्म

इक नज़्म मुहब्बत की , जो लिखी गयी थी ,
हम दोनों के बीच ;कभी ... अहसासों से ......

आज उसकी इबारतों के ;हर्फ़ भी ..हरसूं
बिखरे बिखरे से नज़र आते हैं .......

आंसुओं की पुरजोर कोशिश है
उन्हें समेटने की ,अपने पाक दामन में,

न जाने क्यों ,फिर भी उगने लगा है ..आहिस्ता से
दर्द का इक दरख़्त ......सीने में ......!!!!!


                        रीना !!!!!!!!








Tuesday 4 October 2011

भूकंप

प्रकृति का जब फूटा गुस्सा ,आया तब भूकंप ,
आया जब भूकंप देश में ,मानवता उठी कराह...

बिलख  रहे हैं बूढ़े बच्चे ,चले गए हैं जिनके अपने ,
किससे बोलें किससे पूछें ,कहाँ गए अब उनके अपने...

सूखी आँखें पत्थर चेहरा , सीने में है गहन निराशा ,
आओ हम सब कोशिश करके , भर दें उनमे फिर से आशा ...

हम भी हैं इन्सान मात्र ,ये हम पर भी हो सकता है,
प्रकृति ने समझाया है की ,राज उसी का चलता है.....

उनका जो इंसानी हक़ है ,रोटी कपडा और मकान,
वही दिलाएं उनको मिलकर ,तभी होंगे सच्चे इंसान ...

चलो दोस्तों ..करें मदद अब ,उनकी जो हम जैसे हैं ,
तो ही हम इंसान रहेंगे ,प्राणियों में जो बेहतर हैं ......!!!!!!!!!!!


                                         रीना !!!!!!!!!!!!!!









Saturday 1 October 2011

तुम्हे भी

तुम्हारी मौन सी आँखें
की जिनमे तैरते हैं शब्द ,
बस कुछ कह नहीं पाते
यूँ ही चुपचाप तकते हैं......

वो इक अहसास जगता है
तेरे शब्दों के मतलब का,
की जो तुम कह नहीं पाते
वो मेरा दिल समझता है......

तुम्हे पहचानती हूँ तबसे
जबसे ख्वाब देखा है ,
तुम्हे ही चाहती हूँ तबसे
जब चाहत को जाना है ......

मेरी  खिड़की से दिखता है
तेरी खिड़की का हर मंजर ,
की जब तू सोचता है कुछ
तो लगता है; वहां मै हूँ........

तुम्हारे प्यार का अहसास ही
जिन्दा   है   बस    मुझमे ,
कहो .... इक बार तो कह दो
तुम्हे भी प्यार है मुझसे ......!!!!!!


                  अर्चना राज !!!