Sunday 30 October 2011

तुम्हारे शब्द

तुम्हारे शब्द
बेशकीमती हैं मेरे लिए ,

मेरे हम्न्फ्ज़ .....

तुम्हारे शब्दों ने ही मुझे
आम होने की लीक से हटाकर
कुछ ही पलों में बेहद खास बना दिया है.......

ये विशेषता का भाव
जो मुझे खुद में विशिष्ट बनाता  है ,
तुम्हारे ही शब्दों का तो जादू है........

ये तुम्हारे ही शब्द थे
मेरे हम्न्फ्ज़
जिसने मुझे मेरी बात कहने
और खुद को समझने को प्रेरित किया
उत्साहित किया.......

अक्सर ही आसमान में कुछ
अक्स उभरते हैं ,
क्योंकि तुमने ही उन पर खिंची
लकीरों का जिक्र किया था ,
कुछ खूबसूरत रेखाचित्रों की
सम्भावना जताई थी......

तुम्हारे शब्दों का ही जादू है
कि चाँद अब और सुंदर नज़र आता है,
सूरज कि तपिश भी भली सी लगती है,
नदियों से निकलती कल कल कि ध्वनी
कुछ और मधुर लगने लगी है,
फूलों के बेहिसाब रंग कुछ और खूबसूरत ;
उनकी खुशबू कुछ और मादक सी लगने लगी है......

तुम्हारे शब्द मुझमे
कामनाओं का समंदर लहरा देते हैं ;
और तुम्हारे ही शब्द
मुझे बिखरने से
डूबने से ...रोक लेते हैं.....

तुम्हारे शब्दों कि उत्तेजना मुझे कंपा जाती है
पर उसका ठहराव मुझे संयमित भी रखता है,
तुम्हारे शब्द कई बार मेरी आँखों में
एक दर्द ...इक चाह जगा देते हैं ;
पर वो तुम्हारे ही शब्द हैं
जिनमे मै मर्यादा के अर्थ ढूंढ पाती  हूँ........

तुम्हारे शब्दों ने मुझे
प्रेम के कई सोपानो से परिचित कराया है;
और प्रेम के कई आयामों को जिया है मैंने
तुम्हारे ही शब्दों में ...मेरे हम्न्फ्ज़ ........

मै तुम्हारे शब्दों का संबल होना चाहती हूँ;
तुम्हारे शब्दों के आकर प्रकार में
मै ढल जाना चाहती हूँ ;
मात्र प्रतिबिम्ब नहीं
तुम्हारे शब्दों का प्रतिरूप होना चाहती हूँ मै
मेरे हम्न्फ्ज़ .....!!!!!


                    रीना!!!!


















































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