Friday 30 December 2011

दर्द


सुलगते दर्द का सुर्ख अँधेरा
जला करता है
शब् भर मुझमे
कुछ इस कदर ;

कि बदल जाती हूँ मै
दरिया-ए- शबनम में
और बिखर जाती हूँ
सारी कायनात में
नाकाम तबस्सुम जैसी ....!!!


शबनम - ओस
कायनात -जहाँ
तबस्सुम - हंसी


                  अर्चना राज !!

चाहत


तेरी चाहत का आइना पिघलकर
जब मेरी रगों में
गर्म तबस्सुम सा बिखरने लगता है ;

नज़र आने लगती हूँ मै भी लोगों को
सुर्ख कांच की
इक बेजान मूरत जैसी;

साँसें तो चलती हैं
पर दिल धडकता नहीं है मेरा ;

जैसे बेचैन से समंदर में
इक मोती .. सदियों तक
ठहरे हुए अश्क सा पलता है ..!!!


                       अर्चना राज !!

तुम


रुई के फाहों की
नर्म आहट हो  जैसे;
गुजरते रहते  हो तुम
कुछ यूँ मेरे ख्यालों से ,

फिसल जाती  हैं कुछ बूंदे
मेरी आँखों में
बादलों के दामन से ;

और ठहर जाती हूँ मै भी
तेरी हथेली में
तेरी तकदीर बनकर ;

की तेरा ख्याल ही
अब तेरा साया बनकर
हर वक्त
मेरे आस पास रहता है ;

मेरे हम्न्फ्ज़     !!!

         अर्चना राज !!




तहजीब

सालों साल इक तहजीब पलती है
हम सबमे ...संस्कारों की शक्ल में ,

जड़ें इतनी मजबूत होती हैं की
अक्सर इंसान ही
मर जाया करता है
इनके उखड़ने से पहले !!


           अर्चना राज !!





तेरा होना !

मेरी रूमानियत की
दहलीज़ से गुजरकर
मेरे अहसासों पर
इक सख्त कदम रखना;

थम जाना कहीं दूर .. बहुत दूर
मेरी पहुँच के
अंतहीन दायरे से भी बाहर;

तुझे देखने .. तुझे महसूस करने
कि तमाम कोशिशें
जिस एक वक्त
बिलकुल नाकाम सी
नज़र आएँगी मुझे;

शायद तब ही
तेरा होना ..तेरा वजूद
एक सुर्ख फूलों के
दरख़्त कि मानिंद
मेरे अन्दर
अपना जीवित
विस्तृत आकार लेगा
मेरे हम्न्फ्ज़ !!!


             अर्चना राज !!

Thursday 29 December 2011

ख़ामोशी

ख़ामोशी


तुम्हारे और मेरे
प्रेम के बीच                                                      
पसरी ख़ामोशी की
स्पष्ट अभिव्यक्ति                                                                     
हमारी आँखों में उभरकर
अब इक प्रश्न सी                                                                          
नज़र आने लगी है ;

ख़ामोशी को शब्दों का
इक नया आयाम देने
और उसके अहसासों को
एक नया रूप देने की कोशिश में
हम दोनों ही
क्यों कुछ और खामोश
हो जाया करते हैं;

क्यों नहीं शब्दों से
अपना तारतम्य बनाये रखकर
अपनी ख्ह्वाहिशें
एक दुसरे से बाँट पाते हैं ;
उन्हें सतरंगी खुशियों में बदल पाते हैं;

क्यों ध्रुव तारे की सी चमक
हमारे कोरों पर ठहरे
अश्कों में नज़र आने लगी है;
चाहत के आसमान में
जो अपनी नियति
सदा ही अवश्यम्भावी
बनाये रखती है;

प्रेम में
येकैसी
अनिश्चितता है;
बिखर गयी है जो
हम दोनों के बीच
अनायास ही;
और खड़ी है
नागफनी के
अपने विराट  रूप में ;
चुनौती देते हुए हमें;
हमारे विशवास और समझ को ;
कि..भरोसा है अगर
तो बढ़ो आगे;
पार करो मुझको
और जीत लो
अपने उस प्रेम को
जो इस धरती पर
युगों युगों से
जीवित और स्थापित है
अपनी सम्पूर्ण गरिमा के साथ;

आओ और वो उत्तर
जो कैद है
हमारी ही खामोशियों के दायरे में ;
उन्हें अब हम ही मुक्त
और स्वीकार करें
सम्मान सहित
मेरे हम्न्फ्ज़ ....!!!


     अर्चना राज !!

Tuesday 20 December 2011

तुम हो

तुम हो
कहीं भी ...
पर मेरे लिए हो
ये जानती हूँ मै,
यही मानना चाहती हूँ मै ;
तुम्हारा वजूद
तुम्हारा अहसास
तुम्हारा समस्त प्यार
सब मेरे लिए है ,
 तुम्ही ने तो कहा था न
ये सब  ..... उस शाम
भीगी आँखों से
भावनाओं में डूबकर ;
फिर इसे कैसे झुठला दूं ;
कैसे सोचूँ
की तुम गलत थे ;
गलत तो तुम
हो ही नहीं सकते ,
भले ही अब तुम
मेरे साथ नहीं हो ;
पर तुम सच हो ,
हमेशा
मेरे लिए ....!!


                              अर्चना राज !!








































































Sunday 6 November 2011

मासूम सी बच्ची

वो एक छोटी सी , मासूम सी बच्ची
जिसकी पनीली आँखों में पलती थीं
कुछ मासूम सी ख्वाहिशें ....

सूखे होंठ ; ज़र्द चेहरा  और मुरझाई उदास आँखों से
ढूंढती थी अक्सर , मीठे सपनो का बंद दरवाज़ा ;
जिसके पार शायद किसी ग्लास में कुछ दूध बचा हो ;
या फिर टाफियों के कुछ टुकड़े हों ;
शायद मिठाइयों के कुछ चूरे भी हों.....

वो इन्हें देखकर ही खुश हो लेगी
जैसे अक्सर हुआ करती है,
उस वक्त उसके मुंह में आये पानी का स्वाद भी
न जाने कैसे मीठा सा हो जाता है,
वो हंस पड़ती है......

अचानक ही जैसे एक कडवाहट सी
तैर जाती है ; बेचारगी की ,

गर्म आंसुओं का नमक भी
आँखों में ही सूख जाता है ,
उसकी आँखों में पलती चाहतें
धीरे धीरे दम तोड़ने लगती हैं ,
और वो रह जाती है तनहा
उन्हीं फटी - मटमैली चाहतों, टूटते सपनो
और स्याह चेहरे के साथ .....

वो खोजती है अब अपनी माँ का चेहरा
उन असंख्य चाँद तारों के बीच ,
जहाँ वो चली गयी है , उसे यूँ ही अकेला छोडकर
हमेशा के लिए.....

चुपचाप , यूँ ही  थकी सी चाहतों का भार लादे
वो ज़मीन पर लेट जाती है ,
भूख और तन्हाई का बोझ
और धोने की हिम्मत
शायद बाकी नहीं रही उसमे......

वो एक छोटी मासूम सी बच्ची
जिसकी पनीली आँखों में जगती हैं
कुछ मासूम सी ख्वाहिशें ....

जो अक्सर ही पूरा होने से पहले
दम तोड़ देती हैं ..

कई प्रश्न जागते हैं
उसकी नींद से बोझिल आँखों में
पर हमेशा की तरह
अनुत्तरित ही रह जाते हैं ....!!!!


                  अर्चना राज !!!






तुम समझ पाते

समंदर के आईने में
गहराता एक अक्स
समेट लेता है ; उन सारे आवेगों को
जो मेरे अंतस में है.......

अनायास ही तुम धड़कने लगते हो
इन तमाम हलचलों में ;
बार बार किनारे से टकराकर
लहरें .... जो मेरे दिल में जगाती हैं .....

छू लेते हो तुम
मेरे जज्बातों को,
,पर तुम्हारा अहसास
बिलकुल अनछुआ सा लगता है ;...

मै तो इक लहर हूँ
टकराकर लौट जाना ही मेरी नियति है,
किनारा बनकर भी तुम
क्यों नहीं मुझे अपने आगोश में समेट पाते...

समेट पाते जो मेरे हम्न्फ्ज़ कभी मुझको
तो फिर शायद ये भी समझ पाते
की किस तरह इस सारे जहाँ को
अहसासों की नमी से भिगोया जाता है .....


मेरे हम्न्फ्ज़ की किस तरह
इन अहसासों को जिया जाता है ....!!!!!


                               रीना!!!!






























Monday 31 October 2011

पूरे दिन की ख़ामोशी
सारी रात की तन्हाई
शून्य सा लगता अस्तित्व .....

जहन में घूमते रहते हैं
कुछ शब्द....अंधड़  से .....

जिनकी कोई पहचान नहीं ;
उन शब्दों का कोई अर्थ नहीं ;
कोई महत्व भी नहीं.......

ये तो बस विचरते हैं ..बेवजह
बिना किसी सिरे के ......

जो उनका कोई छोर पकड़ पाती
कोई नाम दे पाती ;
तब शायद उनका कोई अर्थ होता ;
महत्व होता.......

अभी तो बस एक शून्य है
जिसे ओंकार (ॐ ) में
परिवर्तित करना है ;
इसकी स्वर लहरी के साथ
जीना है ......सारी उम्र .....ख़ामोशी से .....!!!!!



                                     रीना !!!!!



































Sunday 30 October 2011

तुम्हारे शब्द

तुम्हारे शब्द
बेशकीमती हैं मेरे लिए ,

मेरे हम्न्फ्ज़ .....

तुम्हारे शब्दों ने ही मुझे
आम होने की लीक से हटाकर
कुछ ही पलों में बेहद खास बना दिया है.......

ये विशेषता का भाव
जो मुझे खुद में विशिष्ट बनाता  है ,
तुम्हारे ही शब्दों का तो जादू है........

ये तुम्हारे ही शब्द थे
मेरे हम्न्फ्ज़
जिसने मुझे मेरी बात कहने
और खुद को समझने को प्रेरित किया
उत्साहित किया.......

अक्सर ही आसमान में कुछ
अक्स उभरते हैं ,
क्योंकि तुमने ही उन पर खिंची
लकीरों का जिक्र किया था ,
कुछ खूबसूरत रेखाचित्रों की
सम्भावना जताई थी......

तुम्हारे शब्दों का ही जादू है
कि चाँद अब और सुंदर नज़र आता है,
सूरज कि तपिश भी भली सी लगती है,
नदियों से निकलती कल कल कि ध्वनी
कुछ और मधुर लगने लगी है,
फूलों के बेहिसाब रंग कुछ और खूबसूरत ;
उनकी खुशबू कुछ और मादक सी लगने लगी है......

तुम्हारे शब्द मुझमे
कामनाओं का समंदर लहरा देते हैं ;
और तुम्हारे ही शब्द
मुझे बिखरने से
डूबने से ...रोक लेते हैं.....

तुम्हारे शब्दों कि उत्तेजना मुझे कंपा जाती है
पर उसका ठहराव मुझे संयमित भी रखता है,
तुम्हारे शब्द कई बार मेरी आँखों में
एक दर्द ...इक चाह जगा देते हैं ;
पर वो तुम्हारे ही शब्द हैं
जिनमे मै मर्यादा के अर्थ ढूंढ पाती  हूँ........

तुम्हारे शब्दों ने मुझे
प्रेम के कई सोपानो से परिचित कराया है;
और प्रेम के कई आयामों को जिया है मैंने
तुम्हारे ही शब्दों में ...मेरे हम्न्फ्ज़ ........

मै तुम्हारे शब्दों का संबल होना चाहती हूँ;
तुम्हारे शब्दों के आकर प्रकार में
मै ढल जाना चाहती हूँ ;
मात्र प्रतिबिम्ब नहीं
तुम्हारे शब्दों का प्रतिरूप होना चाहती हूँ मै
मेरे हम्न्फ्ज़ .....!!!!!


                    रीना!!!!


















































Saturday 29 October 2011

यूँ तो

यूँ तो मेरी जिन्दगी में
कहीं कोई कमी नहीं थी
मेरे हमनफ्ज़ ........
फिर भी न जाने क्यों
एक खलिश
कांच के टुकड़ों सी
हर सांस .....चुभती थी.....

किनारे से टकराकर लहरें
बार बार जब वापस लौट जातीं
यूँ ही ......मायूस
तब आँखों में एक हल्की गर्म
नमी सी उगती ......

जिस दिन सूरज जल्दी डूब जाता
उस रात के सन्नाटे में
मेरी आँखे चुपचाप
न जाने किसे खोजा करती .......

क्या था वो .....जो रह रहकर
अधूरा सा लगता था........

आज जब तुम मेरे पास हो
मेरे पहलू में ,
शायद समझ पायी हूँ ......

तुम्हारे न होने का अहसास
रीतेपन की अनुभूति
खामोश....सरकता जीवन ,
यही सारे रंग घुलमिलकर
एक जाना पहचाना सा चित्र  बनाते हैं,
जिन्हें मै अब
सात परतों के नीचे
दफ़न कर देना चाहती हूँ........

अब तो बस
कुछ मासूम सी ख्वाहिशें
अंगडाइयां लेने लगी हैं ..अंतस में
जाने अनजाने .....

तुम्हारे साथ लहरों में
घंटों अठखेलियाँ करूं,.....

या गीली रेत पर नंगे पाँव
हाथों में हाँथ डाले
दूर तक ....बस यूँ ही ...चुपचाप
तुम्हारे संग चलती चली जाऊं ......

या फिर रात की तन्हाई में
बैठे हों हम दोनों ...आमने सामने ,
दिए की टिमटिमाती रौशनी में
एक दुसरे को धडकता हुआ महसूस करते......
सारी रात ठहरे हुए होने की जद्दोजहद करते
जूझते ..बेचैन सवालों से,
फिर अनायास ही हंस देते........

सूरज की पहली रौशनी से
ये सारे सवाल एक एक कर पिघल जाते
और सामने तैरने लगता ...एक दरिया
मासूम अहसासों का........
जिसमे डूब जाने के लिए
मै तमाम उम्र यूँ ही
तुम्हारे पहलू में सिमटी रहूँ
मेरे हमनफ्ज़ .....

वैसे , यूँ तो कोई कमी नहीं थी
मेरी जिन्दगी में ,
पर अब
सम्पूर्ण होने के मायने
कुछ ख़ास अहसासों के साथ
तुम्हारे साथ हैं .....मेरे लिए

मेरे हमनफ्ज़ ......!!!!!

   
                        रीना !!!!!!!







































































 

Friday 21 October 2011

इश्क के वो रंग जो दर्द में डूबकर ; अश्कों में घुलकर अहसासों की इक तस्वीर बनाते हैं ........

ओस की परछाइयाँ नहीं होतीं और सूरज में नमी नहीं होती ;पर फिर भी दोनों के जीवन
का एक -दूसरे से कितना गहरा रिश्ता है ..... क्या हम सोचते हैं कभी इस बारे में ?????



दर्द जो मेरा खून सा रोये
दरिया सारा आंसू पिए
तब मानोगे प्यार है तुमसे !!!!
*********************


                                            जो रो पाऊं थोडा 
                                            तो शायद दर्द का  पत्थर पिघल जाए ;
                                            तुम्हारी याद से
                                             ये और भी भारी हुआ जाता है!!!!!!!
                                             *************************


दर्द के आसमान से
आंसुओं की बारिश ;
दिल की अंजुली में भरकर
जो सारे पी पाऊं
तो शायद चैन आये!!!!!!!
*****************


                                               तेरी आवाज़ सुन लूं तो
                                               ये साँसें लौट आएँगी;
                                                बिना तेरे ; मेरे हमदम
                                                जिया जाता नहीं मुझसे !!!!!
                                                 **********************

सीने में इक चाह बहुत
शफ्फाक गुलाबी ;
तेरे होठों पर
अपने कुछ आंसूं रख दूं!!!!!
*******************

                                                 एक समंदर
                                                  दर्द का ....अंदर
                                                   पीना भी है
                                                   सीना भी है!!!!!
                                                  *************

मुस्कान जो उस रोज
तेरे होठों से फिसली थी;
आंसू बनाकर उसे  मेरी आँखों ने
अब तक संभाल रक्खा है!!!!!
**********************

                                                        इक ख्वाब ही तो देखा था
                                                         जो अब मुमकिन नहीं लगता
                                                         यही अहसास दिल को
                                                         खून के आंसू रुलाता है!!!!!
                                                          *******************


जब भी याद आती है
मुझे तेरी ...मेरे हमदम
मै बस खामोश सिमटी सी
तेरी हर प्यास जीती हूँ!!!!!
********************

                                                तेरी आवाज़ का अहसास
                                                 बिलकुल नर्म रेशम सा ;
                                                  काँटों सा क्यूँ चुभता है
                                                  मेरी तन्हाई में अक्सर !!!!
                                                 ********************

तेरी उदासी से घुली शाम
जिसे मैंने आंसुओं संग पी लिया है ;
तू अब चाहे भी अगर मुझसे
तो उसे लौटा नहीं सकती!!!!!
*******************

                                                  चांदनी की वो शोख सी मुस्कराहट 
                                                   जब दर्द से कुछ और भर देती है;
                                                   मै तनहा खड़ी छत के किसी कोने में
                                                   तेरी यादों से लिपटकर थोडा और रो लेती हूँ !!!!
                                                    ********************************



                रीना!!!!!!!














































Thursday 20 October 2011

स्तब्ध

मै स्तब्ध हूँ ;
शून्य हो गयी हूँ,
क्या कोई अहसास
इस कदर भी
एक गुनगुनी सी
ख़ामोशी दे जाता है.....

किसी के कहे
कुछ ही शब्द
उसकी नमी में
डूबी आवाज़
अन्दर से
बेतरह भिगो देती है......

क्या है ये
क्यों है ये ;तब ?
जबकि अब तो इसकी
उम्मीद भी बाकी नहीं थी .......

हाँ !  ये सच है
चाहा था कभी मैंने भी
कुछ मोतियों को
अपने दामन में सजाने के लिए......

पर ये तो मानो
पूरा दरिया ही
मेरे सामने लौट आया है
अहसासों का......

जिसने पूरी उदारता से
खोल दिया है
अपनी तमाम सीपियों को
मेरे लिए ;
और अनगिनत मोती
ओस की तरह
मेरे अहसासों पर छा गए हैं ;
मै भीग गयी हूँ
आत्मा तक......

फिर ये कैसा डर है;
कैसी झिझक है ....

मेरे हाथ आगे क्यों नहीं बढ़ते
क्यों नहीं समेट पाती मै इन सबको ....

शायद फिर खोने से डरती हूँ ..

मै स्तब्ध हूँ ;
अवाक हूँ ,

क्योकि चाहते ; न चाहते हुए भी
ये अहसास मुझमे घुलते जा रहे हैं.......!!!!!


                             रीना!!!!













































































Tuesday 18 October 2011

मेरा मौन

तुम
मेरे मौन को
उसके शब्दों को
समझ सकते हो ;
या फिर बस यूँ ही
मुझे समझने की
बात कहते हो ,

बस कुछ कहने के लिए
यूँ ही कह देते हो ......

मेरे मौन की भाषा
मेरे उन शब्दों से बेहतर है ;
जो मै तुम्हें कभी कह नहीं सकती
जो मै तुम्हे कभी भी समझा नहीं सकती ....

अगर समझ सको तो समझ लो
वो , जो मैंने बस टूटकर  चाहा;
पर फिर भी न जाने क्यों
मेरा अन्तःस्थल
रेत सा ही रहा
बिखरा बिखरा सा......

कुछ नमी की उम्मीद
जो थी उन अहसासों से ;
कभी मिल ही नहीं पाई ......

पर अब
इतने वर्षों बाद अचानक
बादल घिर आये हैं ;
घनघोर बारिश का भी अंदेशा है......

पर डरती हूँ
की कहीं खो न दूं
अपने साँसों की डोर ;
कहीं मिट न जाऊं
उन तमाम सपनो के
सच की तरह
जो इन बीते वर्षों में
हर तन्हाई में देखे मैंने .....

तुम चुप क्यों हो ;
कहो न ; बार बार कहो
की तुम समझ सकते हो
मेरे मौन को ;
उसकी पीड़ा को .....

तुम्हारे शब्द
तुम्हारी आँखों की नमी
रुई के नर्म फाहे सी
मेरे जख्मो को ठंडक पहुंचाएगी;
और मै जी जाउंगी
एक बार फिर से
तुम्हारे लिए मेरे हमदम
सिर्फ तुम्हारे लिए.....!!!!!



                    रीना !!!!!


















































































Wednesday 12 October 2011

तुम


मेरे जीने में; मरने में
बस इक हसरत तुम्हारी है ,
मेरी साँसें चले बेशक
पर हर धड़कन तुम्हारी है .......

तुम्हे जब सोचती हूँ मै
करार आता है इस दिल को ,
मेरी बेचैनियाँ ... फिर क्यों
तुम्हे आवाज़ देती हैं ....

जो तुम सुन लो कभी इनको
तो बस कुछ यूँ भी कर देना,
छू लेना निगाहों से
हरारत मुझमे भर देना......

कभी तो पास आकर देख
मेरी आँखों का अफसाना ,
जो ढल जाएगा हौले से
तेरी आँखों में चाहत सा........

तेरे अहसास के मोती
मेरे दामन में भर देना ,
तेरे चाहत की इक चादर
मेरे ज़ख्मों पे रख देना.....

कर देना बस इतना तुम
पर मेरे साथ न आना,
ख़ुशी से मर न जाऊं मै
तू मेरे पास न आना......!!!!!!!!


                 रीना!!!!!!!!!!!!



























तुम्हारी ख़ामोशी

मै
तुम्हारी ख़ामोशी से
बातें करती हूँ
अक्सर......

तुम्हारी ख़ामोशी
ज्यादा मुखर है
तुम्हारे शब्दों से ....

तन्हाई का अहसास
अब बहुत सताता है ;
जब कहती हूँ ये ;
तब तुम मौन रहकर
क्यों बस चुपचाप
मुस्कुराते हो ......

कुछ बूँदें
जो मेरी पलकों पर थमी थीं ;
अब सूख गयी  हैं ;
पर उनकी लकीरें
अब भी मेरे चेहरे पर हैं ......

तुम्हारी मौन आँखें
अपलक उसे निहारती हैं ;
आहिस्ता से तुम छु लेते हो
उन लकीरों को;
अपनी  उँगलियों से ,
एक नमी सी  तैर जाती है
मेरे अंदर ........

तभी ख्वाब टूट जाता है
*****************
बेहद सन्नाटा है
मेरे अंदर
और बाहर भी .......

मै फिर से
बातें करना चाहती हूँ
तुम्हारी ख़ामोशी से ;
पर अब वो चुप है
कुछ नहीं कहती
न जाने क्यों ...!!!!!!!!!!!


       रीना !!!!!






































इक नज़्म

इक नज़्म मुहब्बत की , जो लिखी गयी थी ,
हम दोनों के बीच ;कभी ... अहसासों से ......

आज उसकी इबारतों के ;हर्फ़ भी ..हरसूं
बिखरे बिखरे से नज़र आते हैं .......

आंसुओं की पुरजोर कोशिश है
उन्हें समेटने की ,अपने पाक दामन में,

न जाने क्यों ,फिर भी उगने लगा है ..आहिस्ता से
दर्द का इक दरख़्त ......सीने में ......!!!!!


                        रीना !!!!!!!!








Tuesday 4 October 2011

भूकंप

प्रकृति का जब फूटा गुस्सा ,आया तब भूकंप ,
आया जब भूकंप देश में ,मानवता उठी कराह...

बिलख  रहे हैं बूढ़े बच्चे ,चले गए हैं जिनके अपने ,
किससे बोलें किससे पूछें ,कहाँ गए अब उनके अपने...

सूखी आँखें पत्थर चेहरा , सीने में है गहन निराशा ,
आओ हम सब कोशिश करके , भर दें उनमे फिर से आशा ...

हम भी हैं इन्सान मात्र ,ये हम पर भी हो सकता है,
प्रकृति ने समझाया है की ,राज उसी का चलता है.....

उनका जो इंसानी हक़ है ,रोटी कपडा और मकान,
वही दिलाएं उनको मिलकर ,तभी होंगे सच्चे इंसान ...

चलो दोस्तों ..करें मदद अब ,उनकी जो हम जैसे हैं ,
तो ही हम इंसान रहेंगे ,प्राणियों में जो बेहतर हैं ......!!!!!!!!!!!


                                         रीना !!!!!!!!!!!!!!









Saturday 1 October 2011

तुम्हे भी

तुम्हारी मौन सी आँखें
की जिनमे तैरते हैं शब्द ,
बस कुछ कह नहीं पाते
यूँ ही चुपचाप तकते हैं......

वो इक अहसास जगता है
तेरे शब्दों के मतलब का,
की जो तुम कह नहीं पाते
वो मेरा दिल समझता है......

तुम्हे पहचानती हूँ तबसे
जबसे ख्वाब देखा है ,
तुम्हे ही चाहती हूँ तबसे
जब चाहत को जाना है ......

मेरी  खिड़की से दिखता है
तेरी खिड़की का हर मंजर ,
की जब तू सोचता है कुछ
तो लगता है; वहां मै हूँ........

तुम्हारे प्यार का अहसास ही
जिन्दा   है   बस    मुझमे ,
कहो .... इक बार तो कह दो
तुम्हे भी प्यार है मुझसे ......!!!!!!


                  अर्चना राज !!!











Wednesday 21 September 2011

चेतना

करुणा और स्नेह के
     तमाम  अहसासों  को
अपने अंदर समेटे
कितनी ही छोटी बूंदों से
  तुम निर्मित हुए हो समुद्र ......

पर उन्हें बिखेर नहीं सकते ;
सूखी बंजर धरती को
नमी नहीं दे सकते ..........

उसके सूखे ;दर्द से फटे सीने को
अपने करुण आंसुओं से
सींच नहीं सकते..........

सिर्फ देख सकते हो और
दुःख से द्रवित हो
बूंदों की संख्या मात्र
बढ़ा सकते हो ........

धरती के तमाम दुखों को
अपनी धडकनों के साथ
जोड़ लेते हो ,
इसीलिए तुम जीवित हो ,
पर साथ ही निष्क्रिय भी .........

क्योंकि तुममे चेतना नहीं है ,
अपने दायित्वों का बोध नहीं है .......

व्यर्थ नियमों को सिर झुका
मान लिया है तुमने .........

कब तुममे विद्रोह फूटेगा ;
कब तुम मुखर बनोगे ;
कब तुम अपनी ममता
धरती पर लुटाने
पवन के सामान
स्वतन्त्र हो निकल पड़ोगे ..........

अपनी नहीं ...
धरती की तो सोचो ...
सदियों से प्यासी
और पीड़ित है वो ......

तुम ही उसमे
स्पंदन जगा सकते हो ..........

     इसलिए
अब तो चेतो ..........
धरती को इंतजार है तुम्हारा ....

   जैसे ......इस बोझिल
और जड़ हो चुके समाज को
एक जागृत व्यक्तित्व का ......

जो हमें जगा सके
हममे चेतना फैला सके ..........!!!!!!!!!!


                              रीना !!!!!!!








Saturday 17 September 2011

प्यार तुम्हारा

वो प्यार तुम्हारा खुशबू सा
      स्पर्श तुम्हारा चन्दन सा ,
वो तैर रहा है अंतस में
       मेरी धड़कन और नस नस में .....

बरसों पहले वो जब तुमने
        इक बार नजर से छुआ था,
वो खुशबू तेरे चाहत की
          बेचनी उन अहसासों की.....


क्या याद तुम्हे भी आता है
         मंदिर का वो पावन कोना,
जिस जगह खड़े थे हम दोनों
         और एक हुए थे हम दोनों.......


मै खड़ी  हूँ अब भी उसी तरह 
          तुम चले गए .. लौटे ही नहीं,
 क्या  तुमको याद नहीं आती
            सिन्दूरी चेहरे की रंगत.....


क्या तुमने  उन अहसासों को
         और स्वयं मुझे भी भुला  दिया ,
या  फिर इतना चाहा ही नहीं
          की चाहत का हिस्सा बना सको........


इक बार अगर तुम लौट सको
          देखो मेरी इन आँखों में ,
सच कहती हूँ मेरे हमदम
            फिर वापस लौट न पाओगे.......


 ये प्यार हमारा खुशबू सा
         स्पर्श हमारा चन्दन सा ,
 ये बांधेगा तुमको मुझको
          इक अहसासों के गुलशन में............!!!!


                        रीना !!!!!!!!


Thursday 15 September 2011

सोचूँ तुमको







बारिश की गिरती बूँदें , और मिटटी की वो पहली खुशबू                                                                                                        जिस्म को बींधे लम्हा-लम्हा                                                                                                                                    आहों का सैलाब बहा दूं ..............



 हिज्र की लम्बी रातों में जब ,याद तुम्हारी आएगी ,
                   तब उस मिटटी को गूंध , सेंककर
                               चाहत का भगवान् बना दूं..............



 भीगे ख़त की चाँद पंक्तियाँ , जिनको पढ़कर सदियाँ बीतीं ,
                               उनमे अपने सपने जीकर 
                                           इस दिल का अरमान बना दूं.........



नदियाँ जब बलखाती आयें , खड़ी  मुहाने सोचूँ तुमको .
                             भीगी आँखों देखूं तुमको
                                      खुद अपना सम्मान बना दूं..............!!!!


                                   अर्चना राज


Wednesday 14 September 2011

हिंदी दिवस

दोस्तों !! सुन लो सभी ,आज है हिंदी दिवस ------------------------------------------ राष्ट्र की भाषा है ये ,राष्ट्र की आशा है ये , राष्ट्र का सम्मान है , गर्व और अभिमान है, अंग्रेजी में लिखते हैं , अंग्रेजी में पढ़ते है , इक पराई भाषा का ,क्यों इतना मान हम करते हैं , हिंदी ही अपनी माँ है ,इसका हम सम्मान करें , आओ ये संकल्प करें ,हिंदी में ही रंग भरें , हिंदी की ही हो रेखाएं ,हिंदी के ही शब्द भरें, हिंदी में ही सपने देखें ,हिंदी में ही पूर्ण करें , बस कुछ दिन की बात न हो ,अब बिगड़े हालात न हो, वर्ष भर चलता रहे,गर्व से कहते रहें, हम भी हिंदी भाषी हैं , हिंदी के अभिलाषी हैं, हिंदी को अपनाएंगे , भाषा का क़र्ज़ चुकायेंगे , इसका सम्मान बढ़ाएंगे,इसका परचम लहरायेंगे , ---------------------------------------------------- दोस्तों!!! सुन लो सभी ,आज है हिंदी दिवस , राष्ट्र का सम्मान है , गर्व और अभिमान है !!!!!!!!!!!!!!!!!!! रीना !!!!!!!!!!!!

Sunday 11 September 2011

इक चाह

जबसे तुमको चाहा मैंने
दिल मेरा कुछ बदल गया है ,
सारा कुछ मेरे अंदर का
लगता है बस ठहर गया है ....

              मेरी दुनिया बदल गयी है
                सपने मेरे बदल गए हैं ,
              जीवन की ये आपाधापी
               स्वर  और लय में सिमट गए हैं......


तेरी चाहत      मेरी चाहत
आपस में यूँ घुल से गए हैं,
तेरे आंसूं      मेरे आंसू
दरिया में ज्यूँ  बदल गए हैं.......


              आओ हम तुम कुछ सुख बाटें
               कुछ खुशियाँ और गम भी बाटें ,
                भूरी मटमैली सी मिटटी
               इनसे अपने तन को ढाकें


तेज हवा जब गान सुनाये 
तब मुझको बाहों में लेना ,
धीरे   से   कानों   में   मेरे
 प्यार है मुझसे इतना कहना .......


               इन्द्रधनुष के रंग चुराकर
               मेरे जीवन में भर देना ,
                सिन्दूरी चेहरे की रंगत ,
                मेरे चेहरे पे रंग देना.......


 बस इतना ही तुम कर देना
         मेरे संग थोडा जी लेना ...!!!!!!

                   रीना






Tuesday 6 September 2011

तुम आये थे रात

तुम आये थे रात मेरे ख्वाबों में ,
     तुम्हारी आँखों में                                                                                                                                कुछ   ठहरा ठहरा सा था ............
मैंने देखा   और जड़ हो गयी ,
-------------------------                                                                                                                            
उस ख़ामोशी की इक बूँद
तुम्हारी आँखों से
मेरे दिल में उतर गयी ,
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तुम चुप थे.... पर तुम्हारी आवाज़
मेरे दिल को चीरती चली गयी ,
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हम दोनों इक दर्द की तरह कांपे
और रो दिए .........................

तुम्हे छूने ........ तुम्हे पाने
मै तेज कदमो से आगे बढ़ी ,

पर इक सर्द अहसास
-------------------
खुली आँखों से मैंने देखा
          तुम        नहीं        थे
कहीं भी  नहीं थे .........................

थककर  सूनी आँखें फिर मूँद लीं
 -----------------------------
शायद तुम फिर एक बार
ख्वाब बनकर ही आ सको !!!!!!!!


                  रीना




Tuesday 30 August 2011

मेरे पास हो !!!








 ग़मज़दा नहीं न उदास हो, मेरी जिंदगी में मेरे पास हो

तेरे गम की चिलमनो के साए में, तेरे  आंसुओं की पनाह में ,                                              
कुछ पल नहीं कुछ दिन नहीं, मै ये सारी उम्र गुजार दूं.........

मेरी बात का तू ऐतबार कर , न यूँ ही बार बार मुझे आज़मां,                                                           
मै शरीक हूँ तेरी चाह में, तू शरीक है मेरी सांस में......                                                                                                                                                                                                                                           
ये अज़ब -गजब सी रवायतें, ये बेमिसाल सा फ़साना हो                                                                         
तुझे ख्वाब अपना बना लूं मै, तेरा दिल ही मेरा ठिकाना हो.........

जो  गुजर गया सो गुजर गया ,उस जख्म को यूँ न फिर जगा ,
जो ये रो पड़ा तो फिर सोच ले ,क्या तू ऐसे ही रह पायेगा .......

जो चैन तेरा भी खो गया ,तेरी नींद भी जो उजड़ गयी ,
तो ये जिंदगी के फलसफे,  क्या तुझे संभाल पायेंगे .......

बड़ी बेरहम बड़ी क्रूर हैं ,ये समाज की हकीकतें,
तुझे रोने भी देंगी नहीं ,तेरे हंसने पे भी जोर है .......

मेरी बात सुन मेरे हमनफ्ज, आ मुझको गले से लगा ले तू ,
तेरे दर्द सारे समेट लूं ,मेरी खुशियों से तू लिपट सके ........

मै हबीब हूँ तेरे जात की ,तू नसीब है मेरे प्यार का
शब् भर जलूं तेरी याद में ,तेरा अक्स ही हरसूं दिखे ........

ये तिश्नगी तेरे इश्क की ,महफूज है अंदर मेरे
जिन्दा हूँ मै इस प्यास मै ,जिन्दा हूँ मै तेरे लिए .....!!!!!!!!!

                                        अर्चना राज !!














तुम मिल जाओ..


 तुम कहीं अचानक मिल जाओ
             मै भाव विभोर हो जाउंगी , 
 तुम बात करोगे अंतराल की   
               मै गूंगी सी हो जाउंगी ..........

 कुछ देर बाद जब तुम मुझसे
               मेरे बारे में पूछोगे ,
 सचमुच मै दर्द तन्हाइयों का 
           उस पल ही भूल जाउंगी.............


 क्या खोया और पाया तुमने                                                                                                                                     तुम हिसाब लगाने बैठोगे,
 क्या पाऊँगी तुमको पाकर

               मै यही सोचती रह जाउंगी.............



     तुम चुप चुप मै गुमसुम सी
               इक पल ऐसा भी आएगा ,
       जब तुम होठों के कम्पन से
                    और मै आँखों से सारा दर्द कह जाउंगी............. !!!!!!!!!



                                                       रीना





 


Monday 29 August 2011

तन्हाई...

                  


हिज्र  की रात
     यूँ भी कट ही जाती है ,

तन्हाई बेवजह का फलसफा
               नहीं रह जाती है ,

वजह जो तू हो मेरी तन्हाई का
-------------------------------
तो बेचैनी में भी
    मसरूफियत  हो ही जाती है ........!!!

                 -रीना