Wednesday 9 October 2013

इंतज़ार

धूप को तकलीफ के अनगिनत लम्हों मे गूँथकर लीप दिया था दरो-दीवार को
अक्षरों की शक्ल मे 
तनहाई मे लिपट -चिपटकर  जो बेकाबू हो जाते थे ,

कमरे की सफेदी हर रात गिरती थी  परत दर परत
हर रात कमरा उधड़ा सा हो जाता था
हर रात महसूस होता था इक अधूरी गजल का लिखा जाना
हर रात मेरा जिस्म सूखे पत्ते सा कंपकंपाता था 
महक आती थी तुम्हारे टुकड़ा -टुकड़ा साँसों की हर बार मेरी साँसों से ,

हर रात तनहाई को थोड़ा-थोड़ा काटकर चमकदार गोटे सा सिल देती थी
सूख चुके अश्कों को सितारों मे बदल देती थी 
काढ़ा करती थी अरमान दुपट्टों मे
कभी धूल तो कभी धूप या फिर तितलियों से ,

हर मौसम का मिजाज भी संभाले रखा है
उम्मीदों के पुल हर दिशा से आते हैं मुझ तक

कि मेरी रुखसती तुम्हारे पिघलते जज़्बातों के इंतज़ार की कैद मे है
हमनफ़ज मेरे !!

Monday 7 October 2013

एकाकार


हर ज़र्रा कायनात का धूप की आंधियों मे बहा ले जाता था मुझको
मै भीगता रहता था ------ निरंतर
इंसानी दर्द के वाष्पीकरण की प्रक्रिया अनवरत थी
तकलीफदेह भी -----------
मै सिहर उठता था ,

मै देखता रहता था वो भीड़ जो इकट्ठा थी तेरे दरवाजे पर सदियों से
अनजाने -अनदेखे सुकून की ----सुख की तलाश मे
पर अब भी उतनी ही नाकाम -- नाखुश
झुके हुए बोझिल कंधों के साथ ,

वो भी नासमझ थी मुझ जैसी ही
नहीं जानती थी कि
तू किसी महवर का गुलाम नहीं
तू किसी वर्ग या वक्त विशेष का नुमाइंदा भर नहीं ,

एक रोज़ इक बुलंद आवाज़ का आगाज हुआ
जहान मे -------- सभी के लिए ---------
इबादत नहीं    -----------
मुझे चाहो ----प्यार करो -------मुझे महसूस करो
खुद मे ----- खुद सा ,

वैसे ही जैसे रूहें मिल जाती हैं रूहों मे
वैसे ही जैसे जिस्मो मे जागती है गुलाबी खुशबू
वैसे ही जैसे साँसों मे जन्मती हैं सासें
जिंदा होकर -----जीवन होकर , 
इस एहसास के साथ ही
मै भीगने लगा तुम्हारी इस अज़ीम रहमतों की रौशनी मे
मै दुआ सा हो गया
मै महसूस करने लगा तुम्हें खुद मे
मै तुम सा हो गया
कि ऐ खुदा ----- तेरे इश्क मे
तुझमे जज़्ब होकर -----मै खुद ही खुदा हो गया !!