Friday 15 February 2013

उम्मीद

मौन को उम्मीद की उंगली थामे बरसों हुए
कहीं कुछ अनकहा रह गया था
शायद अनसुना भी ---------

वक्त की दीवार हीरे सी है
ज़िंदगी पानी सी ,

धार कहाँ से लाऊं -----कैसे पकड़ूँ
कि दिखे तुम्हारी उम्र पर थमी मेरे उम्र की लकीरें !!



             अर्चना राज

विद्रोह

कैद हैं स्याह रातों के कई किस्से
बंद दरवाजों के पीछे बड़ी शाइस्तगी से
सूरज यहाँ अज्ञात है ;
दीवारें मसली साड़ियों  की चोट से घायल हैं
पर कराहती नहीं
तो ज़मीन पर भी छालों के न जाने कितने धब्बे नक्श हैं ,

माजूरियत थक गयी है अब

रंगे दांतों के तमाम किस्से अब गर्त से उधड़ने लगे हैं
मोगरे की खुशबू तले सिसकियाँ उबल रही हैं
सुनाई पड़ती है अब पलंग के पायों के थरथराने की आवाज़
न जाने कब गिर पड़े
की सिहरन हर रात की जिंदा है अब तक
आक्रोश भी ---------
पर कर्तव्य ढहने की इजाजत नहीं देते ,

विद्रोह के थपेड़े अब ज़ोरों पर हैं
कमरा चक्रवात सा
कि रौंदे जाने कि चिंगारी भी बस फट पड़ने को आतुर है
एक नए आगाज के लिए
लावे का बिखरना तो लाजिमी है ,

उम्मीद एक प्रस्फुटन सी दहलीज़ पर है
कि सीपियाँ खुलने लगी हैं ,

ज़िंदगी मुस्कान संग बाहें पसारे खड़ी है !!!


                      अर्चना राज

Wednesday 13 February 2013

बसंत

कोई कविता गुजरती है मुझसे ,

बादलों की सतह पर फाहे सी उड़ान भरती
मधुकर के मौसम मे तितलियों सी बहकती
बासन्ती धड़कनों को टेसुओं से रंगती ,

कुछ यूं भी कि मानो
बसंत ने साँसों की साझेदारी स्वीकार ली हो
हवाओं मे सुगंध से घुली रौशनी संग ,

कविता यूं भी गुजरती है मुझसे
कि भूख पपोटों पर सूख गयी हो
फ्राक सलवार न होने की जद्दोजहद से बोझिल हो ,
जैसे कोई शाम सूरज की हथेली पर स्वाहा हो जाय
या फिर एक सुबह धूप कि जगह धुए संग जन्मी हो ,

कविता का गुजरना मात्र संवेगों का वहन भर ही नहीं
शब्दों मे ज़िंदगी को नगमा बना देने की पहल भी है
अश्क अब भी हैं आँखों मे
रंगों के  महल की तफरीह के लिए ,

बसंत दोनों ही पहलुओं से फूट पड़ा है !!!



        अर्चना राज 

Tuesday 12 February 2013

अवसाद

होने को तो यूं भी था कि,

तुम होते और मै होती
बीच मे यादों कि अंगनाई
शब्द थमे से
अश्क बहे से
भावों का लहराता सागर ,

कतरा - कतरा प्रेम लरजता
सहमी-सहमी सांसें जगतीं
मंद पवन सी
नील गगन सी
फिर होता आलिंगन दृढ़ ,

धड़कन कि हर लय हो गुंजित
राग सुनाती मधुर मिलन का
करती झंकृत
बजती पायल
तुम शिव होते मै प्रकृति सी ,

होने को तो यूं भी था पर .......!!!



 अर्चना राज 

Sunday 10 February 2013

प्रेम

प्रेम किया मैंने
तुमसे -------
और खुद खत्म हो गयी
हर सवाल-जवाब से परे
ज़िंदगी की - समाज की कसौटियों से अलहदा ,

मेरा होना तुम्हारे होने मे सन्निहित था
तुम्हारा होना मेरे न होने मे ,

प्रेम मे कोई पूर्वनिश्चित अवधारणा नहीं होती !!!


           अर्चना राज 

Monday 4 February 2013

स्वाभिमान

बेचारगी मातम मे न बदलने पाये
जूझने की कोशिशें कुकुरमुत्ते सी हैं
यहाँ हर रोज बारिश होती है , हताश---- निराश ,

प्रश्नो को चाय की प्यालियों मे मत थिरकने दो
मालिकों की बपौती नहीं है ये
उत्तर हाथ के छालों से लिखो
या फिर दिमाग की नसों से ---- विस्फोट की हद तक ,

इंतज़ार हद मे हो तो सुखद है
उम्र भर का मोहताज मत बनाओ
नासूर टीसता है ---- बस टीसता ही है
होता-हवाता कुछ नहीं ,

काहिली का जामा जर्जर हो चुका है ---- उतार फेंको
विश्वास जड़ों से नसों मे बिखर जाएगा
सुबह जरूर आएगी यकीन की मुस्कान लेकर ,

प्राणियों की सर्वश्रेष्ठ शृंखला होने पर खुद को सम्मान दो !!




               अर्चना राज 

सोच

गूँजती रहती हैं चीखें अनवरत सी
शब्द जगता है धरा से कांप उठती हैं शिराएँ
व्यर्थ है पर ,

बेसबब यूं चीखना और शोर करना
नाम आंदोलन का लेकर हो भले आह्वान करना
कैद है सब बेड़ियों मे वक्त की ;
सब भुला देंगे तुम्हें भी संग तुम्हारे
कि शब्द की सीमा है इक ,

कुछ तो है चुभता हुआ सा पर जहन मे
जोड़ देता है जो मानव को उसी से
खोज करनी है उसी की ---सुर मे लाना है उसी को
कोशिशें की अनगिनत और गंवाया भी बहुत कुछ
तब समझ आया है ये -----

शब्द बदलें ये नहीं है कोई मुद्दा
सोच बदलें तब ही है उत्थान संभव !!

Friday 1 February 2013

अंतिम इक्छा

देह ऊर्जा चुक गयी
धड़कने फिर भी जिंदा हैं,

कोठरी ,दरवाजे और चौखट विरासत से  हैं
छतों से पर दरकने की आवाज़ सुनाई देती है
वक्त हो चला है ,

मोतियाबिंद चिलमन सा उतर आया है
घुटने अब भी कशमकश मे हैं
और झुर्रियां उम्र के दस्तावेज़ सी
हस्ताक्षर की जगह खाली है बस
जल्द ही भरेगी ,

ज़िंदगी ---कोई आस ,कोई अपेक्षा अब नहीं तुझसे
कि मौत जब भी आना खुली बाहों से आना
मिलन होगा ...... रूहानियत कि हद तक ,

ज़रा सी चाहिए मोहलत मुझे पर ----क्या करूँ
सरहद पार ही अटकी हैं सांसें
मेरे बच्चे अभी आने हैं बाकी
ज़रा ठहरो उन्हें अपने कलेजे से लगा लूँ
चलूँगी फिर तुम्हारे साथ इक लंबे सफर पर !!


                   अर्चना राज