बहुत सी कही - अनकही
बाकी रह गयी
हमारे दरम्यान ;
कभी तुम्हारे पास वक्त नहीं था
और कभी
मै ही नहीं कह पायी ;
कचोटती रहती है
वो तमाम बातें
जिन्हें बिना सुने ही
तुमने नकार दिया
मेरा होना...अपने लिए;
और अब उन्हें
सहेज रक्खा है मैंने
मृग की कस्तूरी सा ;
जिसे कुछ वर्षों बाद
तुम्हें स्वीकार
करना ही होगा
एक तोहफे की तरह
अपने पछतावे के दामन में
मेरे हम्न्फ्ज़ !!
अर्चना राज !!
बाकी रह गयी
हमारे दरम्यान ;
कभी तुम्हारे पास वक्त नहीं था
और कभी
मै ही नहीं कह पायी ;
कचोटती रहती है
वो तमाम बातें
जिन्हें बिना सुने ही
तुमने नकार दिया
मेरा होना...अपने लिए;
और अब उन्हें
सहेज रक्खा है मैंने
मृग की कस्तूरी सा ;
जिसे कुछ वर्षों बाद
तुम्हें स्वीकार
करना ही होगा
एक तोहफे की तरह
अपने पछतावे के दामन में
मेरे हम्न्फ्ज़ !!
अर्चना राज !!
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