बड़ा सा मील का पत्थर ; खड़ा था रास्ते में यूँ ;
कि जैसे रोक लेगा वो ; मुझे हमदम की बाहों सा ;
समझ पाया नहीं शायद ;कि आखिर है तो पत्थर ही ;
लायेगा कहाँ से वो ; तपिश इक नर्म दामन की !!!
अर्चना राज !!
कि जैसे रोक लेगा वो ; मुझे हमदम की बाहों सा ;
समझ पाया नहीं शायद ;कि आखिर है तो पत्थर ही ;
लायेगा कहाँ से वो ; तपिश इक नर्म दामन की !!!
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