Friday 13 January 2012

दर्द


लिहाफ की हलकी सी गर्माहट में
बेसाख्ता किलकने लगते हैं कुछ दर्द
तन्हाई की पैदाइश बनकर ,

अहसासों का तीसरा हिस्सा
जो कभी सम्पूर्ण हुआ करता था
आज यूँ बंटने के बाद भी जस का तस है
मानो आंसुओं की घाटी में
वो इक पहाड़ सा स्थिर हो अब भी ,
और पहाड़ों में तो कभी भी कोई बदलाव नहीं होता
बेशक उसके आस-पास हर वक्त
चक्रवात ही क्यों न मंडराता रहे ,

पर मोम का पिघलना अब भी जारी है
ब-दस्तूर ..इतने वर्षों बाद भी
और न जाने कब तक यूँ ही ,

ढेरों पिघली हुई मोम की झील में
इक अक्स नज़र आता है
चाँद का साया बनकर
चांदनी की मद्धिम सी झिलमिलाहट में
जो तुम सा नज़र आता है
और एक बार फिर
मेरा दर्द बेसाख्ता कराह उठता है ,

अचानक ही ऐसा लगा
जैसे उस अक्स ने बाहें फैलाई हैं
मेरी तरफ ..बड़े हौसले से
पर मै जड़ हो गयी थी
क्योंकि अब तो मेरा दर्द ही नहीं
खुद मै भी पहाड़ सी अचल हो गयी हूँ ,

तमाम रात पिघली हुई मोम ने
इक शक्ल पायी थी ..ओस की दरियादिली से
पर सूरज की पहली किरण के साथ ही
ओस ने अनजाने ही
उसे तरलता में परिवर्तित होने को अकेला छोड़ दिया ,

और अब एक बार फिर से
मोम का पिघलना जारी है .. ब- दस्तूर,

दर्द दोनों ही जगह मौजूद है
पहाड़ के अचल होने में भी
और मोम के निरंतर पिघलने में भी ,

लिहाफ की नर्म तपिश में भी
अब दर्द की मौजूदगी पसरने लगी है
कि न जाने कब तक ये सिलसिला
यूँ ही चलता रहेगा
मेरे हम्न्फ्ज़ !!!


अर्चना राज !!

No comments:

Post a Comment