Saturday 28 January 2012

बसंत

पन्द्रहवें साल में जो यूँ ही हमसे रूठ गया था
तब का गया बसंत अब तलक लौटा ही नहीं ,

कई बार सोचा की चलो अब उसे ढूंढ आयें
पर कभी कोई हक इस कदर जागा ही नहीं ,

हवाओं में फूल खिलाने की ताब मुझमे भी थी
सूरज को आइना दिखाने की आग मुझमे भी थी ,

चाहती तो ढूंढ लाती उसे पीले फूलों के जंगल से भी
पर खुशबू  से इश्क का ख़याल कभी आया ही नहीं !!!



अर्चना राज !!!








No comments:

Post a Comment