पन्द्रहवें साल में जो यूँ ही हमसे रूठ गया था
तब का गया बसंत अब तलक लौटा ही नहीं ,
कई बार सोचा की चलो अब उसे ढूंढ आयें
पर कभी कोई हक इस कदर जागा ही नहीं ,
हवाओं में फूल खिलाने की ताब मुझमे भी थी
सूरज को आइना दिखाने की आग मुझमे भी थी ,
चाहती तो ढूंढ लाती उसे पीले फूलों के जंगल से भी
पर खुशबू से इश्क का ख़याल कभी आया ही नहीं !!!
अर्चना राज !!!
तब का गया बसंत अब तलक लौटा ही नहीं ,
कई बार सोचा की चलो अब उसे ढूंढ आयें
पर कभी कोई हक इस कदर जागा ही नहीं ,
हवाओं में फूल खिलाने की ताब मुझमे भी थी
सूरज को आइना दिखाने की आग मुझमे भी थी ,
चाहती तो ढूंढ लाती उसे पीले फूलों के जंगल से भी
पर खुशबू से इश्क का ख़याल कभी आया ही नहीं !!!
अर्चना राज !!!
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