Tuesday 13 August 2013

स्मृतियों से ......तुम सुन रहे हो न !!

आज फिर बहुत तनहा ; बहुत अकेला सा महसूस कर रही हूँ , तुम्हारी बहुत याद आती है तो ऐसा ही होता है और फिर बड़ी मुश्किल से तुमसे बातें करने के लिए खुद को मना पाती हूँ ..आश्चर्य हुआ न ?...अरे तुमसे तो मै हमेशा ही बातें करती हूँ ..बेशक तुम पास नहीं होते ..तो क्या ..! आज एक बार फिर पन्नो और कलम को ही माध्यम बनाया मैंने तुमसे बातें करने के लिए ..हमेशा की तरह......!!

कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता
कभी जमीं तो कभी आसमान नहीं मिलता ....

आज एक बार फिर इस गाने की पंक्तियों ने मेरी आँखें नम कर दीं..तुम बेतरह याद आये और एक बार फिर ये सोच पहले जिद्द और फिर हलकी झल्लाहट में बदल गयी कि क्यों नहीं .......क्यों नहीं हम हमारी सारी ज़मीन और तमाम आसमान को एक ही साथ अपने दामन में समेट पाते हैं ...क्यों नहीं हम दोनों को एक साथ जी पाते हैं ..कई बार ज़मीन तो मिल जाती है पर आसमान सिर्फ ख्वाबों में ही रह जाता है तो कई बार आसमान में उड़ते हुए ज़मीन का कोई कोर कोई किनारा नहीं मिलता ....ये चुनने की मजबूरी क्यों ....पर हर बार कि तरह इस बार भी मेरे सारे सवाल इस क्यों पर ही अटक कर रह गए .....और जैसे जन्मे थे वैसे ही मेरे आस पास तिरते रहे ..!

      
कच्ची उम्र में नए -नए परिवर्तन हो रहे थे ..कुछ समझ आते थे तो बहुत कुछ नहीं भी ..एक उलझन हमेशा ही रहती थी .. इसी दौरान वो दिन भी आया जब पहली बार मैंने तुम्हारी नज़रों को देखा था और किस कदर सिहर उठी थी..एक बिलकुल नया एहसास ...एक नयी उलझन भी ..पर जो अच्छी लगी थी ...जिसे बार - बार महसूस करने को दिल करता था ..तुम्हारी नज़रों कि गहरी ख़ामोशी ने मुझे अन्दर से हिला दिया था ...मुझमे कुछ बेहद खास पहलुओं को जगा दिया था ..पर ऊपर से मई बिलकुल सामान्य थी या यूँ कहूं कि सामान्य बने रहने कि कोशिश करती थी ..ये बात मै कभी किसी से कह नहीं पायी ..अपनी बेस्ट फ्रंड से भी नहीं .... दरअसल .कह भी नहीं सकती थी ..एक अनजाना सा भय था ..कुछ तो ये कि मै इसे पूरी तरह समझ नहीं पा रही थी और कुछ ये कि मुझे लगता था कि कह देने भर से बात पराई हो जायेगी या फिर तमाम अहसास ..जो बेहद ख़ास हैं और जो सिर्फ मेरे हैं वो बेगाने हो जायेंगे ...बेहद अंतर्मुखी जो थी मै .....!

                   
कुछ एक बार जब तुम अचानक मेरे सामने से गुजर जाते ..मुझे देखते हुए ..तो मेरा पूरा दिन मानो वहीँ ठहर जाता ...दिन भर तुम्हारी उन नज़रों कि गहराई मुझे रोमांचित करती रहती ...और फिर मै तुम्हे अनायास ही हर जगह ढूंढती रहती ..जानते हुए भी कि तुम वहां नहीं होगे ..ये बेचैनी कितनी बेचारगी भर देती है उस उम्र में ..जहा आपके पोर पोर में अहसास बसते हैं ..कोमल ...तप्त ..इंतहाई बेचैन अहसास....!

       
यकीन मानो मै और मेरी नज़रें तुमको हमेशा ढूँढा करते थे ...अगर कभी तुम दिख जाते तो मन बसंत सा खिल उठता और अगर नहीं दीखते तो लगता कि हर शै बेकार है ..! पर इस बारे में कभी न तो तुम कह पाए और न ही कभी मै ..दरअसल वो उम्र भी नहीं थी कि इन बातों कि गहराई को हम समझ सकें ..कह सकें ....! हाँ.....i love  u ..तो कोई भी कह देता था ..बिना उसका मर्म समझे ..क्योंकि ये भी एक तरह का नया अहसास ही तो होता है जो कई बार अच्छा भी लगता है ...पर तुमने कभी भी कुछ भी नहीं कहा ...और तुम्हारी यही बात मुझे सबसे ख़ास ..सबसे अच्छी लगती ..!  शायद इस उम्र कि एक स्वाभाविक झिझक तुममे भी थी और मुझमे भी ..जो हम कभी खुलकर कुछ कह नहीं पाए ....आज लगता है कि अगर तुमने या मैंने इसे कह दिया होता ..इसे शब्दों में उड़ेल दिया होता तो शायद जिन्दगी कुछ अलग होती ..कम से कम मेरी तो जरूर कुछ अलग होती ...क्योंकि तुम मानो या मत मानो ..हालांकि आज के समय में ये थोडा अजीब सा जरूर लगता है .... मै आज भी उन्हीं दो खामोश नज़रों कि धुरी पर ठहरी हुई हूँ ...!

                     
मुझे उन कुछ चिट्ठियों कि भी याद है जो ..स्कूल से वापस लौटने पर मुझे अपने घर के बाहर मिला करती ..और जिन्हें देखते ही मेरी धड़कने तेज हो जाती थीं और अनजाना सा डर भी लगता था कि कहीं किसी ने देख लिया तो ?( लड़कियों का एक स्वाभाविक डर ).मै जल्दी से उसे अपनी किताबों में छुपा लेती और फिर तेजी से अपने कमरे में जाकर अन्दर से बंद कर लेती ...फिर अपनी धडकनों को संभालते हुए ..कांपते हाथों से वो ख़त खोलती ....और ऐसा लगता था कि मानो मै उसके एक-एक शब्द को आँखों से पी रही हूँ ..! मुझे अब भी याद है कि दिल कि धडकने इतनी तेज हुआ करती थीं कि कई बार ऐसा लगता था ..कहीं कोई सुन न ले ...आज सोचो तो बरबस ही मुस्कुराहट तैर जाती है .. एक बेहद तीखी टीस के साथ ...!

                    
फिर ये दो साल कैसे बीते पता ही नहीं चला ...पर ये जरूर कहूँगी की वो दो साल मेरी जिन्दगी के बेहद ख़ास अहसासों के नाम हैं ...! इसी समय पापा का ट्रान्सफर हो गया और हम दूसरी जगह आ गए ..नयी जगह ..नए लोग ...नए अहसास ..और नया अफेयर भी ...., अजीब लगा न सुनकर की नया अफेयर भी ....पर यही सच है ..वो उम्र ही ऐसी होती है की आप ख़ास तरह के अहसासों की उम्मीद रखते हैं ..मुझे लगता है की ये बेहद स्वाभाविक है जो मैंने भी किया ( कुछ लोगों को गलत भी लग सकता है पर ये उनका नजरिया है ...मै इसके लिए माफ़ी चाहूंगी )..मेरे अफेयर्स हुए ..कई हुए ...पर कुछ ही समय में मै उनसे अलग हो जाती ...दरअसल अनजाने ही मै उन सबमे तुम्हें खोजने लगती ..तुमसे उनकी तुलना करती ..और खासकर तुम्हारी आँखें और उसकी बेचैनी ..उसका ठहराव ...उसकी गहराई ....उसकी ख़ामोशी ....., स्वाभाविक है की ये उनमे नहीं होता क्योंकि तुम तो आखिर तुम ही हो ..है न ?


 

नयी जगह ; नए लोग और ढेर सा अकेलापन .....मेरा कोई दोस्त था नहीं और जल्दी किसी से दोस्ती होती भी नहीं थी ..तो दोस्तों की जगह किताबों ने ले ली ...मस्ती करने की जगह ख़ामोशी ने ले ली ...घूमने- फिरने की जगह कल्पनाओं ने ले ली ! पर एक अंतर्विरोध भी था ..कॉलेज में या तथाकथित दोस्तों के बीच मै बहुत बिंदास मानी जाती थी ; ( शायद अपने खालीपन और अकेलेपन को छिपाए रखने का ये एक मनोवाज्ञानिक तरीका था मेरा )

             
यहाँ भी अफेयर हुए ..अच्छा भी लगता था ...पर तन्हाई में फिर वही..दो ठहरी हुई नज़रें बेचैन कर देतीं ....और अंतर्मन अजीब सी छटपटाहट से भर उठता ! पर मानव मन भी कितना विचित्र होता है न ...धीरे-धीरे इन यादों पर ओस गिरती रही ..और सब कुछ धुंधलाता  गया सिवाय तुम्हारी उन तीव्र..विचलित कर देने वाली आँखों के !

  
मधुर ; तीखे अहसासों और जीवन के नए - नए अनुभवों के साथ जिन्दगी आगे बढती रही ..पर एक खलिश ने भी अपने आपको विस्तृत करना शुरू कर दिया था ..इस खलिश को तो तुम भी जानते होगे न ..समझते भी होगे; पर कई बार हम उसे पहचान नहीं पाते और अगर पहचान भी लें तो उसके समाधान का जरिया समझ नहीं आता  ! साथ ही इस उम्र की तमाम उलझने ..जैसे पारिवारिक सोच ..सामाजिक बंधन और सबसे बड़ी उलझन तो हम खुद ही होते हैं अपने लिए ....अपना व्यक्तित्व ही ठीक तरह से समझ नहीं आता हमें ..एक पूरा खुला आसमान हमारे सामने होता है ..पर कैसे उड़ना है ..कैसे मंजिल पानी है ..क्या करना है ..कुछ भी समझ नहीं आता ...इस उम्र का मनोविज्ञान वाकई बहुत ज़टिल  है ...  !!

             
इसी दौरान मैंने एक पुस्तक पढ़ी ..हिमांशु जोशी की " तुम्हारे लिए "..जिसने मुझ पर एक ख़ास असर डाला था ...ये मुझे इतनी अच्छी लगी की मैंने इसे तकरीबन १२ बार पढ़ी थी ..और जब जब पढ़ती तो प्रेम का अहसास बड़ी तीव्रता से उभरता ...इसमें नायक और नायिका कई सालों के बाद दुबारा मिलते हैं ..लड़का जो उस समय तक अपने अकेलेपन और प्रेम की पीड़ा से बहुत गहराई तक टूट चुका होता है .
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लड़की से पूछता है ...."तुमने अब तक शादी क्यों नहीं की "..
वो मायूस सी कहती है ..."तब जिसे चाहा वो मिला ही नहीं और उसके बाद फिर किसी को चाह ही नहीं पायी "..
लड़का धीरे से ..हलकी घबराहट से उससे कहता है .."तब जिसे चाहा आज अगर वो तुम्हे चाहे तो ? "
लड़की एकदम से घबरा के उठती है और कहती है .." नहीं - नहीं ऐसा मत कहिये ..ऐसा नहीं हो सकता . आपको मैंने अपने मन में बहुत ऊँचा स्थान दिया है ..आप मेरे आदर्श पुरुष हैं ..मेरे इस सपने को मत तोडिये " और फर्श पर गिरकर बिलखने लगती है ...लड़का स्तब्ध ...अवाक ...निःशब्द चुपचाप उठकर चला जाता है ...कितना गहन प्रेम और उतनी ही गहन पीड़ा भी रही होगी इन शब्दों में ..कहने वाले के लिए भी और सुनने वाले के लिए भी ...! अगले दिन उस लड़के को लड़की का ख़त मिलता है ..जिसमे उसने लिखा है की वो आज  हमेशा के लिए
ये देश छोड़कर जा रही है ..सुदूर देश में ..जिस पर उसने अंतिम निर्णय कल रात ही लिया है ...उसके जाने के बाद ....लड़का भागकर airport  पहुँचता है पर तब तक flight जा चुकी होती है ....उफ़... कितना दर्द भर गया होगा उसके मन में ..और कितना आंतरिक रूदन भी फूट पडा होगा जिसे न जाने कितनी मर्मान्तक चेष्टा से उसने रोका होगा ...ये पढ़कर और सोचकर न जाने कितनी बार मेरी आँखें नम हुई उन दिनों .....!

               hostel
के दिनों में एक ख़त मिला मुझको ...बेनाम ख़त ..क्योंकि उस पर किसी भेजने वाले का नाम नहीं था ..सिर्फ एक कविता थी ...एक मशहूर कविता ...जिसमे कवि ने अपनी प्रेमिका को संबोधित करते हुए कुछ लिखा था ...इस ख़त में उस लड़की के नाम की जगह मेरा नाम था ..और पूरी कविता वैसी की वैसी ही थी ..गुलाबी पन्नो का वो ख़त जब मुझे मिला तो मै हैरान रह गयी ...ख़ुशी भी थी और अनिश्चितता भी ...किसी का नाम नहीं होने पर भी न जाने क्यों मुझे ऐसा महसूस हो रहा था की किसी की आँखों ने मुझे बहुत करीब से देखा है ..परखा है ..जाना है ..तभी वो ये कविता मुझे भेज पाया ..क्योंकि ये कविता तो मानो मेरे ही लिए लिखी गयी थी ...वो २ पन्ने का गुलाबी ख़त मेरे लिए एक अद्भुत अहसास था ...हालांकि मै निश्चित नहीं थी पर फिर भी मुझे पता था की ये तुम ही हो ...तुम समझ रहे हो न ...उफ्फ्फ्फ़  खुदा ! ये उम्र और ये अहसास ..न जीने देते हैं और न मरने !
   
और एक सबसे अजीब बात तुम्हे पता है ...इस ख़त के मिलने के २-३ दिन पहले ही मेरा रिश्ता लगभग पक्का हो चुका था और ऐसे में ये ख़त .....कितना विरोधी घटनाक्रम है न ये ....! वो ख़त मैंने बहुत समय तक संभल कर रखा था ..एक अजीब सी ख़ुशी और हलकी बेचैनी का अहसास होता था उसे देखकर ....भेजने वाले पर गुस्सा भी आता था कि बिना नाम के ख़त भेजने का क्या मतलब ...बस उलझन बढ़ा दी और क्या ....! पर मन की दिशा और  गति भी कितनी विचित्र होती है न कुछ ही देर में मै कुछ और सोचने लग जाती या आने वाली जिन्दगी के ताने बाने में खो जाती ...बे सिर पैर का भटकना भी उस उम्र में सुखद ही लगता है

              
कुछ समय के बाद मेरी शादी हो गयी ...नया परिवार ...नयी जगह ..अजनबी माहौल ....सब कुछ कितना अलग था ! कुछ अलग तरह की ख्वाहिशें ..अलग तरह के सपने पलने लगे .....ढेर सारी जिम्मेदारियां ..लोगों की उम्मीदें और इन सब के साथ सामंजस्य बिठाते हुए अपने आपको सही ; सक्षम और बेहतरीन साबित करने की चुनौती ..मायके और ससुराल के बीच बंटा मन ....पुरानी यादों और नए सपनो के बीच उलझता  मन ....इन सबके बीच ऐसा लगने लगा की मै तो कहीं हूँ ही नहीं ..बस रिश्ते ..जिम्मेदारियां ...मर्यादा और अव्वल दर्जे के समझदारी की उम्मीद ही बाकी रह गयी है .....जिस पर खरा उतरना है ...सबकी उम्मीदें पूरी करनी हैं ...क्यों होता है ऐसा हमारे साथ ...क्यों हर बार हमें ही खुद को साबित करना पड़ता है बिना किसी स्वीकार्य और तारीफ के .... फिर भी हम दूसरे नंबर पर ही आते हैं ( पहला तो रिज़र्व है न  पति परमेश्वर के लिए ) ! खैर , यहाँ भी वक्त जैसे- तैसे गुजरता ही रहा ...लगा की जिन्दगी अब यूँ ही गुजरेगी ....पर नहीं ....अभी तो करिश्मा बाकी था ..ऐसे सुखद आश्चर्य अगर न मिले तो कितने ही लोग भगवान् से आस्था खो सकते हैं ..ऐसा अब मुझे लगता है ....एक दिन किसी frnd की तस्वीरों के बीच कुछ बेहद आश्चर्यजनक दिखा ......मुझे तुम दिखे ....तुम्हारी वो आँखें .....हे भगवान् ..क्या आँखों में भी धडकने होती हैं ..उस एक पल के लिए तो मै स्तब्ध रह गयी ...तुम्हारी वही तीखी..गहरी ..खामोश ....बेचैन आँखें ..! मुझे तो लगा जैसे कुछ पल के लिए मेरी साँसें ही रुक गयी हों ... मै अपलक तुम्हें देखती रही ..बहुत देर तक और फिर कब मेरी आँखें नम हो गयीं पता ही नहीं चला ....! .....ये तुम थे ....तुम्ही तो थे ...केवल तुम ....और कोई हो ही नहीं सकता था ......दुनियां में ऐसी आँखें और किसी की नहीं हैं जैसी तुम्हारी ....क्या तुम्हें ये पता है ....उफ़ ! तुम्हारी ये आँखें मुझमे धड़कने लगी थीं .........!!



ufff  ये तुम ही तो थे ..मै तो अंदर से हिल गयी थी ..उस उम्र की सारी भावनाएं इस उम्र में भी उमड़ने लगी थीं ..लगभग २ दिन तो मुझे खुद को सँभालने में ही लग गए ..२ दिनों तक मै उन्हीं पुरानी यादों में खोयी रही ..महसूस करती रही ..और सच मानो मुझे ये लग ही नहीं रहा था कि ये बीच का इतना लंबा वक्त गुजर चूका है ..बस एक गहन उल्लास और कुछ बेहद अनमोल जो खो गया था वो वापस मिलने कि ख़ुशी का सा अनुभव हो रहा था ..ऐसा लग रहा था कि जैसे सारे फूलों कि खुशबू मेरी साँसों में बस रही हो या फिर चाँद कि तमाम रौशनी से मेरे दामन का ज़र्रा- ज़र्रा रौशन हो गया हो .! दरअसल मै इतना आह्लादित महसूस कर रही थी कि उसे शब्दों में नहीं बाँधा जा सकता है ...वो अहसास तो निर्मल हवा के झोंके सरीखे थे !
           
                      
और एक सबसे बड़ी बात ये भी थी उस वक्त कि कहीं कोई भांप न ले मेरे मन को ..परिवार वो व्यवस्था है कि जहां सामने वाला आपको आपसे बेहतर तरीके से जानता है ..समझता है ..आपका हर परिवर्तन चाहे वो कितना भी मामूली क्यों न हो ; उनकी नज़र से छिप नहीं सकता ..इसलिए खुद को सामान्य बनाय्र रखना भी एक बड़ी चुनौती ही था मेरे लिए ..क्योंकि बात यहाँ सिर्फ मेरी या मेरी खुशियों कि ही नहीं थी  ..दरअसल आपसे जुड़े लोग और उनकी ख़ुशी ज्यादा महत्वपूर्ण होती है ..परिवार का एक भी विचलन सबसे पहला और सबसे गहरा असर बच्चों पर ही डालता है ..और उसके सूत्र जुड़े होते हैं आपके जीवन साथी के साथ आपके सम्बन्धों पर इसलिए यहीं आपको सबसे ज्यादा सावधानी कि जरूरत पड़ती है ..मैंने भी यही किया ! किस तरह मैंने खुद को नियंत्रित और संयमित रखा ये सिर्फ मै जानती हूँ या फिर मेरा खुदा ..ये तो तुम भी नहीं समझ सकते ..!

    
और ये सब भी तब था जबकि मुझे इस बात का कत्तई अंदाजा नहीं था कि तुम मेरे बारे में क्या सोचते हो ...सोचते हो भी या नहीं ..मै तुम्हें याद भी हूँ या नहीं ...याद हूँ भी तो कहीं तुमने इसे बचपना समझकर टाल तो नहीं दिया ..और ये अंतिम प्रश्न बहुत कठिन था मेरे लिए ....! पर खैर ..अंततः मैंने अपने उसी frnd से no लेकर तुम्हे messege  किया ..और धडकते अहसासों से जवाब का इंतज़ार करती रही ....बहुत दिनों तक तुम्हारा कोई जवाब नहीं आया ..हर पल मै सतर्क रहती कि कहीं कोई messege तो नहीं आया ..हर बार ring आने पर लगता कि कहीं तुम्हारी कॉल तो नहीं है ..पर ऐसा नहीं हुआ ..और मै निराश होने लगी थी कि तभी एक दिन अप्रत्याशित रूप से तुम्हारा messege  मिला ..उफ़ ..लगा जैसे उन्हें तुम्हारी उँगलियों ने छुआ है और उसकी खुशबू इन अक्षरों में बस गयी है ...मैंने जब उस messege को हलके से स्पर्श किया तो एक मीठी सिहरन सी उतर आई मुझमे ......!

          
तुमने पूछा था कि मै कौन हूँ ? मैंने धीरे-धीरे बात आगे बढाई थी ..क्योंकि एक अनजाना सा डर था मन में  कि कहीं तुमने मेरा नाम सुनकर भी मुझे नहीं पहचाना तो ? या फिर पहचान कर भी सब कुछ ..अरे ; वो तो बचपना था ..कहकर टाल दिया तो फिर ...फिर मै क्या करूंगी ..? कई बार खुद पर बेहद गुस्सा भी आता था कि ये मै क्या सोच रही हूँ या क्या कर  रही हूँ ..इस उम्र में ऐसे अहसास ..ये तो कमसिन उम्र कि हसीन उपज होते हैं फिर मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है ..परिपक्वता से सोचने कि बजाय मै इसे अल्हड़ता से क्यों सोच रही हूँ ..पर शायद प्रेम के अहसास यूँ ही आपमें घुल जाते हैं क्योंकि कुछ ही देर बाद ये क्यों और बाकि सारे सवाल भी न जाने कहाँ गुम हो जाते ..रह जाते तो बस तुम और तुम्हारे साथ धडकते मेरे अहसास ..!

       
अंततः मैंने सांस रोककर तुम्हे अपना नाम बताया और ...ये क्या ...हे भगवान् ..तुमने मुझे पहचान लिया था और वो भी बेहद ख़ुशी के साथ ...तुम खुश हो रहे थे ..तुम्हारे शब्दों से भावनाएं छलक रही थीं ..और मै चकित सी उन भावनाओं में बही जा रही थी ..निर्बाध रूप से .....!
तुमने मुझसे कहा था  " मै बहुत खुश हूँ ..मै अन्दर से हिल गया हूँ ..और तुम्हें पता है मेरी आँखें भीग गयी हैं ..!"
और मै आश्चर्य मिश्रित खुशी से सोच रही थी कि ..क्या ऐसा भी होता है ( ये बिलकुल वही अहसास थे जो मैंने महसूस किया था )..हम दोनों बातों और भावनाओं के प्रवाह में निरंतर बहते जा रहे थे ...उफ़ ..क्या ये सपना था ? ..पर नहीं ..ये तो सच था जो मेरे साथ हो रहा था ...मेरे साथ .....अकल्पनीय ...पर सच ..!


    
तुमने मुझे बहुत सी बातें बताई ...कुछ ऐसी बातें भी जो मेरे लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं थीं ..मुझे आभास तो था पर मै निश्चित नहीं थी कि वो ख़त जो मेरे घर के बाहर मिलते थे ..वो तुम्हारे ही थे ...या फिर मेरी वो  पसंदीदा ड्रेस जो तुम्हे अब भी याद थी या फिर मेरा uniform  पहनने का तरीका ( कितनी बारीक नज़र रहती थी तुम्हारी मुझ पर )और ऐसी ही न जाने कितनी बातें जो तुम मुझे मेरे बारे में बता रहे थे और मै सम्मोहित सी सुनती जा रही थी ..लग रहा था कि ये सिल सिला कभी ख़त्म न हो यूँ ही चलता रहे ..पर ये तो संभव नहीं था न ...!


      
तुम्हे मेरी और भी बहुत सी बातें याद थीं ; और मुझे बहुत आश्चर्य हो रहा था कि उस उम्र में भी कोई किसी के बारे में इतना कैसे जान सकता है ..! तुमने जब मुझे बताया कि हॉस्टल में मिला वो गुलाबी ख़त तुम्हारा था तो यकीन मानो मै एक बार फिर सिहर उठी थी ...धडक उठी थी ..तुमने मुझे वो पूरी कविता जस कि तस सुना दी और ये भी बताया कि उस दिन के बाद तुमने ये कविता आज ही किसी को सुनाई है ...मै मुग्ध और सम्मोहित सी सब सुन रही थी ..!


     
एक बात मै भी बड़ी साफगोई से कहना चाहूंगी कि तुम ...हाँ तुम ही वो पहले और एकमात्र इंसान हो जिसने मेरे चेहरे पर वो पढ़ लिया जो कभी मै भी नहीं समझ पायी हालांकि महसूस जरूर करती थी ..और ये जानते ही मै एक बार फिर से चकित रह गयी ..दरअसल उस एक पल मै सहम गयी थी ..!

            
पर जो सबसे ख़ास बात है वो तो जाहिर होना बाकी था अभी ...मेरी जिन्दगी का सबसे बड़ा आश्चर्य ....तुमने मुझे कहा ..उफ़ ..ये लिखते हुए भी मेरी उंगलियाँ कंपकंपा रही हैं ..........

तुमने कहा " तुम मेरा पहला प्यार हो "


 
उफ़ खुदा ..ये शब्द नहीं थे ..ये तो अहसासों का समंदर था ....एक उबलता ज्वालामुखी था ..जो मुझमे फट पडा था और फिर इसकी रवानी बेहद सुकून देने वाली थी और इसी एक पल में तुमने मुझे वो दे दिया जिसकी खलिश तुम्हे मेरे चेहरे पर नज़र आई थी ...तुमने मुझे भावनाओं से भर दिया था ..उन भावनाओं से जो सिर्फ और सिर्फ टूट कर चाहने  पर ही महसूस होती हैं ....दरअसल उस एक पल में ही तुमने मुझे बेहद ख़ास बना दिया था ....बहुत विशिष्ट ...अपनी ही नज़रों में ....! इस एक पल के लिए मै कुछ भी कर सकती थी ..कुछ भी ..जो शायद हमारी कल्पनाओं से भी परे हो ..और वो पल तुमने मुझे दिया था हमनफज मेरे ! कोई आपको चाहता है ...आपसे प्रेम करता है ...ये ख़याल ही इतना ख़ास ...इतना सम्मानजनक है कि आप अपना सबकुछ इस एक अहसास के लिए कुर्बान कर सकते हैं ! मै इस अहसास को संभाल नहीं पा रही थी ..समेट नहीं पा रही थी !  सच कहती हूँ मै जी उठी थी इस एक वाक्य के अहसास से कि कोई मुझे इतने सालों से प्रेम करता है और इस बात से मै इतने समय तक कैसे अनजान रही ..कैसे जी पायी !

   
और अब लगता है की हर किसी के पास उसके हिस्से का आसमान जरूर होता है ..खुदा की एक मुस्कुराहट जरूर होती है ....बस यकीन बनाये रखना चाहिए ....!




   तुम मिले तो यूँ लगा की जैसे जो कुछ भी मुझमे मर रहा था वो एकदम से जी उठा ..एक खालीपन जो वर्षों से जीवन का एक हिस्सा लगता था ..अब धीरे- धीरे भर रहा था ...दिल में खुशियाँ उमड़ रही थीं ...ऐसा लगने लगा की सारी दुनिया को चीख - चीख कर बताऊँ की मै मामूली नहीं हूँ ...मै ख़ास हूँ ...बेहद ख़ास ...क्योंकि इस पूरी दुनिया में एक शख्स ऐसा है जो मुझे प्यार करता है .... बहुत प्यार करता है ....कभी-कभी अपने इस बचकानेपन पर हंसी भी आती ..पर फिर भी मै इन सब भावनाओं को दबा देती ...जिसमे मै अब तक माहिर हो चुकी थी ....! मै ये बात किसी से कह भी नहीं सकती थी ..तुमसे भी  नहीं .....दरअसल एक डर था मन में की कहीं कह देने से अहसास कम न हो जाए और वर्षों से जो खलिश कांटे की तरह दिन रात चुभती रही है ..वही कहीं और विस्तृत रूप में मेरे सामने खड़ी न हो जाए ..मै उस कंजूस की तरह हो गयी थी जो अपना धन किसी को दिखाता नहीं है और बहुत संभल- संभलकर खर्च करता है ...लेकिन आखिर कब तक ....बेहद  घबराहट के साथ मैंने तुम्हारे सामने इसे स्वीकार किया ..तुम हलके से हंस दिए ..और यूँ लगा जैसे ठंडी हवा के हलके-हलके झोंको से आँखें आहिस्ता-आहिस्ता बंद हो रही हैं ...बेहद सुकून और बेहद ठहराव का अनुभव हो रहा था ....सब कुछ  बहुत अच्छा ..और बहुत ख़ास लग रहा था ...हर वक्त तुम्हारे अहसास मुझमे स्पंदित होते रहते ..होठों पर अनायास ही मुस्कुराहट तैर जाती ...गुनगुनाते रह ने को जी चाहता पर बड़ी मुश्किल से मै अपनी भावनाओं को नियंत्रित करती ... तुम्हे याद है ..इसी दरम्यान मैंने तुमसे क्या कहा था ....मुझे अचानक ही याद आया की आज से पहले हमारे बीच कभी भी कोई भी बात नहीं नहीं हुई थी और आज हम ऐसे बात कर रहे हैं जैसे हम best frnd रहे हों  जिसे सुनकर तुम हंस दिए थे ...और तुम्हारी ये हंसी मेरी रग़-रग में बिखर गयी थी !

             
अब हम दोनों में ही तमन्नाएँ अंगडाइयां लेने लगी थीं ..बहुत बेताबी से मिलने का इंतज़ार हम दोनों ही कर रहे थे ..मै तुम्हारी उन्हीं आँखों में डूब जाना चाहती थी ...खो जाना चाहती थी ..जो पिछले तमाम वर्षों से मेरी तन्हाई का अटूट हिस्सा था ......तुम्हारी आँखों के लहराते समंदर को महसूस करना चाहती थी ...भरपूर कोशिश से रोकी गयी तुम्हारी उँगलियों की उत्तप्त बेचैनी को महसूस करना चाहती थी ....और भी न जाने क्या-क्या ....जिसे शब्दों में कह पाना लगभग असंभव है ...पर एक मूल फर्क है हम दोनों में ....तुम अपनी भावनाओं को निर्मल झरने की तरह उड़ेलते रहते और मै सर्वांग भीग जाती थी ...पर मै चाहकर भी ऐसा नहीं कर पाती थी ( शायद यही मूल कारण बना हमारे प्रेम के अवरोध का )...जैसा की मैंने पहले ही बताया था की मै बचपन से ही बेहद अंतर्मुखी थी ..कभी खुलकर कुछ नहीं कह पाती थी ...ये मेरी आदत बन गयी थी ...और आगे चलकर तो ये ही स्वाभाविक लगने लगा ...खुलकर प्रसन्नता या दुख जताना तो मैंने सीखा ही नहीं था ...फिर एकदम से मै कैसे बदल जाती ..मै भी वही सब चाहती थी जो तुम चाहते थे पर मै अपनी भावनाएं खुल कर व्यक्त नहीं कर पाती थी ...मुझे बहुत अफ़सोस भी है इस बात का पर क्या करून ....मै कह ही नहीं पाती थी ...मेरी इस कमजोरी को समझने की तुमने कोशिश की ..मै जानती हूँ ...पर शायद स्वीकार नहीं कर पाए ..न जाने क्यों तुम्हें ये लगने लगा की मुझमे वो अहसास नहीं हैं जो तुममे हैं ...जबकि ऐसा नहीं था ..मुझमे भी वही बल्कि मै तो कहूँगी की उससे कहीं ज्यादा बेचैन अहसास थे जो तुममे थे ....बस मै उन्हें जाहिर नहीं कर पायी !

                 
तुमने तय किया की तुम मुझसे मिलने आओगे ....मेरा मन मयूर सा नाच उठा .....तुमसे मिलना ...उफ़ खुदा ...मै खुद को संभाल नहीं पा रही थी ...ऐसा लगा मानो मेरी साँसें ही रुक जायेंगी ...तुम्हारे सामने आने पर तो मै शिला सी हो जाउंगी ..जिसे तुम.....केवल तुम ही अपने स्पर्श से स्पंदित कर पाओगे मेरे हमनफज ....!

    
पर सिर्फ भावनाओं से ही तो जिन्दगी नहीं चलती न ...कुछ पारिवारिक और सामाजिक दायित्व भी होते हैं जिनकी अनदेखी नहीं की जा सकती ....मैंने अपनी सारी बात तुम्हारे सामने बेहद इमानदारी से रखी पर मुझे ये जानकार बहुत दुःख हुआ की तुमने मेरी परेशानियों को मेरे इनकार के रूप में देखा जो की सर्वथा गलत था ...पता नहीं तुम्हें ऐसा क्यों लगा की मै टाल मटोल कर रही हूँ ...उफ़ खुदा ...क्या ऐसा भी होता है ....ऐसा हो भी सकता है की जिसे आप इतना चाहें उससे मिलने से इनकार करने की भी हिम्मत रखें ...मै बहुत आहत हुई उस दिन ...ऐसा लगा की कहीं कुछ टूट गया जिसकी किर्चियाँ मुझे अब तक चुभ रही हैं ....ये दुःख जैसे मेरी सारी खुशियों की काट - छांट करने के लिए एक कैंची की तरह आगे बढ़ रहा था ...और मै सब जानते-समझते हुए भी कुछ नहीं कर पा रही थी ...कितना विवश महसूस कर रही थी मै खुद को .....! मैंने तुम्हें समझाने की बहुत  कोशिश की ..कई बार तुम मान भी जाते थे पर ऐसा लगता है की जैसे ये बात नश्तर सी तुममे अटक गयी है की मै तुमसे मिलने में आना कानी कर रही हूँ क्योंकि तुम्हारे हिसाब से शायद मै तुमसे इतना प्यार नहीं करती..जबकि ये सर्वथा गलत था  ..ऐसा तुमने सोचा भी कैसे और क्यों .....??????......मुझे याद है की तुमने मुझसे कहा था " तुम्हें मैंने चाहा है तुमने तो बस स्वीकार किया है " ... मै तुम्हे कैसे बताती की ..मैंने भी तुमको चाहा है ..बस मै खुलकर अभिव्यक्त नहीं कर पाती ....तुम्हें कैसे बताती की तुम मेरे लिए क्या हो ..और अब तुमने मुझमे क्या-क्या बदल दिया है ...आज जब तुम ...तुम्हारी आवाज़ ....तुम्हारी हंसी ...तुम्हारा गुस्सा ..सब कुछ मेरी रगों में जज्ब हो गया है तब तुम मुझसे ये सब कह रहे हो ..तुम कैसे कह पाए ये सब ...इतना सब ....!

          
कभी - कभी ये भी लगता है की शायद तुम मुझसे मिलकर निराश हुए हो ....शायद वो मै नहीं थी जिसे तुमने कभी भी चाहा था ...मै वैसी नहीं रही जैसा तुमने सोचा होगा ...मै तुम्हारी उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी ...तुम्हारी कल्पनाओं में शायद मुझ जैसी कभी कोई थी ही नहीं .. तुमने अपना आना cancel कर दिया ..जब मुझे तुमने" नहीं " कहा तो ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे समूचे व्यक्तित्व पर एक साथ कडा प्रहार किया है ...मै कुछ बोल ही नहीं पायी ...एक बार फिर स्तब्धता की स्थिति थी ..पर इस बार ये एक  भयंकर आघात से उभरी थी ...मै बेहद अपमानित भी महसूस कर रही थी ...पर जैसा की तुमने कहा था तुम नहीं आये ..मै इस इनकार को सहज रूप से स्वीकार नहीं कर पा रही थी .....इतने वर्षों बाद मिली इस अनमोल सौगात की उम्र इतनी कम होगी ये तो मैंने सोचा ही नहीं था ...कल्पना भी नहीं कर सकती थी पर ये तो हो चुका था ...!

           
उसके बाद भी मैंने तुमसे बात करने की कोशिश की ...बताने की कोशिश की पर शायद तुम भी कहीं न कहीं मुझसे आहत ही रहे होगे जो तुम मेरी बात को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे ...मै ये जरूर कहूँगी की तुम भी मुझसे बेहद प्रेम करते हो ..पर उससे ..जो कई साल पहले मै थी ....मेरे आज से शायद तुम प्रेम नहीं कर सकते या फिर अपने अहसासों का तारतम्य नहीं बिठा सकते ....सच क्या है ये तो बस तुम जानते हो ..पर इस स्थिति को मै अपना नहीं पा रही हूँ .....इतने लम्बे वर्षों के बाद आपका इष्ट मिलना और वो भी इतने कम समय में आपको विलग कर दे ..ये बात मुझे अन्दर ही अन्दर तोड़ रही है ....! कुछ समय बाद तुमने कहा की हम बस एक अच्छे मित्र की तरह हैं और रहेंगे ....क्या ये संभव है ...क्या दुनिया में कोई भी व्यक्ति अपनी चाहत के साथ केवल मित्र की तरह रह सकता है ..क्या कोई भी अपनी इस तरह की भावनाओं को नियंत्रित और परिवर्तित कर सकता है ...मुझे कत्तई नहीं लगता ...कम से कम मै तो ऐसा नहीं कर सकती ...तुमने कहा की तुमने मित्रता चुन ली है ...मै स्तब्ध हो गयी ...लेकिन मैंने तो सिर्फ प्रेम को ही चुना है ..और उसे बेहद शिद्दत और पूरी इमानदारी से निभाउंगी भी ...क्योंकि मेरी नज़र में प्रेम एक बहुत ही पवित्र एहसास है ...बहुत ही रूहानी एहसास है और जिसकी मै बहुत इज्ज़त करती हूँ ...मै अपने प्रेम की और जिससे मै प्रेम करती हूँ उसकी बेहद इज्ज़त करती हूँ ...और ये मै ताउम्र निभाउंगी भी ...!

        
पर ये भी उतना ही सच है की मेरा डर सच बनकर सामने आ गया ....मै फिर बेहद अकेली हो गयी ..पहले से भी ज्यादा ..क्योंकि इस अकेलेपन में तुमसे अलग होने का दर्द भी शामिल हो गया है ....मै ये बात भी किसी से कह नहीं सकती ...सच है की जिन्दा हूँ पर सच कहती हूँ जिया नहीं जा रहा है ...साँसें चल रहीं हैं पर बेहद घुटन महसूस होती है ...हर वक्त लगता है की काश एक बार तुमसे बात कर लूं ...तुम्हारी आवाज़ सुन लूं ..या फिर तुम्ही मुझे फोन करो या कोई messege  भेजो ..हर वक्त कहीं न कहीं मेरे अन्दर तुहारा इंतज़ार बना रहता है पर ये भी सच है की अब मै तुमसे अपने प्यार की भीख नहीं मांगूंगी ...क्योंकि अहसास बदले नहीं जा सकते ..जो जैसा है उसे वैसे ही पूरे सम्मान के साथ स्वीकारना होता है ..और मै अपने साथ-साथ तुम्हारा भी सम्मान वैसे ही बनाए रखना चाहती हूँ क्योंकि मै हमारे प्रेम को गर्व की तरह देखना चाहती हूँ ..मजबूरी की तरह नहीं ...मेरे हमनफ़ज ...!!


 
तुम ये सब सुन रहे हो न ....सोचना जरूर ...............!



 

मुझे ऐसा क्यों लगता है की तुमने मेरे होने को ही खारिज कर दिया है ...मेरी समस्त संवेदनाओं....भावनाओं और बेचैनियों को सिरे से ही नकार दिया है ..तुम्हारी जिन्दगी में मेरा आना मानो एक प्रश्नचिन्ह बन गया था जिसे तुमने झाड पोंछकर खुद के जीवन को फिर से सुन्दर और सरल बना डाला ....क्यों किया तुमने ऐसा ...क्या तुम्हारा मेरे प्रति या मेरी भावनाओं के प्रति कोई दायित्व नहीं था ..ये एक प्रश्न मेरे जहन में लावे सा हर वक्त उबलता रहता है ..जब भी मै अकेली होती हूँ ...चेतन या अचेतन होने पर भी ...!! मेरे जीवन के इस चमकीले  अहसास को अँधेरे में बदलने का क्या हक़ था तुमको ..ये सवाल भी मै बार-बार खुद से पूछती हूँ और हर बार एक जवाब मेरी समस्त उपेक्षाओं के बावजूद भी मेरे सामने खड़ा हो जाता है कि...है ...तुम्हे है ..दरअसल तुम्हीं को तो है ,क्योंकि तुम्ही हो जो मेरी जिन्दगी में रौशनी और अँधेरे का होना निश्चित या निर्धारित कर सकते हो .....फिर क्यों तुमने मेरे लिए नकारात्मकता ही चुनी ...बता सकते हो ...नहीं ..ये मत समझना कि मै कभी भी तुम पर कोई दबाव डालूंगी या किसी से ये बात कहूँगी भी ...हमेशा कि तरह ये बात बस मेरे और तुम्हारे बीच ही रहेगी ..भले ही अब तुम मेरे साथ नहीं हो तो क्या ...क्योंकि मै जानती हूँ कि तुमने अगर ये किया है तो सही ही किया होगा ..मेरे लिए गलत तो तुम कभी कर ही नहीं सकते ..शायद मै इसमें छिपी अच्छाई समझ नहीं पा रही हूँ ...हो सकता है कभी समझ भी पाऊं ..इसलिए तुम निश्चिन्त रहो ..ये बात कभी किसी को पता नहीं  चलेगी हमनफज मेरे ..!


                   पर क्या करूं ...संभलने कि तमाम कोशिशों के बावजूद भी कभी कभी मै खुद को संभाल नहीं पाती ..ऐसा लगता है कि मेरा होना ही गलत है ....कभी भी किसी के लिए मै इतनी महत्वपूर्ण   नहीं रही ...कभी ऐसा नहीं लगा कि किसी के लिए मेरा होना इतना जरूरी है कि जब मै नहीं रहूंगी तो उसे मेरी कमी सही नहीं जायेगी .....आप महत्वपूर्ण नहीं हैं ..ये आपके अस्तित्व पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह होता है ..जिसे स्वीकार कर पाना भी बेहद मुश्किल होता है ...ऐसे अस्तित्वहीनता कि जद्दोजहद में घिरे होने पर यदि कोई ऐसा मिले जो कहे कि आप उसके लिए सब कुछ हैं ..उसका जीवन ...उसका प्यार ...तो फिर ऐसे व्यक्ति कि संतुष्टि और ख़ुशी का सहज ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है ...परन्तु अगर वो भी ये कह दे कि अब आपकी उसके जीवन में वो जगह नहीं रही तब आप क्या करेंगे ....निश्चय ही आपका विश्वास हिल जाता है ..उस पर से ,जीवन से और सबसे ज्यादा खुद पर से ...और यही अस्तित्वहीनता का बोध आपको निरंतर निराशा के गर्त में धकेलता रहता है ..और अंततः एक दिन सब ख़त्म हो जाता है ...दरअसल प्रेम का होना सिर्फ भावनाओं का होना ही नहीं होता ..ये आपके अस्तित्व  के होने का भी सबसे प्रबल प्रमाण भी होता है .!..इसे वो लोग भली भांति समझ सकते हैं जिनके जीवन में प्रेम के अभाव कि स्थिति होगी ...! प्रेम जीवनदायिनी शक्ति होती है ..इसीलिए कई बार जब किसी असाध्य रोग में चिकित्सा तक विफल हो जाती है वहां भी प्रेम अपना चमत्कारिक असर दिखाता है ...!

        तुमने  मुझे कभी call नहीं की ..शायद याद भी नहीं किया होगा ...पर हाँ तुम्हारी विनम्रता और सज्जनता कि मै कायल हूँ ...मैंने जब भी तुमसे बात करनी चाही तुमने बेहद स्वाभाविक और सामान्य तरीके से ही बात की ...कभी मुझे छोटा नहीं महसूस होने दिया ..लेकिन कभी वो भी तो नहीं कहा तुमने जिसे सुनने के लिए मै रात दिन छटपटाती  रहती थी ..कहना तो दूर तुमने तो ऐसी किसी भावना के होने का हल्का सा आभास भी नहीं होने दिया ..मै उलझती जा रही थी ...तुम्हारा बर्ताव समझ ही नहीं आता था ....कई- कई दिन गुजर जाते थे ..मै हर बार सोचती थी की अब तुम्हे कॉल नहीं करूंगी ...देखूं तुम करते हो नहीं ...पर तुमने नहीं किया ..कभी नहीं किया ..बल्कि तुमसे बात करने के लिए हर बार मुझे एक लंबा इंतज़ार करना पड़ता था ..मै खीझ जाती थी ..हर बार अपनी ही प्रताड़ना करती थी ....पर फिर भी जैसे ही कुछ दिन बीत जाता मै फिर से विचलित होने लगती ...तमाम कोशिशों के बावजूद भी मै खुद को रोक नहीं पाती और तुम्हे कॉल कर देती थी ..हर बार तुम बहुत ही दोस्ताना तरीके से बात करते ..पर वो नहीं कहते जो मै सुनना चाहती थी ..मै हर बार कुछ और आहत होती और शायद इसी वजह से मै भी कुछ कह नहीं पाती थी ..जबकि ये दर्द मुझे अन्दर ही अन्दर तोड़ रहा था ...मै खुद को बहुत विवश पा रही थी ..किसी और से कुछ कह नहीं सकती थी ...तुम मेरे पास थे नहीं ..मै क्या करती बताओ....कभी कभी मुझे हैरानी होती इस बात की कि क्या इस उम्र में भी ये भावनाएं इतनी ही तीव्र होती हैं ..क्या इनको संयम से संभाला नहीं जा सकता ....पर मुझे ये कहने में कोई हिचक नहीं है कि मै ये नहीं कर पा रही थी और दिनों दिन निराशा और बेतरह दर्द से घिरती जा रही थी .....!

तुम मुझसे दूर हो रहे थे और मै खुद से कि जिया नहीं जा रहा था अब इस दर्द से भरपूर इनकार के साथ ....इस सच के साथ कि तुम आये तो थे मेरी जिन्दगी में पर मै तुम्हें समेट नहीं पायी ..संभाल नहीं पायी . ये मेरी नाकामी थी या फिर मेरी तकदीर जो हर बार सूरज दिखाकर परछाईं थमा देती है मुझे जिसमे मुझे मेरा ही अक्स जकड़ा हुआ , बेबस , धूमिल और स्याह नज़र आता है .

तुम आये भी और चले भी गए ...ये किसी भी तरह स्वीकार्य नहीं था मुझे पर सच तो आखिर सच ही होता है न . तुम एक बार फिर गुम हो गए ...खो गए . ये भी संभव है कि शायद तुम भी आहत हुए थे , निराश हुए थे . शायद तुम्हारी परिकल्पना पर यथार्थ भारी पडी हो जिसे तुम स्वीकार नहीं कर पा रहे थे ...सह नहीं पा रहे थे इसलिए दूर हो गए .वजह चाहे कुछ भी हो पर सच ये है कि अब मै फिर से उसी पहले वाली स्थिति में हूँ और इस बार अतिरिक्त दर्द और अकेलेपन के साथ और आहत मनःस्थिति के साथ भी . इनकार तोड़ देने वाली सच्चाई है वो भी ऐसी स्थिति में जहां आप अपने सम्पूर्ण कोमल , मुलायम और सुन्दर अहसासों से ओत-प्रोत  सपनो में खोये हों और कोई एक ही झटके में आपको तेज़ाब के समन्दर में धक्का दे दे और आप हतप्रभ से लुटे-पिटे तरीके से और स्तब्ध भावनाओं के साथ उसे समझने का प्रयास भर ही कर पाने की क्षमता खुद में महसूस कर पा रहे हों . ये घुटन और जलन असीमित और अनंत है मेरे लिए पर मै खुद को टूटने नहीं दूँगी क्योंकि तुम बेशक मेरे लिए न रहो पर मेरा प्रेम जो तुम्हारे प्रति रहा है वो हमेशा वैसा ही रहेगा ....सुन्दर ....गंभीर और गरिमापूर्ण और ये मेरी निजता है मेरा सम्मान है जिसे कोई मुझसे अलग नहीं कर सकता ...खुद तुम भी इसमें दखल देने का हक़ नहीं रखते हमनफ़ज मेरे .

अब तुमसे कोई शिकायत ,कोई उम्मीद कोई अपेक्षा नहीं . तुम्हारी कोई खोज -खबर या ढूँढने की हल्की सी भी चेष्टा नहीं क्योंकि अब तुम मेरे लिए उस धरातल पर हो जहां प्रेम अपनी रूहानियत संग जनमता है खुद के अन्दर खुद के लिए स्व बनकर ....तुम उस खुशबू की तरह हो जो साँसों से हर वक्त मुझमे घुली रहती है , मै तुम्हें महसूसती रहती हूँ . गुनगुनाती रहती हूँ और कभी-कभी मुस्कुराते हुए हुए रो भी  देती हूँ ...पर बेहद ख़ामोशी से .

घटनाएं तो होती ही हैं जिंदगियां परिवर्तित करने के लिए पर जब वो किसी खास और कोमल अहसास से जुडी हों और वो भी उस दौर में जब धड़कन भी अजनबी लगती थी तो निश्चित जानिये कि उसी दौर में आपके सम्पूर्ण जीवन का प्रारूप तैयार होना शुरू हो चुका है , रंगों और मुस्कानों का निर्धारण वक्त करेगा और खुशियों की लकीर तो किस्मत ने अपने अधिकार क्षेत्र में ले रखी ही है .

परन्तु अब भी तुम बेतरह याद आते हो ....कई बार बहुत टूटकर ...बहुत डूबकर और तब मेरे अश्कों से मुट्ठी भर गुनगुनी धूप जन्मती है और पूरे अस्तित्व पर छा जाती है किसी बिखरी हुई नज़्म के टुकड़ों की तरह जिसे लिखा था इक आह ने बड़ी शिद्दत से लहू में डूबकर मेरे हमनफ़ज़ !!



                   अर्चना "राज

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