Thursday 12 February 2015

एक बार फिर


नीला पानी अक्सर भूरा नज़र आता है 
सलेटी भी 
तलछट टूट टूटकर घुलती जो रही है अनवरत , 

यूँ तो समंदर शांत ही था कभी 
मौन सहज 
पर अंतस की वेदना उबलती रही शताब्दियों तक 
भीतर ही भीतर 
चरम वेदना के प्रसव से जन्मा फिर 
बेचैन ह्रदय का आदिशिशु 
फिर जन्मी क्रमशः एक यात्रा युवा होने की 
कुछ और युवा 
कि रच सके शहद सरीखी साँसों से मीठा आफताब 
कर सके रचना सुन्दर महकते स्वप्न की 
गढ़ सके शिल्प अपार मानवता के 
एकत्रित कर सके रेतयुग्मों को भविष्य के टाल हेतु ,

हर कोशिश निरंतर कुछ और थका देती 
निचोड़ती रहती अंतस का रस तब तक 
जब तक की संवेदनाएं 
शून्य की परिधि के भीतर सिमट नहीं जातीं 
हौसले की सतह खो नहीं जाती 
ख्वाहिशों की पोटली गल नहीं जाती ,

अंततः समन्दर का शहद धीरे-धीरे नमक होने लगा 
युवावस्था ज़र्ज़र रोगयुक्त वृद्ध 
इस तरह नियति ने अपना ने रंग बदला ,

परन्तु नियति फिर रंग बदलेगी 
फिर जन्मेगा कोई महान आदिशिशु 
युवावस्था के ज़ज्बे से 
करने परिवर्तित अतीत की असफलताओं को 
नीले पानी की आत्मा पर लिखेगा 
सुदर प्रेमयुक्त जीवन समस्त ह्रदयों के लिए 
तब समन्दर एक बार फिर गमक उठेगा 
मीठेपन की सोंधी गंध से !!

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