Monday, 27 November 2017

इश्क

इश्क आदत है निभाते रहिये
दर्द सरेराह यूँ बिछाते रहिये,
भर उठे जब भी आँसुओं से हलक
नगमा महफिल में सुनाते रहिये,
रख कर हाशिये पर राहतोें को
खुद में बेचैनियां जगाते रहिये,
कभी रियाज तो कभी चोटों से
दिल को शबनमी बनाते रहिये,
रात टूटी है बङी देर के बाद
जाम उसको भी पिलाते रहिये,
यकबयक सामने आ जायें कभी
उनको इस तरह बुलाते रहिये,
न हुये मेरे तो कोई बात नहीं
"राज "गैर न हों ये सिखाते रहिये।

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