Monday, 27 November 2017

औरतें

औरतें
कई दफे वैसी नहीं होतीं जैसा उन्हें होना चाहिए
ये कुछ अजीब है
यूँ उनका होना हो सकता है आपको चमत्कृत करे
पर यकीन मानिए यही सच है ,
कई दफे औरत नहीं चाहती किसी रिश्ते का होना
किसी रिश्ते में होना
जहाँ उम्मीद के मुताबिक हर पल उसका आंकलन होता रहे
हर नज़र संतुष्टि के हिसाब से देखे उसे
तौले उसे फिर प्रमाणित करे
उसके सफल और असफल होने को
ये बोझ है जिससे वो उकता जाती है झुंझला जाती है
कठोर हो जाती है
नहीं करती वैसे जैसे आप चाहते हैं
तो अगली बार जब किसी झुंझलाई उकताई कठोर औरत को देखें
बजाय आक्षेप व् क्रोध तनिक उसके पास जाएँ
उसे स्नेहिल स्पर्श दें
अपनी निश्छल मुस्कान दें
उसे प्रेम दें ,
पर कई दफे औरत प्रेम भी नहीं चाहती
उब चुकी होती है दोहराई जाने वाली प्रेम क्रियाओं से
वितृष्णा की हद तक
वो बेटी बहन पत्नी माँ कुछ नहीं होना चाहती
उसे एकांत की जरूरत है
सिर्फ एकांत
जहाँ वो कर सके अपनी मनमर्जी
अपनी बेवकूफियां
कर सके आईने से बात
जोर जोर से ताली बजाकर हंस सके ,
तो अब
दरअसल
कई दफे वो चाहती है एक मित्र बिना किसी पूर्वाग्रह के
कि जिससे कर सके वो अपने दिल की बात खुलकर
रिश्तों की मर्यादा के चश्मे के बगैर
कह सके वो सब कुछ जो वो कहना चाहती है बेबाक होकर
जो नहीं कह सकती माँ बाप से ,भाई बहन से बच्चों से साथी से
या फिर अपनी निकटतम मित्र से भी
समाज खांचे में फिट किये बैठा जो है सबको
वो सब कुछ कह देना चाहती है जो सालों से उसके अन्दर कैद है
जो सालों से उसे डरा रहा है
जो सालों से उसे घुटन से भर रहा है
जो सालों से उसके मन को पल पल तोड़ रहा है
बिना किसी चरित्र चित्रण के डर के
बिना किसी प्रमाण पत्र के खौफ के
बिना किसी स्वर्णिम मुहर के ,
कुछ लम्हा वो जीना चाहती है खुद होकर
उसे चरित्रहीन मत कहिये
उसे मुक्त होने दीजिये अपनी पीड़ा से
अपनी कुंठाओं से
सरल सहज निश्छल स्त्री होने दीजिये
इससे बेहतरीन इस दुनिया में कुछ भी नहीं !!

No comments:

Post a Comment