Monday 27 November 2017

छोटी बच्ची

मै आज भी
उस दौर में हूँ
जब तितली के परों पर
खुशबुओं से नज़्म लिखा करते थे ,
जब हवाओं पर उड़े उड़े फिरा करते थे 
जब आंगन में चूल्हे होते थे
जब पेड़ों में झूले होते थे ,
जब माँ की गोद लिहाफ सी हुआ करती थी
जब कुनमुनाई सी नींद बाहों में गुजरती थी
जब सरसों के तेल तालू पर थपक थपक कर रखे जाते थे
जब अमरुद गाजर का हलवा भूनी मूंगफली
साथ बैठकर खाते थे
वो अन्ताक्षरियों का वक्त था
पो शम पा और गुड्डे गुड़ियों का वक्त था ,
मुझे फिर से उसी वक्त में बस लौट जाना है
मुझे फिर से अपनी माँ की छोटी बच्ची भर
बन जाना है |

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