Monday, 27 November 2017

माँ

कुछ यादें हैं मीठी सी तो कुछ लम्हे बहुत सुहाने हैं
मेरी नींदों में अब भी वो मौजूद पुराने गाने हैं ,
बचपन में जब भी मै तुमसे कहती मुझको गुडिया ला दो
तुम कहतीं कि तैयार है बस कंगन उसको पहनाने हैं ,
तुम थपकी देकर कहती थीं सो जा मेरी बच्ची सो जा
मै भर दुलार से कहती थी माँ किस्से अभी सुनाने हैं ,
तुम छोड़ गयीं जिन लम्हों को पूरा करना न याद रहा
उन लम्हों को ही जोड़ जोड़ यादों के महल सजाने हैं ,
आती हो याद बहुत मुझको भाई भी रोया करते हैं
हम दोनों को मिलकर ही बस जीने सारे अफ़साने हैं !!

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