Monday, 27 November 2017

मन

मन कहे मन की तू कर
मौसम ये मद सा घुल हवाओं में रहा
गहरे उतर ,
रुक गयी तो सोचती रह जायेगी 
डर गयी तो कसकती रह जायेगी ,
बढ़ तू आगे थाम ले मुट्ठी में कसकर
पी ले उसको ढाल कर प्याले में
और फिर नाच
हाँ नाच होकर मलंग जैसे
जैसे नाची थी कभी मीरा दीवानी
और जैसे नाच उट्ठी थी कभी सब गोपियां
कान्हां के सदके
नाच वैसे ,
तो अब मन कहे मन की तू कर
मौसम ये मद सा घुल हवाओं में रहा
गहरे उतर
तू सांस भर गहरी जो पहुंचे आत्मा तक री सखी !!

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