Monday, 27 November 2017

तुम सी

एक फर्क है बस
आज की शाम और महीने भर पहले की उस शाम में,
आज एकांत अंधियारे मेँ चुपचाप बैठी हूं
अकेली.. उदास
कोई नहीं है आस पास,
जबकि उस शाम खूब चहल पहल थी
शोर शराबा और लोगों की लंबी भीड़
तस्वीर सजी थी तुम्हारी
तारीफों की झडी
तुम्हारी याद में आंसू
तुम्हारे खूब भाग्यवान होने का जिक्र
तुम्हारी जिद्द ,तुम्हारे ठाट ,तुम्हारी शाही तबीयत के किस्से
सभी कुछ तो था
नहीं थीं तो बस तुम,
ये सब था
कि कह सकें तुमको अंतिम विदा
कर सकें तुमको रुखसत
पर सब बेमानी था मां
बेकार गया
तुम तो यहीं हो
तुम अब भी हो
कि तुम सी मैं जो हूँ ।

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