Monday, 27 November 2017

भावचित्र

ये उस दौर का एक भावचित्र
जब धरती हुआ करती रही
आग का एक विशाल गोला
तपती ,दहकती , निर्लिप्त ,एकाकी ,
और जब बारिश पहली बार छलकी होगी
फिर और छलकी होगी
फिर बरसी होगी बेहिसाब
टूट पड़े होंगे रेले
और छन्न से गूंजा होगा संगीत
सरगम का पहला सुर
पहली धुन
और फिर बजता ही चला गया होगा
उन्मत्त बूंदों के सतरंगी प्रवाह में
नाच उठा होगा मन मयूर
आत्मा तृप्त हो प्रमुदित हुयी होगी
जग बौराया होगा
गगन मुस्काया होगा
अहा ....अद्भुत ....
आंख मीचे मुदित मगन हो करें कल्पना !!

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