Wednesday 1 February 2012

क्यों आये तुम ?

क्यों आये तुम ?
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मेरी नाउम्मीद चाहतों में
हौसलों की उडान भरने ;
बेचैन हसरतों में
मुस्कान की रागिनी फ़ैलाने ;
क्यों आये तुम .....?

मैंने तो मान लिया था
कि अब यूँ ही जिन्दगी मेरी
उबलते पानी की शक्ल में पलेगी
और आहिस्ता - आहिस्ता भाप में बदलकर
इक रोज ख़ामोशी से गुम हो जायेगी ;
बिना किसी शोर के
बिना किसी को जताए ,

मैंने तो ये भी सोचा था
की हर बदलते मौसम के साथ
मै कुछ और बिखराव
कुछ और दर्द
अपने अहसासों की गठरी में
तब तक समेटती रहूंगी
जब तक मेरे अरमानो में
थोड़ी भी साँसें बाकी हैं ,

हर तन्हाई में
जब - जब कोई अहसास जागा
और एक साथ
न जाने कितने तितलियों की सिहरन
मैंने महसूस की
पूरी सख्ती से उन सबको मै
कांच की एक बड़ी सी बोतल में
बंद करती गयी ;
बोतलों पर बोतलें भारती गयीं
और मेरा अक्स हर बार
कुछ और बदरंग होता गया ,

अब तो आईने ने भी
मेरे चेहरे की लकीरों का
हिसाब रखना शुरू कर दिया है
और क्रूर ख़ामोशी ने
मेरे कभी-कभार
बेसाख्ता उभरते अहसासों पर
सख्त पहरा लगा रक्खा है ,

ऐसे में क्यों आये तुम
क्यों एक खामोश झील में
तमाम कंकड़ यूँ ही उछाल दिए तुमने
मुस्कुराते हुए ;
क्या  एक बार फिर से
उसी पुराने रास्ते से गुजरने की
अज़ीम ख्वाहिश लेकर
या फिर इस बार
अपने कदमो के निशानों को
तमाम उम्र के लिए
उस झील में
दर्द का सैलाब उठाने के लिए ,
ये तो लाजिमी नहीं था न हम्न्फ्ज़ मेरे
फिर क्यों आये तुम .......??



  अर्चना राज !!





















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