Monday 6 February 2012

पोर्ट्रेट !

कोरे कैनवास पर
ये कैसा पोर्ट्रेट उकेरा है तुमने ;
मानो  पूरा दर्द ही बिखेर दिया हो
अपनी नाउम्मीदगी और हताशा के संग ,

खूबसूरत तो बेइंतहाँ  है पर
ये कैसी अदृश्य पारदर्शी चादर से ढंकी दिखती है ;
क्या इसे तुमने अपने लहू के
अलग - अलग रंगों से सजाया है;
अनगिनत भावों को
कई तरह की पेंसिल से
रेखाएं दी हैं तुमने;
और क्या तुम्हारा ब्रुश भी
घायल फाख्ता के परों से ही बना है ,

अहसासों को एक बड़े प्रश्नचिन्ह की तरह
तुमने आँखों में उतारा  है
तो चेहरे की बेहिसाब पर छुपी हुई लकीरों में
बड़ी खूबसूरती से
अपने अंतस की वीरानियां भर दी हैं तुमने,

सुर्ख प्यारे होठों पर
ये कितने तहों की
पपड़ियाँ जमाई हैं तुमने
जैसे हर बार आहों का उफान
थमता गया हो
शब्दों में परिवर्तित होने से पहले ही ,
और उसकी तकलीफ
रोती रही है सीने में
जहां तरलता अब भी फूट फूट पड़ती है 
निरंतर
इक गर्म सोते सी,

उसके आँचल में
ये कितने कांटे उगाये हैं तुमने
या फिर अपनी निराश तल्खियों को ही
भूरे  रंग का जामा पहना दिया है
चुभते हुए सवालों की तरह
जिसका जवाब भी तुम्हे  नामालूम सा
हर वक्त तुम्हारे ज़हन में कसकता रहा
सिसकता रहा ,

हथेलियों की जगह
बर्फ का एक टुकड़ा रख दिया है तुमने
लगातार पिघलता हुआ
पर फिर भी जस का तस
वैसे का वैसा ही ;
शायद इसी वजह से तुमने कभी
स्पर्श की तपिश महसूस नहीं की
क्योंकि ये सहमी हुई बर्फ
कभी पूरी तरह पिघल ही नहीं पायी
और तुम्हारा इंतज़ार
बूँद दर बूँद विस्तृत होता चला गया ,

उसके तलवों को
जलती रेत की शक्ल दी है तुमने
जिसकी जलन सदियों तक उसे तपाती रहेगी
तुम्हारी अधूरी ख्वाहिशों की तरह ,

उसके जिस्म को
तुमने इस कदर बेचैन जिद्द से उकेरा है
मनो अब भी तुम्हें
उनमे एक स्निग्ध्ह तरलता का आभाष मिलता हो
या फिर अब भी तुम
उसकी अतृप्त लहर को
सांस दर सांस जी लेना चाहते हो ,

इन सबके लिए रंग तो तुमने
न जाने किन किन स्याह समन्दरों
दर्दीली घाटियों और सूखती पंखुड़ियों से
जबरदस्ती छीन कर इकट्ठा किया है;
तभी तो ये इस कदर
अद्भुत नज़र आता है
तुम्हारी जिन्दगी के मास्टर पीस  जैसा !!


                 अर्चना राज !!

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