Friday 20 July 2012

कभी-कभी

कभी -कभी हवाओं पे लिखे नाम भी सुलग उठते हैं
और दर्द बेहद सुकून देने लगता है ;
यूँ लगता है मानो इश्क की तकदीर लाल सियाही से लिखी है
इसीलिए तो अक्सर ही नज्मे ज़ख्म सी नज़र आती हैं ,

कभी कभी उसकी यादें भी बड़ी गैर जरूरी सी मालूम देती हैं
क्योंकि तब अनायास ही उसकी खुशबू मुझे
मुझे अपने कपड़ों में महसूस होने लगती है ... न जाने कैसे ,

कभी-कभी मै जी लेती हूँ उन लम्हों को भी
जो मुझे देखते ही बड़ी मासूमियत से हंस दिया करते हैं
और फिर बेसाख्ता ही दीवारों पर कुरेदे गए इक नाम से
नमी रिसने लगती है आहिस्ता-आहिस्ता ,

कभी-कभी यूँ भी होता है की उसका चला जाना
मुझे बड़ा स्वाभाविक सा लगता है
तकलीफ होती है तो बस ये कि उन कदमो के निशान
कभी मुझ तक वापस नहीं लौटे ,

और यूँ ही धीरे-धीरे एक सफ़र ख़त्म होता रहा
और ऐसे ही एक इश्क परवान चढ़ता रहा !!


                                 अर्चना राज !!

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