Thursday 18 July 2013

रज्जो ------ कहानी





शाम ढलने को थी ..धुंधलका भी अब छाने लगा था ; पक्षी घरों को लौटने लगे थे और साथ ही दिन भर हाड़तोड़ मेहनत करके किसान भी वापस अपने घरों को लौट रहे थे ..आपस में बात चीत करते ..हँसते- बतियाते ..! बैलों के गले में बंधी घंटी भी एक मधुर संगीत बिखेर रही थी ; हलकी बहती सर्द हवा ने इस पूरे वातावरण को एक मनोरम रूप दे दिया था . तभी दूर से आती गाने की आवाज़ ने सभी का ध्यान आकृष्ट किया और सभी चुपचाप उस गाने को सुनने लगे ;ऐसा लग रहा था मानो वो आवाज़ कलेजा चीर कर निकल रही हो ..एक छिपे हुए रुदन को कोई अपनी आवाज़ में उतार रहा था .!

                      चूल्हे में आग जलाती औरतें अक्सर ही इसे सुनकर खो जाया करती थीं और उनकी आँखों में नमी कब उतर जाती उन्हें पता ही नहीं चलता पर  जिसे वो धुंए की ओट में आसानी से छुपा लिया करती थीं ..दरअसल औरतों का कोई न कोई दुख यहाँ साझा हो जाता था जिसे वो और कहीं नहीं कह सकती थीं !; उनके दुखों को ,उनकी कसक को भी कोई आवाज़ देता है ;उसे ही वो अंतर्मन में जीती रहती है ..सीती रहती हैं पर किसी को भनक तक नहीं लगने देतीं .उनके लिए बात मान-सम्मान ,परिवार और रिश्तों की जो होती है .!

                   पर वो जो ये गीत गा रही है इन सबसे परे है ;उसके लिए तो इन सबको मिलाकर बस एक ही नाम है और बस एक वही तस्वीर उभरती है ..सलीम की ..उसके सलीम की ..हाँ यही है वो नाम जिसने रज्जो को जोगन बना दिया ;जिसके लिए रज्जो ने सबकुछ छोड़ दिया ..अपनों को ...समाज को ..और सभी सामाजिक रिश्तों को भी ;उसने अपना सारा जीवन बस सलीम के नाम कर दिया ;हर धर्म, हर जाति और पूरे समाज के विरुद्ध जाकर ..पर कितने आश्चर्य की बात है की जो समाज बात बात पर तलवार खींच कर खड़ा हो जाता है वही समाज रज्जो का बहुत आदर भी करता है.. क्यों ..आखिर ये रज्जो है कौन ...और आखिर इसमें ऐसी क्या बात है की लोग विरोध की बजाय उसे प्यार करते हैं ..उसका सम्मान  करते हैं .और ये समाज जो हम सबसे ही बना है ..हर वक्त हमारे विरुद्ध ही खडा नज़र आता है वो भी रज्जो का सम्मान करने को मजबूर है.पर इस क्यों का जवाब ज्यादातर गाँव वाले नहीं जानते ..जो जानते हैं वो बताते नहीं और अपने बुजुर्गों से पूछने का साहस भी कोई नहीं करता ..यही वजह है की रज्जो के बारे में लोग उतना ही जानते हैं जितना दीखता है ..उससे ज्यादा कुछ भी नहीं ...!

                 रज्जो दिन भर पूरे गाँव में डोलती फिरती ..हर किसी का काम ..उसकी मदद करती ..और शाम होते ही अपनी मड़ैया में वापस लौट आती ..इसे भी उसने खुद ही बनाया है ..गाँव के किनारे के एक सुनसान जगह पर ..जहां कोई उसके जीवन में व्यवधान न डालने पाए ...शुरू शुरू में तो लोगों को कुछ अजीब लगा पर बाद में धीरे धीरे सभी ने उसे और उसकी निजता को स्वीकार लिया.काम के एवज में वो बस थोडा बहुत अनाज ही लिया करती थी जिसे अँधेरा होते ही वो चक्की में पीसती और साथ ही अपने दर्द को भी घोंटती जाती ..वो दर्द जो वो पता नहीं कितने सालों से जी रही है और जो लगातार उसके अन्दर जमता जा रहा है और यही दर्द उसकी लम्बी तान में भी सुनाई पड़ता ..रज्जो हर रात को गाती ..पूरी सुध-बुध खोकर गाती मानो अपनी सारी तकलीफ वो आज रात ही जी लेगी और अगली सुबह फिर वही हंसती मुस्कुराती सबकी मदद करने वाली शांत-सौम्य रज्जो हो जायेगी ..पर ऐसा नहीं होता था ...रात फिर आती थी ..और रज्जो एक बार फिर अपने सलीम की रज्जो बन जाती थी ....सलीम की रज्जो ...और बस सलीम के लिए रज्जो ...यही क्रम शायद नियति ने उसके लिए निर्धारित किया हुआ था  .इसी दर्द से उसे उर्जा मिलती थी और यही दर्द उसकी जीवनदायिनी शक्ति भी थी .!

                 गाँव वालों के मन में अक्सर ये प्रश्न उठता की कौन है वो जिसके लिए रज्जो केवल रज्जो ही रह गयी ..कभी किसी की बीवी , माँ ,चाची,काकी या ताई नहीं बन पाई . कुछ उस अनजान व्यक्ति की किस्मत पर रश्क करते तो बहुतेरे इसे रज्जो का पागलपन समझते पर ये बात कहने का साहस कोई नहीं जुटा पाता. रज्जो के व्यवहार और आचरण की वजह से सभी उसका सम्मान करते थे ...कारण की पूरे गाँव के हर घर के सुख दुःख की इकलौती राजदार और साझेदार भी थी रज्जो . कभी भी कहीं भी जरूरत हो तो रज्जो को पता लगते ही वो तुरंत पहुँच जाया करती ..बिना बुलाये और वहां पहुंचकर सब कुछ ऐसे संभालती मानो उसका ही घर हो पर सब कुछ ठीक होते ही उतने ही निर्लिप्त भाव से चुपचाप वापस भी चली आती . लोगों का शुक्रिया उनका स्नेह और आशीर्वाद रज्जो के सम्मान में ही झलक जाता .!

                 पर न जाने क्यों गीता की सयानी होती लड़की से उसे कुछ लगाव सा हो चला था जिसकी उम्र यही कोई १७-१८ बरस थी और नाम था नीला . शांत -गंभीर  अपने काम से मतलब रखने वाली नीला  उसे बहुत अपनी सी लगती . खाली होने पर नीला अक्सर रज्जो के पास चली आती और खूब बातें करती ..लोगों को आश्चर्य होता की जो नीला पूरे गाँव में किसी से बात नहीं करती वो आखिर रज्जो से ..जो उससे उम्र में काफी बड़ी है ..क्या बातें करती है पर रज्जो की सज्जनता की वजह से कभी किसी ने और खुद उसके घरवालों ने भी आपत्ति नहीं की .नीला को रज्जो काकी बहुत अच्छी लगती . साधारण सी दिखने वाली रज्जो काकी में छिपी बहुत सी असाधारण बातें नीला को दिख जातीं ..और यही रहस्य उसे दिनों दिन रज्जो के और करीब ला रहा था ...कई बार पूछना चाहकर भी वो पूछ नहीं पा रही थी ..मन में एक स्वाभाविक झिझक थी ..उसे लगता की कहीं काकी नाराज़ न हो जाएँ या फिर कहीं दुखी ही न हो जाएँ ...रज्जो काकी का दुःख नीला को कहीं बहुत गहरे तक छूता था और उसके उभर आने के डर और उसकी तकलीफ ने नीला के सवालों पर ताला लगा रक्खा था .शायद रज्जो ने भी नीला की आँखों में उठते प्रश्नों को पढ़ लिया था और मन ही मन मुस्कुराई थी पर उसकी उम्र और उम्र के पड़ाव को देखते हुए वो कुछ भी बताना नहीं चाहती थी ...दरअसल इस उम्र की मांग और संवेदनशीलता रज्जो बखूबी समझती थी ..और ये भी की अगर चाहत पूरी न हो तो खुद को संभालने में पूरी उम्र भी गुजर जाया करती है . वो नहीं चाहती थी की नीला के साथ ऐसा हो ..कभी कभी उसके मन में एक अजीब सा विचार आता की अगर सलीम से उसकी शादी हो गयी होती तो आज लगभग इससे कुछ ही बड़ी उसकी भी एक बेटी होती ..हाँ बेटी क्योंकि सलीम को तो बेटी ही चाहिए थी न ...और अनजाने ही उसकी आँखें नम हो जातीं ..नीला के कारण पूछने पर वो मुस्कुरा देती ..क्या कहती वो की क्या हुआ है ..नीला भी फिर दुबारा नहीं पूछती .आपसी समझ से उपजा एक सम्मानजनक रिश्ता था ये जिसे अपने  अतिरिक्त अधिकारबोध  से वो धूमिल नहीं करना चाहती थी .दिनों-दिन उनका ये रिश्ता प्रगाढ़ होता गया और फिर आया वो दिन जब रज्जो घर से बाहर नहीं निकलती थी ..सारा दिन अपनी उसी मड़ैया में बंद रहती और सारी रात उसकी आवाज़ का रुदन अपने चरम पर होता ..सुनने वालों को लगता की उनके अन्दर भी कहीं एक दर्द का सोता फूट पडा है और उनकी आँखें भी नम हो जातीं.इस रात रज्जो की झोंपड़ी के आस-पास एक अदृश्य ,खामोश आभामंडल महसूस होता जिसे भेदने की हिम्मत कोई नहीं कर सकता था ....आखिर ऐसा क्या था इस दिन में ..ये कोई नहीं जानता था सिवाय रज्जो के ..पर जिसका दुःख हर किसी के अंतर्मन को भिगो देता था .पर अगले रोज से फिर वही सामान्य दिनचर्या..कहीं कोई व्यवधान नज़र नहीं आता था पर कोई नहीं समझ पाता की रज्जो ने एक ही रात में तकलीफों के न जाने कितने समन्दर पार कर लिए हैं ...!

                                अगले रोज जब नीला रज्जो से मिलने आई तो उसकी आँखे लाल थीं मानो सारी रात वो रोती रही हो  और बहुत खामोश थी ..हर रोज की तरह उसने रज्जो से कुछ नहीं पूछा ...कोई सवाल नहीं ..कोई बात भी नहीं ..बस चुपचाप जाकर सामने बैठ गयी ..एक बार उसने काकी की आँखों में देखा और सिर झुका लिया ..रज्जो धक् सी हो गयी ...आज नीला की आँखों में दुःख था ...मान था ..मानो पिछली रात उन दोनों का दुःख साझा हो गया हो और ये समझते ही रज्जो स्तब्ध रह गयी ..उसने धीरे से नीला के बालों पर हाथ फेरा और उसके हाथों को अपनी हथेलियों में भर लिया ...नीला के शरीर में हल्का सा कम्पन हुआ और वो काकी से लिपट गयी ...रज्जो उसके बालों पर हाथ फेरती रही जब तक की नीला शांत नहीं हो गयी ..फिर उसने धीरे धीरे कहना शुरू किया ..नीला सुन , आज मै तुझे वो बताउंगी जो आज तक मैंने किसी को नहीं बताया ...नीला की सवालिया निगाहें उसकी तरफ उठीं ..हाँ ..तूने सच सुना ..तुझे मै आज सच बताउंगी ..अपना और सलीम का सच ..और ये कहते हुए ही रज्जो एक बारगी सिहर उठी जिसका कम्पन नीला ने भी खुद में महसूस किया ...रज्जो कहती गयी ...तब मै भी तेरी ही उम्र की थी जब सलीम मुझे पहली बार मिला ..वो शहर से यहाँ गाँव अपने मामा के यहाँ छुट्टियाँ बिताने आया था ..एक दिन मै अपनी सहेलियों के संग जा रही थी तभी मैंने उसे पहली बार देखा ..उसके बाद भी जब तब वो मुझे दिख ही जाता और हर बार मेरी तरफ देखकर आहिस्ता से मुस्कुरा देता ..मै सिहर उठती पर क्योंकि मै अपनी सहेलियों में सबसे ज्यादा बिंदास थी तो इसे जाहिर नहीं होने देती ,,कई बार सहेलियों ने जब उसके नाम के साथ मेरा नाम लिया तो मैंने उन्हें जता दिया की मुझे इन सब बातों में कोई दिलचस्पी नहीं है ..पर सच तो ये था की मुझे उसका देखना और उसके साथ अपना नाम लिया जाना बहुत अच्छा लगता था ..अजीब सी ख़ुशी मिलती थी . एक दिन जब मै अकेले ही घर लौट रही थी वो बरगद के पेड़ के नीचे खडा था ..उसे देखते ही मेरे हाथ पाँव कांपने लगे .पर फिर भी मै आगे बढती गयी ..धीरे-धीरे वो मेरे पास आने लगा ..मै घबरा गयी और मन ही मन उसे कोसने लगी की वो मेरे पास क्यों आ रहा है ...पास आकर उसने पूछा ..तेरा नाम क्या है ..मैंने गुस्से से कहा.. क्यों ..तू क्या करेगा जान कर ..उसने कहा चिट्ठी में लिखूंगा ...मैंने कहा क्या ???...और मूर्खों की तरह उसकी तरफ देखती रही ..वो हलके से हंसा और बोला ...अरे ..तेरे लिए जो चिट्ठी लिखी है उसमे तेरा नाम डालना है ..किसी और से पूछता तो तू बुरा नहीं मान जाती ..इसीलिए तेरे से पूछ रहा हूँ ...बता दे तो चिट्ठी तुझे दे दूं .....इतना सुनते ही मै बुरी तरह घबरा गयी और पूरी ताकत से दौड़ लगाकर घर पहुंची ..घर पहुंचकर हांफते हुए ही  बिस्तर पर गिरी ..कुछ देर बाद जब सामान्य हुई तो एक एक कर उसकी सारी बातें याद आने लगीं ..उसका देखना.. उसका मुस्कुराना ...उसकी आवाज़ ...और ऐसा लगा जैसे मेरे दिल में कितने मीठे अहसास एक साथ जनम गए हों ..! अगले रोज घर से बाहर निकलने की हिम्मत ही नहीं हो रहीं थी पर फिर भी मै जाना चाहती थी ..की शायद वो कहीं दिख जाए ..जब बापू के लिए खाना लेकर निकली तो वो फिर से वहीँ खडा था ..उसी बरगद के नीचे ..मुझे देखते ही मुस्कुरा दिया ..बोला तू तो बड़ी डरपोक निकली ..मैंने तो सुना था की तू बड़ी बहादुर है ...मैंने घबराते हुए उसकी आँखों में देखा और सूखे गले से बोली ..चल..डरूँगी क्यों ...तू क्या कोई शेर है जो मुझे खा जाएगा ...वो बोला ...फिर कल भागी क्यों ..ऐसे डरकर ....मैंने कहा भागी नहीं ...वो तो माँ ने कुछ काम कहा था वही याद आ गया इसलिए दौड़कर गयी थी ..वो बोला ..अच्छा सच कह रही है ..मैंने बोला.. तो..मै झूठ नहीं बोलती ....वो हंसने लगा बोला देखते हैं ...नहीं डरती तो नाम बता अपना ...मैंने गुस्से से देखा उसे ...वो बोला बता दे वर्ना सोच लेना ..मै किसी और से पूछ लूँगा और ये भी कहूँगा की तू डर गयी थी ..मैंने तुरंत उसे अपना नाम बता दिया ...रज्जो ......अरे वाह ..तेरा नाम तो बड़ा सुन्दर है ..ले ..अब ये ले ले ..मैंने पूछा ..ये क्या है ..बोला ..अरे इतनी जल्दी भूल गयी ..कल ही तो बताया था की चिट्ठी है ...मैंने कहा ..नहीं ..मै नहीं लूंगी ...पता नहीं तूने क्या लिखा हो ...वो मुस्कुरा दिया ..बोला सोच ले ...नहीं लेगी तो तेरे घर के अन्दर डाल दूंगा ..फिर किसी और के हाथ लग गयी तो मत कहना की मैंने तुझे बताया नहीं ....मुझे उसकी दुष्टता पर बहुत गुस्सा आ रहा था ..मन तो हुआ की एक चांटा लगाऊं पर फिर उसकी आँखों में देखते ही न जाने क्या क्या होने लगा ..मैंने चुपचाप वो चिट्ठी ले ली ...अब वो थोडा गंभीर हो गया ...बोला सुन ..इसे घर जाकर अकेले में पढना ..सबके सामने नहीं ..और हाँ ..सोच समझकर जवाब देना ....न बोला तूने तो सच कहता हूँ .. तेरी कसम मै मर जाऊँगा ..मै कांपने लगी थी पर फिर धीरे धीरे घर आई .उसकी चिट्ठी में बस इतना ही लिखा था की रज्जो ..तू मुझे अच्छी लगती है ..बिलकुल अपनी सी ..तेरे साथ बहुत सी बातें करना चाहता हूँ ..अगर तू राजी है तो कल इसी वक्त तुझे वहीँ खडा मिलूंगा ....तुझे देखकर  मै तेरी हाँ मान लूँगा ..और देख ,अगर नहीं आई तो फिर मेरा मरा मुंह देखना .!  ये पढ़कर ही मै कांपने लगी ..दिल इतनी जोर से धडक रहा था मानो हलक से बाहर आ जाएगा ..मुझे उसके ऊपर खीझ भी हो रही थी और वो बहुत अच्छा भी लग रहा था ..मन हो रहा था की अभी दौड़कर उसके पास जाऊं और कहूं की बोल..बोल क्या बोलना है ..पर शर्म भी आने लगी थी ..और अब मै और घबरा गयी की ये क्या हो रहा है ..ऐसा तो मैंने पहले कभी भी महसूस नहीं किया था ...पर खैर किसी तरह पूरा दिन बीता ...रात भी बेचैनी से गुजरी ..सुबह से ही फिर घबराहट होने लगी ..मै सोच रही थी की जाऊं या न जाऊं ...पर न जाना तो मेरे वश में ही नहीं था न ...तो मै धीरे धीरे तैयार होने लगी ...सारे कपडे उलट पुलट डाले पर कोई पसंद ही नहीं आ रहा था ..माँ नाराज़ होने लगी की आज तुझे क्या हो गया है ....सारे कपडे क्यों तहस नहस कर रही है ...खाना देने ही तो जाना है ...मै कुछ नहीं बोली ..क्या बताती उन्हें ....खैर जैसे तैसे करके पीले रंग का एक सलवार कमीज़ पहना मैंने ...और कांपते  कदमो से खेतों की तरफ जाने लगी ...सामने देखा तो बरगद के नीचे वो खडा था ..पीली ही टी शर्ट और सफ़ेद पैंट पहने ...पर उसका चेहरा मुरझाया हुआ लग रहा था ....मुझे देखते ही वो हलके से मुस्कुरा दिया पर कुछ बोला नहीं और न ही मुझे रोका ....मै भी धडकते दिल से आगे निकल गयी पर जब मै लौटने लगी तो वो आया ...मेरे पास ...मुस्कुराकर बोला ....कैसी है तू ....मै कुछ नहीं बोली ..चुपचाप सिर झुकाए खड़ी रही ...वो फिर बोला ..तो मै क्या समझूं ...मै फिर भी कुछ नहीं बोली ...वो धीरे से बोला ...रज्जो ...आ उधर बैठकर बातें करते हैं ...मै चुपचाप उसके पीछे चलने लगी ...उसने अपना रुमाल बिछाकर मुझे बैठने का इशारा किया ..मै बैठ गयी ..वो भी मेरे सामने बैठ गया ...बहुत देर तक हम खामोश बैठे रहे ..दोनों में से कोई कुछ बोल ही नहीं पाया ..बस बीच बीच में कनखियों से एक दुसरे  को देख लेते और अगर नज़र मिल जाती तो हलके से मुस्कुरा देते ...काफी देर गुजर जाने के बाद उसने कहा ..रज्जो ...मैंने उसकी तरफ देखा ...मेरा दिल जोर जोर से धडक रहा था ...उसने कहा ..चल तुझे घर तक छोड़ आऊं...देर होगी तो तुझे डांट पड़ जायेगी ...!  इतना कहकर रज्जो चुप हो गयी ...एक अजीब सा मौन  पसर  गया था ..कुछ भी पूछकर   नीला उस मौन की  गरिमा नष्ट   नहीं करना चाहती थी ...!  रज्जो ने ही फिर बोलना शुरू किया ....सच कहती हूँ नीला ...इस एक पल  ही मै उसकी हो गयी थी ..उसकी ..जिसका नाम भी मै तब तक नहीं जानती थी ...वो घर के पास तक आया ....और फिर मेरी तरफ देखते हुए रुक गया ..बोला अब मै जा रहा हूँ ...कल फिर वहीँ तेरा इंतज़ार करूंगा ....मै कुछ नहीं कह पायी और वो चला गया ....फिर तो कैसे दिन बीते ..और कैसे रात गुजरी ...ये सिर्फ मै ही जानती हूँ ...हम रोज मिलते ..बातें करते और फिर अगले दिन मिलने का वादा करके लौट आते ..वो मुझे अपने बारे में बताता ..मै मंत्रमुग्ध सी सुनती रहती ...वो मुझसे  भी मेरे बारे में सबकुछ जान लेना चाहता था ..मै भी उसे सब कुछ बता देती ...फिर वो दिन भी आया जब उसने पहली बार मेरी हथेलियों को छुआ ...और मै बेतरह उस अहसास में गुम होने लगी ..मै कांप रही थी ...शायद वो भी क्योंकि इसे छुपाने के लिए ही वो मुझसे दूर जाकर खडा हो गया ..मै समझ गयी थी ...पर बोली कुछ नहीं ...अगले दिन उसने बताया की कल वो वापस जा रहा है ...मुझे एक तेज़ झटका लगा ..मेरी आँखों में आंसू आ गए ...उसकी भी आँखें नम हो गयीं ...उसने कहा ..आज मै तुझसे कुछ मांगूं तो देगी ...मैंने उसकी तरफ ऐसे देखा की अगर वो जान भी मांगे तो दे दूँगी ..उसने कहा ..आज रात तू मुझसे मिलने आएगी ..जाने से पहले का सारा समय मै तेरे साथ बिताना चाहता हूँ ....मैंने भी भरी हुई आँखों से कहा की मै जरूर  आउंगी  ....! रात में जब सभी   खाकर  सो  गए और  पूरे गाँव में सन्नाटा  छा  गया तो मैंने अपनी वही पीली सलवार कमीज़ पहनी औरउससे मिलने निकल पड़ी ...मुझे ये देखकर आश्चर्य हुआ की उसने भी वही पीली टी शर्ट और सफ़ेदपैंटपहनी हुई है...हमदोनों एक दुसरेको देख कर मुस्कुरा दिए ....और उस दिन पहली बार उसने मेरा हाथ पकड़ा ....मै सिहर उठी पर अपनी कंपकंपाती हथेलियोंओ को  छुड़ाया नहीं मैंने ...बहुतदेर तक हम यूँ ही बैठे रहे...चाँद को देखते रहे ...एक दूसरे का होना महसूस करते रहे और धीरे -धीरे उसने मुझे अपनी बाहों में समेट लिया ...उफ़ ...ऐसा लगा मानो मै जी उठी ..मुझमे अहसास हिलोरें लेने लगा था...मै मदहोशी को महसूस कर पा रहीथी...एक पुरुष की बाहों की सुरक्षा को मै समझ पा रही थी ..उसके साथ होने को मै जी पा रही थी ..और शायद वो भी यही महसूस कर रहा था ......कहतेकहते रज्जो की आवाज़ भर आई ...और वो रुक गयी...नीला को महसूस हुआ की मानो एक सुन्दर सपना बीच में ही ठहर गया हो ..पर उसने प्रतीक्षा की ....रज्जो ने फिर से कहना शुरू किया ...पता है  नीला ..उस दिन सलीम ने पहली बार मुझसे  कहा की वो मुझसे प्यार करता है ...मै कुछ कह पाती इससे पहले ही अचानक कई टौर्चों की रौशनी हम पर पड़ी ....ये हमारे घर वाले और गाँववाले थे ...इनका गुस्सा देखकर हम डर गए ..वो लोग सलीम को  खींचते हुए ले गए और मुझे भी मेरे घर वालोंने बहुत मारा - पीटा...सारी रात डर  वहशत और बुरे ख्यालों के साए में गुजरी ...मै सोचती रही की पता नहीं सलीम कैसा होगा ..और मैंने तय किया की चाहे जैसे भी हो मै सबको मना ही लूंगी...पर नियति में तो अभी बहुत कुछ बुरा होना लिखा था  ,...अगली सुबह सबने सलीम को बरगद के पेड़़ से लटकते हुए पाया....पूरे गाँव में सन्नाटा पसर गया ...मैंने सुना तो बेहोश हो गयी ....जब होश आया तो पता चला की सलीम को दफना दिया गया ....मेरी हालत पागलों जैसी हो गयी ...पर मै बिलकुल नहीं रोई ..हर वक्त बस सलीम को अपने आस पास महसूस करती रही ...यूँ लगता था की जैसे  वो यहीं है ..मेरे पास ..मेरे साथ !बाद में मुझे मेरी एक सहेली से पता चला की सलीम को बहुत मारा पीटा गया था ...उसके घर वाले चाहते थे की वो तुझे भूल जाए ..पर वो इसके लिए तैयार नहीं हुआ ...सबने उसे समझाने की भी कोशिश की थी पर वो नहीं माना और अंत में ज्यादा  खून बहने की वजह से उसकी मौत हो गयी ...पुलिस से बचने के लिए उसके घरवालों ने ही उसे बरगद के पेड़ से लटका दिया था ..फिर मेरी सहेली चुप हो गयी ...थोड़ी देर बाद उसने झिझकते हुए कहा ..तुझे मालूम है रज्जो ..मरने से पहले सलीम ने क्या कहा था ....मेरी आँखों में प्रश्न देखकर उसने बताया की उसके  भाई से जो सलीम के लिए पानी लेकर गया था ..सलीम ने बोला था की ..मै रज्जो से शादी करना चाहता था ..और चाहता था की हमारी एक प्यारी सी बेटी हो ..बिलकुल रज्जो जैसी ..पर अब लगता है की ये नहीं हो पायेगा दोस्त ..यही सलीम के आखिरी शब्द थे ....इतना कहकर मेरी सहेली चुप हो गयी ! अब रज्जो फिर से खामोश हो गयी ...सलीम के अंतिम शब्द उसके लिए वेद वाक्य बन गए ....ऐसा लगा मानो वो अपने निश्चय को पक्का कर  रही हो ...रज्जो ने फिर से कहना शुरू किया ...और उसी वक्त मैंने अपना जीवन और उसकी दिशा तय कर ली थी ...मैंने सोच लिया था की होती तो सलीम की होती पर अगर अब सलीम नहीं है तो कोई भी नहीं होगा ...पुलिस आई ..सबसे पूछताछ हुई पर सारा गाँव चुप लगा गया ..अब सबकी निगाहें मेरे ऊपर थीं की मै क्या बयान देती हूँ ..सबकी जिन्दगी मेरे बयान पर ही टिकी थी ..उनकी भी जिन्होंने मेरे सलीम की जान ली थी ..पर बदला लेने का मैंने अपना तरीका चुना था ..मैंने पुलिस को कुछ नहीं बताया ..सभी को आश्चर्य तो हुआ पर जान बच जाने से राहत की सांस ली उन्होंने ...दरअसल वो समझ ही नहीं पाए की उनके साथ क्या होने वाला है !तुझे पता है लीना ..सलीम की मौत कल ही के दिन हुई थी ..इसीलिए मै इस दिन कहीं नहीं निकलती ..बस अपने सलीम के साथ होती हूँ .!

                              अगले दिन ही मैंने अपना घर छोड़ दिया और यहाँ आकर रहने लगी ..यहाँ ...और रज्जो ने बड़े प्यार से उस तरफ देखा जहां भगवान् की फोटो के सामने दिया जल रहा था .और बगल में ही कुरआन शरीफ भी रखा था मक्का की तस्वीर के साथ .. जानती है क्यों ...नीला ने अपनी प्रश्न वाचक नज़रें उठायीं ..यहाँ इसलिए क्योंकि यहाँ सलीम रहता है ..उन्होंने उसे यहीं दफनाया था ...नीला सिहर उठी ..तो क्या रज्जो काकी इसीलिए यहाँ इस वीराने में रहती हैं ..बिना किसी डर भय के ..क्या इसीलिए उनको किसी का यहाँ आना पसंद नहीं है .. और तभी रज्जो ने फिर से कहना शुरू किया .......उन लोगों ने उसे मार तो दिया पर मुझसे अलग नहीं कर पाए ...बाद में बहुत कोशिश हुई की मै वापिस अपने घर लौटूं पर मै नहीं गयी ...मुझे डराया-धमकाया गया ..कई तरह के डर भी दिखाए गए पर मै अपने सलीम को छोड़कर कैसे जा सकती थी ....नहीं जा सकती थी न नीला ....और रज्जो काकी  का गला रूंध गया ...नीला ने भी अपने गले में कुछ घुंटता हुआ महसूस किया ..संभलने पर रज्जो ने फिर से कहना शुरू किया ....पता है नीला उन लोगों ने सलीम को क्यों मारा ....नीला के पूछने से पहले ही रज्जो ने बताया ...क्योंकि वो मुसलमान था ...हमारी जाती हमारे धर्म का नहीं था ...कितनी छोटी सोच के थे वो लोग जिन्होंने मेरे सलीम को मुझसे छीन लिया था ....मेरी जिन्दगी मेरी साँसें मुझसे छीन ली थीं ...सिर्फ इसलिए की वो मंदिर नहीं मस्जिद जाता था ...छी ..लानत है ऐसे लोगों पर ...अब गुस्से से रज्जो का चेहरा लाल होने लगा ..उसकी मुट्ठियाँ भिंच गयीं ..एक पल को तो नीला भी डर गयी क्योंकि रज्जो काकी का ये रूप उसने पहले कभी नहीं देखा था ..पर जल्दी ही रज्जो सामान्य हो गयी ..उसने फिर से कहना शुरू किया ...तुझे पता है अब मैंने क्या किया ...नीला चुपचाप उसकी तरफ देखती रही ..हर रोज सुबह-सुबह मै गाँव में निकलती ..विधवा की तरह ...मेरे सलीम की विधवा ..जहां भी मदद की दरकार होती मै वहीँ जाती बिना ऊँच नीच और छोटे बड़े का भेद भाव किये ..बिना जाति बिना धर्म के मै उनकी मदद करती ...शुरू में लोगों ने विरोध किया ..मेरे घरवालों ने भी विरोध किया ..पर मै नहीं मानी ...जितना ही उनका विरोध तीव्र होता उतना ही मेरा निश्चय भी दृढ होता ...अंत में थक हार कर वो लोग शांत हो गए ...मेरी माँ अक्सर मेरे पास आती ...रोती रहती ..घर वापस चलने को कहती पर मै नहीं गयी ..मै उस घर में वापस कैसे जा सकती थी जहां मेरे वो पिता रहते थे जिन्होंने मेरे सलीम पर वो अंतिम वार किया था की उसके सिर से लहू फूट पडा और जिसकी वजह से उसकी मौत हुई ...उसके बाद मैंने कभी भी अपने पिता का चेहरा नहीं देखा ....सलीम के जाने के बाद बस एक माँ ही थी जो मेरे पास आ सकती थी वर्ना मै किसी और को यहाँ नहीं आने देती थी ..जितनी भी देर माँ यहाँ रहती ..बस उतने ही सुकून के पल मेरे होते वर्ना तो हर वक्त मै सलीम की यादों में डूबी रहती ....सलीम मेरा इश्क ..मेरा खुदा है नीला ..और उसकी ही इबादत में मै हर वक्त खोयी रहती ...मेरे गम ने जल्दी ही मेरी माँ को मुझसे छीन लिया ..और फिर पिता भी नहीं जी पाए ..शायद उन्हें भी अपने किये का पछतावा था पर मैंने उनको कभी माफ़ नहीं किया ..आज तक नहीं ....अपनी माँ के लिए मुझे जरूर दुःख होता है .पर मै कुछ नहीं कर सकती थी .!शायद गाँव वालों को भी अपनी भूल का अहसास हुआ पर क्या फायदा ..बहुत देर हो चुकी थी ...मेरा सलीम मुझे छोडकर जा चुका था  ..काश कि लोगों का सोचने समझने का दृष्टिकोण थोडा विस्तृत होता ...इतना कहकर रज्जो कुछ देर के लिए खामोश हो गयी ...ख़ामोशी जब बोझिल होने लगी तो रज्जो ने फिर से कहना शुरू किया ..उसके बाद से हर रोज मेरा यही नियम हो गया ..मै रोज सुबह घर से निकलती ...और शाम ढलने के पहले वापस आ जाती ..क्योंकि उसके बाद का सारा वक्त मेरे सलीम का जो होता है ..लीना स्तबद्ध रह गयी ...बहुत देर तक वो कुछ कह ही नहीं पायी ..ऐसा लग रहा था की एक का दर्द दूसरे के अंतस में बिखरने लगा था ..एक का दुःख दूसरे की आँखों में नमी बन गया था ..एक का अकेलापन दूसरे को झकझोर गया था ...और एक का इश्क दूसरे के लिए श्रद्धा बन गया था और फिर यहीं आकर सारे संवेदनाओं के तंतु जुड़ गए ...लीना को अपनी रज्जो काकी पर अगाध श्रद्धा हो आई ...मन आदर से भर गया ..वो चुपचाप उठी और उसने आज पहली बार अपनी पूरी श्रद्धा से रज्जो काकी के चरण स्पर्श किये और बाहर निकल आई !

                          नीला ने देखा की अब शाम गहराने लगी है ..और कुछ ही देर में रज्जो काकी की लम्बी तान गूँज उठी ..रुदन से भरपूर उस आवाज़ में ऐसी कशिश थी की नीला की आँखें भी भर आयीं ...उसने महसूस किया की ये रज्जो काकी का अपने सलीम से मिलने का वक्त है ..उनकी इबादत का वक्त है ..और ये क्या ...एक अद्भुत आभामंडल की किरणों ने काकी की मड़ैया को घेर लिया है ...तो क्या सलीम भी .....????  और इस एक सवाल से नीला के बदन में हजारों कांटे उग आये और उसके हाथ स्वतः ही उस घर के सम्मान में जुड़ गए .!!






                  अर्चना "राज "



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