Thursday 21 December 2017

कमाल

एक है अमलतास का पेड़
एक है खाली सड़क
एक खिड़की
घर से घर कि दूरी बस इतनी
कि सांस लो गर डूबकर आवाज़ पहुँच जाए ,
इन सबके बीच ही पला एक इश्क
कमाल का
जिसमे न शब्द थे ...न लिखावट ....न स्वीकार्य
फिर भी सदी के चौथाई हिस्से तक का वक्त थिर किये रहा ,
असल कमाल तो बाकी है अभी
अब शब्द भी हैं
आवाज़ भी है
स्वीकार्य भी है
नहीं है तो बस ज़ालिम इश्क नहीं है ,
गज्ज़ब न !!

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